पूर्णिमा श्रीवास्तव
गोरखपुर: वेतन विसंगति, पेंशन से लेकर छोटी-छोटी मांगों को लेकर जिंदाबाद-मुर्दाबाद के नारे बुलंद करने वाले रेल कर्मचारी संगठन जबरिया सेवानिवृत्ति पर खामोशी की मुद्रा में हैं। कुरेदने पर संगठन के नेता बयान तो जारी कर रहे हैं, लेकिन सड़कों पर इनका प्रभावी आंदोलन नहीं दिख रहा है। फिलहाल, रेलवे में दागी क्लास वन और क्लास टू के अधिकारियों को जबरिया रिटायर किया जा रहा है, लेकिन जानकार बता रहे हैं कि छंटनी को लेकर 1000 से अधिक कर्मचारियों की सूची तैयार कर ली गई है। कर्मचारियों में ही संगठन की नीति और नीयत को लेकर सवाल उठने लगे हैं।
गहरा रहा है संकट
गोरखपुर पूर्वोत्तर रेलवे का मुख्यालय है। जिले की अर्थव्यवस्था में रेलवे कर्मचारी एक मजबूत स्तंभ की तरह रहे हैं, लेकिन एक के बाद एक विभागों के निजीकरण के बीच कर्मचारियों की छंटनी से संकट गहराता दिख रहा है। पूर्वोत्तर रेलवे में 52 हजार से अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं। सिर्फ गोरखपुर में रेलवे ने 3000 से अधिक आवास बनवा रखे हैं। रेलवे अस्पताल है मगर सब बर्बाद हो रहा है। सिर्फ मुख्यालय का तमगा और विश्व का सबसे लंबा प्लेटफार्म होने का गौरव गोरखपुर के खाते में रह गया है। 3000 से अधिक कर्मचारियों के लिए विकसित कालोनियों की स्थिति खस्ताहाल है। कभी सफाई नहीं होती। दरवाजे और खिड़कियां टूटी हैं। बारिश में छत से पानी टपकता हैं। रेलकर्मी चंद्रभान सिंह कहते हैं कि तृतीय श्रेणी के कर्मचारियों की ही नहीं बल्कि अफसर ग्रेड वालों के मकान की खिड़कियां और दरवाजे टूटे हुए हैं।
दागी अफसरों कसा शिकंजा
रेलवे में दागी अफसर जबरिया रिटायर किये जा रहे हैं। रेलवे ने क्लास वन के जिन 32 अधिकारियों को जबरन सेवानिवृत्ति दी है उनमें पूर्वोत्तर रेलवे के मुख्य परिचालन प्रबंधक (सीपीटीएम) एमके सिंह भी शामिल हैं। उन पर 2014 में लखनऊ स्टेशन के 28 लाख रुपये अपने पास ही रखने सहित कई गंभीर आरोप हैं। मामले की जांच सीबीआई भी कर रही है। सीबीआई के चंगुल में फंसने के बाद से ही माना जा रहा था कि एमके सिंह पर बड़ी कार्रवाई हो सकती है। 1993 बैच के आईआरटीएस एमके सिंह एनईआर के सीपीआरओ भी रह चुके हैं। बीते दो साल से वे पूर्वोत्तर रेलवे के सीपीटीएम पद पर तैनात थे। इसके पूर्व वे डिप्टी सीओएम, सीनियर सीएसओ और सीनियर डीसीएम पद पर भी सेवाएं दे चुके हैं। तत्कालीन महाप्रबंधक मधुरेश कुमार ने उन्हें निलंबित कर दिया था,लेकिन तीन महीने बाद ही उनकी तैनाती सीनियर डीएसओ के पद पर कर दी गई। इसके बाद एमके सिंह को गोरखपुर मुख्यालय पर डिप्टी सीओएम निर्माण के पद पर तैनाती दी गई। करीब तीन महीने बाद ही परिचालन विभाग में सीपीटीएम पद पर तैनाती मिल गई। चर्चा है कि उन्हें आईआरसीटीसी में मोटे पैकेज पर रख लिया गया है। ऐसा है तो जबरिया सेवानिवृत्ति का मतलब?
