Mukhtar Ansari Death: एक पुलिस अफसर जिसको मुख्तार की वजह से छोड़नी पड़ी नौकरी

Mukhtar Ansari Death News: एसटीएफ को पता चला कि जम्मू-कश्मीर 35 राइफल्स से एक सिपाही बाबूलाल एलएमजी चुराकर मुख्तार के करीबी और गनर मुन्दर यादव को बेचना चाहता है। यह सौदा करीब एक करोड़ रुपए में हुआ है।

Newstrack :  Network
Update:2024-03-28 23:30 IST

माफिया मुख्तार अंसारी (सोशल मीडिया)

Mukhtar Ansari News: दो दशक से भी ज्यादा समय पहले एक पुलिस अधिकारी ने मुख़्तार अंसारी (Mukhtar Ansari) से लोहा लेने का साहस जुटाया था, लेकिन मुख्तार का ऐसा दबदबा थी कि उस पुलिस अफसर को नौकरी भी छोड़नी पड़ी थी। ये मामला एक मशीन गन का था जिसके चलते मुख्तार पर पोटा के तहत केस दर्ज किया गया था।

क्या था मामला

2004 में यूपी एसटीएफ की ओर से एक एफआईआर दर्ज हुई जिसमें कहा गया था कि मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari News) उस वक्त भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या करना चाहता था। राय के पास बुलेटप्रूफ कार थी, जिसे भेदने के लिए मुख्तार अंसारी एलएमजी यानी लाइट मशीन गन खरीदना चाहता था। यूपी एसटीएफ के वाराणसी जोन का प्रभार उस वक्त डीएसपी शैलेंद्र सिंह के पास था। सिंह ने सर्विलांस के जरिए मुख्तार के इस मंसूबे का पता लगाया। मुख्तार और उससे जुड़े फोन कॉल रिकॉर्ड किये जाने लगे। इसी दौरान एसटीएफ को एक बड़ा सुराग हाथ लगा।

एसटीएफ (STF) को पता चला कि जम्मू-कश्मीर 35 राइफल्स से एक सिपाही बाबूलाल एलएमजी चुराकर मुख्तार के करीबी और गनर मुन्दर यादव को बेचना चाहता है। यह सौदा करीब एक करोड़ रुपए में हुआ है। इसके बाद एसटीएफ मुंदर और बाबूलाल की गतिविधियों पर नजर रखने लगी।

25 जनवरी 2004 को वाराणसी के चौबेपुर इलाके में एसटीएफ ने एक छापा मारा और इस छापे में बाबू लाल यादव, मुन्दर यादव को दबोच लिया गया। दावा किया गया कि दोनों एलएमजी के साथ ही 200 कारतूसों का सौदा कर रहे थे। यूपी एसटीएफ ने इस केस में मुंदर के साथ ही मुख्तार अंसारी पर नकेल कसी और उन पर पोटा के तहत केस दर्ज करने की सिफारिश सरकार को भेज दी। एसटीएफ के पूर्व डीएसपी शैलेंद्र सिंह ने बाद में पत्रकारों को बताया कि अगर एलएमजी कांड (LMG Scandal) का खुलासा नहीं होता तो राय की हत्या 2004 में ही हो जाती।

अदालत से हुए बरी

बहरहाल, इस केस में मुख्तार अंसारी और उसके भाई अफजाल अंसारी को आरोपी बनाया गया। 2019 में सीबीआई की अदालत ने दोनों भाइयों को सबूत के अभाव में बरी कर दिया। मुख्तार अंसारी पर पोटा लगने के बाद मुलायम सिंह की सरकार हरकत में आ गई। सरकार ने एसटीएफ की सिफारिश मानने से इनकार कर दिया और वाराणसी के कई पुलिस अधिकारियों को हटा दिया। उस वक्त एसटीएफ के डीएसपी शैलेंद्र सिंह (DSP Shailendra Singh) ने मुख्तार पर से मुकदमा हटाने से इनकार कर दिया और अपने पद से इस्तीफा दे दिया। सिंह ने अपना इस्तीफा सीधे राज्यपाल को भेजा था, जिसे मजबूरन सरकार को स्वीकार करना पड़ा था। सिंह के इस्तीफे पर विधानसभा में जमकर हंगामा हुआ था। उस वक्त सरकार के संसदीय कार्यमंत्री आजम खान ने विधानसभा में बयान देते हुए कहा था कि पोटा के खिलाफ हमारी सरकार है और इस पर हम अपने स्टैंड पर कायम रहेंगे। सरकार ने शैलेंद्र के इस्तीफे पर किसी भी तरह के बयान देने से इनकार कर दिया था।

शैलेन्द्र सिंह 1999 में भी अंसारी के साम्राज्य पर कार्रवाई को लेकर सरकार के निशाने पर आए थे। उस वक्त बाराबंकी में सिंह की टीम ने अवैध तरीके से कोयला ले जा रहे 70 ट्रकों को जब्त किया था, जिसे सरकार ने छोड़ने का दबाव बनाया था। सिंह ने इस्तीफे की धमकी दे दी, जिसके बाद सरकार बैकफुट पर आ गई थी।

एमएलजी केस में मुख्तार के गनर को मिली थी सजा

2014 में वाराणसी की एक अदालत ने मुख्तार के गनर रहे मुंदर यादव और सप्लायर बाबू लाल को एलएमजी कांड में दोषी पाया था। बाबूलाल का कोर्ट मार्शल हुआ और उसे 10 साल की सजा मिली। बाबूलाल रिश्ते में मुंदर के मामा थे। मुंदर यादव को इस केस में 5 साल की सजा मिली और उस पर 20 हजार का जुर्माना लगाया गया था। कोर्ट ने पाया कि यह एलएमजी का सौदा गलत तरीके से हो रहा था। हालांकि, इस केस में मुख्तार और उसके परिवार के किसी भी व्यक्ति को दोषी नहीं पाया गया था।

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