क्या आप जानते हैं वायु प्रदूषण से भारत में होती है सबसे अधिक मौतें

डाक्टर अतुल शाही ने बताया कि दमा नियंत्रण वाली दवा लेना नहीं भूलना चाहिए। रोगी को धूम्रपान से दूर रहना जरूरी है। जरूरत से ज्यादा खाना न खाएं, एलर्जी पैदा करने वाले खाद्य पदार्थों से परहेज रखें, बिना डाॅक्टर की सलाह लिए दवाई न लें।

Update: 2019-06-04 14:40 GMT

लखनऊ: एक दिन दिवस मनाया जाता है, फिर भूल जाते हैं और तमाम बीमारियों को अपने भीतर पालते रहते हैं लेकिन उसके मूल कारणों के समूल नष्ट पर ध्यान नहीं देते। इसका कारण मानव की प्रवृति ही ऐसी बन चुकी है, जब तक खुद न मरने लगें तब तक हमारा उस हानिकारक जड़ को खत्म करने की ओर ध्यान नहीं जाता।

ऐसे ही पांच जून को पर्यावरण दिवस सभी मिलकर बनाएंगे लेकिन अगले दिन सभी स्वहीत में पर्यावरण बचाने के उपायों को भूल जाते हैं। स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2019 की ओर से जारी रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वायु प्रदूषण से मौत का आंकड़ा स्वास्थ्य संबंधी कारणों से होने वाली मौत को लेकर तीसरा सबसे खतरनाक कारण है। देश में सबसे ज्यादा मौतें सड़क हादसों और मलेरिया के कारण होती है। विश्व में भी कुछ ऐसी ही स्थिति है। शायद इसी कारण पांच जून को पर्यावरण दिवस की थीम ‘वायु प्रदूषण’ है।

ये भी पढ़ें— ICC World CUP 2019: अफगानिस्तान ने शानदार वापसी करते हुए श्रीलंका को झकझोरा

विश्व के दस प्रदूषित शहरों में भारत के सात

यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो की एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट के एक शोध के अनुसार अगर धरती पर वायु प्रदूषण के स्तर पर सुधार होने पर हर शख्स की उम्र में 2.6 साल का इजाफा हो जाएगा। विश्व के दस प्रदूषित शहरों में भारत के सात शहर हैं। इसमें दिल्ली से सटे गुरुग्राम को सबसे प्रदूषित शहर के रूप में आंका गया। गुरुग्राम के अलावा गाजियाबाद, फरीदाबाद, भिवानी, नोएडा, पटना, लखनऊ भी प्रदूषित शहरों में एक हैं। विश्व के 20 प्रदूषित शहरों में दिल्ली का 11 वां स्थान है। आज भी कई सालों से दिल्ली में धूंआ रह-रहकर स्कूलों में अवकाश करने को मजबूर कर दे रहा है।

पाैध रोपण व संरक्षण के प्रति होना होगा जागरूक

इस संबंध में डा. प्रभाकर दूबे, अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक, योजना एवं कृषि वानिकी ने बताया कि लोगों को पौधों के रोपण और उनके संरक्षण के प्रति जागरूक होना होगा। जिस तरह लोग साफ-सफाई के प्रति अभियान चलाने के बाद बहुत हद तक जागरूक हुए हैं, उसी तरह धीरे-धीरे लोग जागरूक होंगे लेकिन इसके लिए अब समय कम है। हर व्यक्ति को पौध-रोपण और उसकाे संरक्षण देना ही पड़ेेगा। इसी से प्रदूषण कम किया जा सकता है और मानव के साथ अन्य जंतुओं पर मंडरा रहा जीवन के खतरे से निपटा जा सकता है।

ये भी पढ़ें— CM ने PCS से IAS बने अधिकारियों से की मुलाकात, इन बिंदुओं पर हुई चर्चा

दिल, आंख, फेफड़ों को करता है प्रभावित

वायु प्रदूषण के कारण कैंसर, पार्किंसंस रोग, दिल का दौरा, सांस की तकलीफ, खांसी, आंखों की जलन, और एलर्जी आदि होने का खतरा पैदा हो जाता है। पक्षयुक्त पदार्थ (पीएम) सांस लेने के माध्यम से शरीर में घुस दिल, फेफड़े, और मस्तिष्क कोशिकाओं में पहुँच कर उन्हें बीमारियों से पीड़ित कर देते है। यही कारण है कि विश्व में जहां एक अरब लोग श्वांस रोग से पीड़ित हैं, वहीं सिर्फ भारत में तीन करोड़ अस्थमा के मरीज हैं।वायु में बढ़ रहे प्रदूषण के कारण डायबिटीज और हृदय रोगियों की संख्या भी बढ़ रही है। सबसे ज्यादा खतरा अस्थमा से है।

श्वांस नली में एलर्जी के कारण होता है दमा

अस्थमा के संबंध में हृदय एवं फेफड़ा रोग विशेषज्ञ डा. अतुल शाही का कहना है कि दमा की समस्या श्वास नलिकाओं की दीवार के भीतर एलर्जी के कारण होती है। यह वायु प्रदूषण के कारण तेजी से बढ़ रहा है। एलर्जी के कारण श्वास नली की दीवार मोटी होने लगती है, जिससे श्वास लेना मुश्किल हो जाता है।

ये भी पढ़ें— बंगाल की नाबालिग लड़कियों को पेशे में धकेलने के आरोपी जरायम की जमानत खारिज

अस्थमा एक ऐसी बीमारी है, जिसका समय से सफलता पूर्वक इलाज किया जाए तो इसे कंट्रोल किया जा सकता है और मरीज एक सामान्य जीवन जी सकता है। इसका समय से विभिन्न प्रकार के इन्हेलर के उपयोग से स्थिति को सामान्य किया जा सकता है। इन्हेलर्स का सही प्रयोग करेंडाक्टर बृजभान यादव ने बताया कि इन्हेलर्स के लेने की प्रक्रिया भी ठीक होनी चाहिए। इसके लिए मरीजों को अपने चिकित्सक से हर विजिट पर इन्हेलर्स की प्रक्रिया को सीखना चाहिए। लगभग 70 से 85 प्रतिशत लोग इन्हेलर्स का ढंग से इस्तेमाल नहीं करना जानते, जिससे उनकी बीमारी पूर्ण रूप से कंट्रोल नहीं हो पाती। लंबे समय से अस्थमा से ग्रसित लोगों में निमोनिया होने का खतरा भी बना रहता है।

दमा की स्थिति में धूम्रपान से रहें दूर

डाक्टर अतुल शाही ने बताया कि दमा नियंत्रण वाली दवा लेना नहीं भूलना चाहिए। रोगी को धूम्रपान से दूर रहना जरूरी है। जरूरत से ज्यादा खाना न खाएं, एलर्जी पैदा करने वाले खाद्य पदार्थों से परहेज रखें, बिना डाॅक्टर की सलाह लिए दवाई न लें। विश्रामगृह एवं सोने के सभी स्थानों में पालतू जानवरों को रखने से परहेज करना चाहिए।

Tags:    

Similar News