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क्लास टू अफसरों की भी बन रही सूची
इसी क्रम में क्लास टू के अधिकारियों को भी जबरिया रिटायर किया जा रहा है। रेलवे बोर्ड ने गोरखपुर में ईडीपीएम में तैनात एके सिन्हा को जबरिया रिटायर कर दिया है। दरअसल, रेलवे बोर्ड 50 की उम्र पूरी कर चुके ऐसे अधिकारियों की दूसरी सूची बना रहा है जिनकी कार्यशैली खराब रही है या वे किसी न किसी मामले में गड़बड़ी करते पकड़े गए हैं। करीब 100 से ज्यादा क्लास टू अफसरों की सूची तैयार कर ली गई है। इस सूची में छह अफसर पूर्वोत्तर रेलवे के हैं। इसके अलावा एक सूची कर्मचारियों की है। इसमें भी 50 की उम्र पूरी कर चुके कर्मचारियों को शामिल किया जाएगा। कर्मचारियों की चरित्र पंजिका खंगाली जा रही है। यह देखा जा रहा है कि कहीं किसी मामले में दोषी तो नहीं करार दिए गए हैं। करीब 700 क्लास थ्री के कर्मचारियों पर छंटनी की तलवार लटक रही है।
रस्मी आंदोलन और बयानों से विरोध
छोटी-छोटी मांगों को लेकर बखेड़ा खड़े करने वाले कर्मचारी नेता जबरिया रिटायरमेंट को लेकर सिर्फ रस्मी आंदोलन कर रहे हैं। बयानबाजी करके इतिश्री की जा रही है। बीते 16 दिसम्बर को कर्मचारी संगठन नरमू का गोरखपुर में अधिवेशन था। यहां जबरिया रिटायरमेंट को लेकर उनके सुर में नरमी दिखी। 103 साल की उम्र में एक बार फिर नरमू के महासचिव मनोनीत किये जाने वाले केएल गुप्ता का कहना है कि साजिश के तौर कर्मचारी नेताओं की छवि खराब करने की कोशिश हो रही है। वहीं पूर्वोत्तर रेलवे कर्मचारी संघ के महामंत्री विनोद कुमार राय का पूरी कार्रवाई की निंदा तो करते हैं, लेकिन प्रभावी आंदोलन को लेकर उनके पास कोई कार्ययोजना नहीं है। महामंत्री की दलील है कि व्यक्ति विशेष ने कोई गड़बड़ी की है तो उसके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। पूर्वोत्तर रेलवे श्रमिक संघ के नेता अजय यादव कहते हैं कि केंद्र सरकार यूनियन के पदाधिकारियों पर दबाव बनाना चाहती है ताकि निजीकरण का विरोध न किया जाए। वहीं ऑल इंडिया गार्ड कौंसिल के जोनल महामंत्री शीतल प्रसाद का कहना है कि यूनियन के पदाधिकारियों को नकारा बताना गलत है। अगर कहीं गड़बड़ी है तो जांच कराकर कार्रवाई की जाए।
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यूनियन के कर्मचारी नेता भी निशाने पर
कर्मचारियों के हितों को लेकर संघर्ष करने वाले कर्मचारी नेताओं पर भी छंटनी की तलवार लटक रही है। रेलवे बोर्ड मान रहा है कि कर्मचारी नेताओं पर दबाव बनाकर आसानी से दागी कर्मचारियों रिटायर किया जा सकता है। रेलवे में 50 वर्ष की उम्र पार करने वाले यूनियन के पदाधिकारियों को वीआरएस देने तैयारी शुरू हो गई है। पूर्वोत्तर रेलवे में करीब 300 कर्मचारी नेता हैं जो इस दायरे में आ सकते हैं। सूत्रों के अनुसार नियम के दायरे में यूनियन के मुख्य पदाधिकारी भी हैं। माना जा रहा है कि रेल प्रशासन की नकेल के चलते ही कर्मचारी संगठनों की बोलती बंद है।
वेंटिलेटर पर रेलवे अस्पताल
