Lucknow News: लिखने का विकल्प सिर्फ लिखना ही है और कुछ नहीं...अमृत लाल नागर
Lucknow News: संचित स्मृति ट्रस्ट और राजकीय विद्यालय मस्तेमऊ, लखनऊ के संयुक्त तत्वावधान में आज पद्मभूषण अमृतलाल नागर के जन्मदिवस के अवसर पर कार्यक्रम का आयोजन राजकीय विद्यालय मस्तेमऊ में किया गया।
Lucknow News: कलम के धनी साहित्य के हस्ताक्षर माने जाने लेखक साहित्यकार अमृतलाल नागर लेखन को शौकिया नहीं मानते थे बल्कि वो एक शानदार जिंदगी जीने के लिए लेखन कार्य करते थे। वर्ष 1984 में भी वो अपने प्रकाशक से 10 हजार रूपए प्रतिमाह रॉयल्टी लेते थे ताकि वो जो भी लेखन कार्य करें सिर्फ उसी के प्रकाशन के लिए करें। वो नए लेखकों को भी अक्सर समझाते थे कि एक किताब लिखकर रूक मत जाना... लिखने का विकल्प सिर्फ लिखना ही है और कुछ नहीं। ऐसे ही तमाम किस्से कहानियों और चर्चा परिचर्चाओं के बीच हिंदी साहित्य जगत के दिग्गज व्यक्तित्व को उनकी जन्म जयंती के अवसर पर याद किया गया।
संचित स्मृति ट्रस्ट और राजकीय विद्यालय मस्तेमऊ, लखनऊ के संयुक्त तत्वावधान में आज पद्मभूषण अमृतलाल नागर के जन्मदिवस के अवसर पर कार्यक्रम का आयोजन राजकीय विद्यालय मस्तेमऊ में किया गया। अमृतलाल नागर जी के चित्र पर माल्यार्पण व दीपप्रज्वलन के उपरांत विद्यालय की छात्राओं द्वारा सरस्वती वंदना व स्वागत गीत प्रस्तुत किया गया तदोपरांत कहानियों के पाठन के क्रम में कु. कृतिका द्वारा "सती का ब्याह" कु. नाजरीन द्वारा "भारतपुत्र नोरंगी लाल" तथा कु. सोनाली रावत द्वारा कहानी शकीला की माँ का पठन किया गया। इस अवसर पर वरिष्ठ चित्रकार अखिलेश निगम वरिष्ठ साहित्यकार डॉ अनिल मिश्रा, बंधु कुशवर्ती व राजेन्द्र वर्मा ने भी अपने व्यक्तव्य रखे तथा नागर जी के चरित्र से छात्र छात्राओं को परिचित करवाया।
कार्यक्रम का संचालन विद्यालय की प्रधानाचार्या व लेखक कुसुम वर्मा ने किया। इस अवसर पर प्रधानाचार्या व लेखक कुसुम वर्मा ने अमृतलाल नागर जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा की अमृतलाल नागर जी जा जन्म 17 अगस्त 1916 को उत्तर प्रदेश के गोकुलपुरा में एक गुजराती ब्राह्मण परिवार में हुआ। इनके पिता का नाम राजाराम नागर और माता का नाम विद्यावती नागर था। बाल्यकाल में ही कांग्रेस की वानर सेना के सक्रिय सदस्य बन गए थे और अँग्रेज़ सरकार विरोधी गतिविधियों में अपनी भूमिका निभाने लगे थे।
आरंभिक शिक्षा-दीक्षा के बाद उन्होंने इतिहास, पुरातत्व और समाजशास्त्र का अध्ययन किया। वह बहुमुखी प्रतिभा के धनी होने के साथ ही बहुभाषी भी थे और हिंदी के अतिरिक्त मराठी, गुजराती, बांग्ला एवं अँग्रेज़ी भाषा का ज्ञान रखते थे। साहित्यकार के रूप में अमृतलाल नागर ने अपने समय-समाज-संस्कृति से सार्थक संवाद किया है। उन्होंने गद्य की विभिन्न विधाओं—उपन्यास, कहानी, नाटक, बाल साहित्य, फ़िल्म पटकथा, लेख, संस्मरण आदि में विपुल योगदान किया है। उनकी विशेष ख्याति एक उपन्यासकार के रूप में है। हिंदी उपन्यास की परंपरा में उन्हें प्रेमचंद, फणीश्वरनाथ रेणु, नागार्जुन, यशपाल की श्रेणी में रखकर देखा जाता है।
संयोजक अशोक बनर्जी ने उक्त अवसर पर कहा कि नई पीढ़ी को सकारात्मक रूप से नागर जी के साहित्य से जोड़ने का ये प्रयास सार्थक हुआ है जो आज ग्रामीण क्षेत्र के इस विद्यालय के बच्चे उनके साहित्य को आत्मसात कर उसका पाठन कर रहे हैं। संयोजक आलोक श्रीवास्तव ने अपने संबोधन में कहा कि अमृतलाल नागर भारतीय जन नाट्य संघ, इंडो-सोवियत कल्चरल सोसाइटी, उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी, भारतेंदु नाट्य अकादमी, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान जैसी कई संस्थाओं के सम्मानित सदस्य रहे। उन्होंने मंच और रेडियों के लिए कई नाटकों का निर्देशन किया। भारत सरकार की ओर पद्म भूषण, ‘अमृत और विष’ के लिए साहित्य अकादेमी और सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार के साथ ही वह अन्य कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित किए गए। उनकी कृतियों का अँग्रेज़ी, रुसी आदि विदेशी भाषाओं सहित विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया गया है।
नागर जी के उपन्यासों में जीवन रचा-बसा है। ज़िंदगी को पूरी मस्ती से जीने वाले इंसान थे। एक बार उन्होंने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के वरिष्ठ अधिकारी राकेश तिवारी को अपना एक किताब भेंट करते हुए लिखा- ज़िंदगी लैला है, उसे मजनू की तरह प्यार करो। यह कोई साधारण कथन नहीं है। जीवन के प्रति आसक्ति रखने वाला, आशा और विश्वास रखने वाला एक बड़ा लेखक ही ऐसा कह सकता है।इनकी प्रमुख कृतियाँ महाकाल, बूँद और समुद्र, शतरंज के मोहरे, सुहाग के नूपुर, अमृत और विष, सात घूँघट वाला मुखड़ा, एकदा नैमिषारण्ये, मानस का हंस, नाच्यौ बहुत गोपाल, खंजन नयन, बिखरे तिनके, अग्निगर्भा, करवट, पीढ़ियाँ आज भी नई पीढ़ी को हिंदी साहित्य मार्गदर्शन के लिए प्रेरित करती हैं। कार्यक्रम के अंत में सभी को धन्यवाद ज्ञापित किया।