इस शक्तिपीठ में पालने की पूजा, रक्षासूत्र बांधने से पूरी होती इच्छा

Update: 2016-04-13 04:22 GMT

इलाहाबाद: देवी दुर्गा के अलग-अलग स्वरूप के 51 शक्तिपीठ है जो लोगों के आस्था का केंद्र है। जहां पर हजारों लाखों की संख्या में हर साल भक्त अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए माथा टेकते है,लेकिन उनमें से तीर्थराज प्रयाग में सती का एक ऐसा अनोखा शक्तिपीठ है जहां पर उनकी कोई मूर्ति नहीं है बल्कि मंदिर में है तो सिर्फ एक पालना और देश के कोने-कोने से लाखों लोग इसी पालने की पूजा करने आते है। उनकी इसी अलोप छवि की वजह से उनका नाम अलोपशंकरी पड़ा।

शक्तिपीठ के पीछे की मान्यता

पुराणों में वर्णित कथा के आधार पर जो कथा मिलती है, उसके अनुसार भगवान विष्णु ने जब सुदर्शन चक्र से शिव की प्रिया सती के शरीर के टुकडे किए, तब तीर्थराज प्रयाग में इसी जगह पर देवी के दाहिने हाथ का पंजा कुंड में गिरकर अदृश्य ( अलोप ) हो गया था।

पंजे के अलोप होने की वजह से ही इस जगह को सिद्ध -पीठ मानकर इसे अलोपशंकरी मंदिर का नाम दिया गया। सती के शरीर के अलोप होने की वजह से ही यहां कोई मूर्ति नहीं है और श्रद्धालु कुंड पर लगे पालने (झूले ) का ही दर्शन -पूजन करते हैं । आस्था के इस अनूठे केन्द्र में लोग कुंड से जल लेकर उसे पालने मे चढ़ाते हैं ।

ऐसी मान्यता है की श्रद्धालु सच्चे मन से जो भी कामना करता है। माता अलोपशंकरी अपने दाहिने हाथ से उसे आशीर्वाद देकर उसकी मन की मुरादे पूरी करती हैं । यहां पर नारियल और चुनरी के साथ जल और सिन्दूर चढ़ाने की भी परम्परा है ।

पुराणों में ऐसा भी उल्लेख मिलता है की यहां जो भी श्रद्धालु देवी के पालने के सामने हाथों मे रक्षा -सूत्र बांधता है तो देवी उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं और हाथों मे रक्षा सूत्र रहने तक उसकी रक्षा भी करती हैं ।

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