पूर्वोत्तर रेलवे कभी गोरखपुर के आर्थिक विकास की धुरी हुआ करता था। यहां के ललित नारायण मिश्र रेलवे अस्पताल में देश भर के कर्मचारियों का इलाज होता है। दिल की बीमारी को लेकर पहला अत्याधुनिक आईसीसीयू यहां तीन दशक पहले शुरू हुआ था। वर्तमान में अस्पताल संविदा चिकित्सकों के भरोसे चल रहा है। बुखार जैसी दवाओं का मोहताज हो चुका अस्पताल वर्तमान में रेफरल केन्द्र बनकर रह गया है। सीनियर सेकेंड्री स्कूल में कभी प्रवेश के लिए मारामारी होती थी, आज यहां न तो शिक्षक हैं, न ही छात्र। रेलवे कर्मचारियों के लिए कैंटीन की सुविधा भी धीरे-धीरे खत्म हो चुकी है।
रिटायर्ड कर्मचारियों को काम
इसे विडंबना ही कहेंगे एक तरफ कर्मचारियों को जबरन रिटायर किया जा रहा है, वहीं रिटायर्ड कर्मचारियों को मानदेय पर रखकर काम लिया जा रहा है। नई भर्ती से बचने के लिए रेलवे बोर्ड ने री-इंगेजमेंट स्कीम (दोबारा भर्ती योजना) को एक दिसंबर 2020 तक के लिए बढ़ा दिया है। इसका फायदा उन रिटायर्ड कर्मचारियों को मिल रहा है, जो सेवानिवृत्ति के बाद भी दोबारा नौकरी की आस में थे। यह स्कीम एक दिसंबर 2019 को समाप्त होनी थी। रिटायर्ड कर्मचारियों को नौकरी पर रखने का अधिकार महाप्रबंधक के पास है। कर्मचारियों की कार्यकुशलता का आंकलन करने के बाद वह उनकी छंटनी भी कर सकते हैं। अब तक यह अधिकार विभागाध्यक्षों के पास था। फिलहाल पूर्वोत्तर रेलवे में 200 से अधिक रिटायर कर्मचारियों को इस योजना का लाभ मिल रहा है। इतना ही है कि रेलवे में गेटमैन की नियुक्ति भी नहीं हो रही है। पूर्वोत्तर रेलवे के 400 से अधिक अनमैन्ड फाटक पर भूतपूर्व सैनिकों को रखा गया है।
अनुकंपा के आधार पर नौकरी में कई शर्तें
अनुकंपा के आधार पर मिलने वाली नौकरी में भी कई शर्तें रखी जा रही है। पिछले दिनों आदेश आया कि रेलवे कर्मचारी की मौत 60 वें साल में होती है तो उनके पाल्यों को नौकरी मिलेगी। वहीं अनुकंपा के आधार पर पाल्यों को नौकरी उनकी योग्यता के आधार पर नहीं बल्कि अधिकारियों की मर्जी पर होगी। एनई रेलवे मेंस कांग्रेस के संरक्षक सुभाष दूबे कहते हैं कि कर्मचारी नेताओं का कोई आका नहीं है। जो खड़ा होकर कहे रेलवे में जो हो रहा है, वह गलत है। जिन्हें कर्मचारियों के हित में लडऩा है, वह रिटायर हो चुके हैं। 100 वर्ष की उम्र पूरी कर चुके लोग किस तरह कर्मचारी हितों की रक्षा करेंगे? तमाम कर्मचारी नेताओं के पुत्र अहम पदों पर हैं। नेतापुत्रों को कर्मचारियों के चंदे की रकम से लाख रुपये तक की सैलरी दी जा रही है। वह रेलवे में फ्री पास की सुविधा ले रहे हैं। जो कर्मचारी रिटायर किये जा रहे हैं, उनमें पिक और चूज की स्थिति दिख रही है।
पूर्वोत्तर रेलवे में सरेंडर हुए कई पद
पूर्वोत्तर रेलवे में कर्मचारियों की संख्या में साल दर साल कमी आ रही है। पिछले कुछ वर्षों में रेल प्रशासन ने 700 पदों को समाप्त किया है। रेलवे बोर्ड की स्टडी रिपोर्ट के मुताबिक पूर्वोत्तर रेलवे में 700 और भारतीय रेलवे में 11040 पद निरर्थक हैं, जो लंबे समय से खाली चल रहे हैं। लेकिन रेलवे में कई विभाग आउटसोर्सिंग के कर्मचारियों के भरोसे चल रहे हैं।
ट्रेनों में कोच अटेंडेंट, सफाई कर्मचारी, लांड्री आदि में आउटसोर्सिंग के कर्मचारियों को रखा जा रहा है। वेटिंग हॉल को प्राइवेट हाथों में दिया जा चुका है। सर्वाधिक संवेदनशील विभाग में शुमार सिग्नल में भी आउटसोर्सिंग के कर्मचारियों को रखा जा रहा है। रेलवे बोर्ड ने इन विभागों में चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों की भर्ती पर रोक लगा दी है।