लखनऊ। इस्लाम में पुरुषों के बराबर ही महिलाओं को अधिकार दिए गए हैं, लेकिन शरीयत की दुहाई देने वाले धर्म के ठेकेदारों की वजह से महिलाओं को उनके धार्मिक अधिकार भी नहीं मिल पा रहे हैं। तीन तलाक का मामला हो या फिर खुला (पति से छुटकारा) का।
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ऐसा ही कुछ हुआ शाजदा खातून के साथ। इंसाफ पाने के लिए शाजदा ने दारूलकजा के कई चक्कर लगाए लेकिन धर्म के ठेकेदारों की ओर से कोई सहायता नहीं मिली। यह विडम्बना ही है कि हर बात पर चिल्लाने वाले सोशल एक्टिविस्ट कही जाने वाली टीम शाजदा के मुद्दे पर मौन है।
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खबर यह है, कि पति और ससुराल की भयंकर प्रताडना झेलने के 18 महीने बाद भी जब शाजदा को इंसाफ नहीं मिला तो उसने रजिस्टर डाक से खुला लेकर मीडिया के सामने अपनी आजादी का ऐलान कर मदद मांगी। बीते दिनों जब हजरतगंज स्थित काफी हाउस में शाजदा ने मीडिया के सामने अपना दर्द बयां किया तो उनकी आंखे नम हो उठीं।
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शाजदा ने बताया कि कई साल पति व ससुराल वालों की प्रताडऩा झेलने के बाद खुला लेने का फैसला किया। पति से अलग होने के लिए उन्होंने नदवा व फिरंगी महल स्थिति दारूलकजा (शरई अदालत) के चक्कर लगाए लेकिन उनको इंसाफ नहीं मिला। इसके बाद उन्होंने 6 सितंबर 2017 को रजिस्ट्री डाक से खुलानामा भेजा था।
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शाजदा की कहानी कुछ इस प्रकार की है। 14 नवंबर 2005 को शाजदा खातून का निकाह जुबैर अली से हुआ था। इंटर पास जुबैर मैकेनिक हैं। कुछ समय बाद ही दोनों में विवाद शुरु हो गया। बच्चे न हो पाने की वजह से पति और ससुराल वाले शाजदा को प्रताडि़त करते थे।
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बाद में जांच मेडिकल रिपोर्ट में यह साबित हो गया कि बच्चे न हो पाने की वजह व नहीं बल्कि पति जुबैर है। तो दोनों के बीच झगड़ा बढ़ गया अब वह पुराने जख्मों को भूलकर नई जिंदगी शुरु करना चाहती है। वह अपनी मां के साथ रहकर और बच्चों को पढ़ाकर अपना जीवन गुजार रही है। वहीं शाजदा के वकील डा. सय्यद रिजवान अहमद ने कहा कि अभी तक तीन तलाक के मामले में पत्नी को कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ते थे, लेकिन फैसला आने के बाद अब पति को अदालत के चक्कर लगाने होंगे।
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कैसे लिया जा सकता है खुला
खुला लेने का एक प्रोसेस है। सबसे पहले नोटिस भेजकर पति को दारूलकजा बुलाया जाता है। एक बार में पति न आए तो तीन बार नोटिस भेजा जाता है। पति-पत्नि के हाजिर होने के बाद दोनों के बयान दर्ज होते हैं। तीन सेटिंग के बाद फैसला होता है।
- मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली, इमाम ऐशबाग ईदगाह
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हमको क्या करना है यह मौलाना नहीं बताएंगे
हमको क्या करना है क्या नहीं यह मौलाना नहीं बताएंगे। कोर्ट में मौलाना ने कहा कि औरते कम अक्ल की होती हैं। तीन तलाक व हलाला को लेकर हमारी लड़ाई जारी है। संविधान में हमे पुरुषों के बराबर अधिकार दिए गए हैं। शाजदा की तरह कई मामले ऐसे हैं पति न तो साथ रखता है, और न ही अलग करता है। इसके चलते कई महिलाएं नई जिंदगी शुरु नहीं कर पाती हैं।
महिला एक्टिविस्ट नाईश हसन
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