ऐसे और यहां याद किये रामधारी सिंह दिनकर
हिन्दी के प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार, आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि रामधारी सिंह 'दिनकर' का आज ही के दिन 1908 में जन्म हुआ था। 'दिनकर' स्वतन्त्रता पूर्व एक विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतन्त्रता के बाद 'राष्ट्रकवि' के नाम से जाने गये।
लखनऊ: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर स्मृति समारोह का आयोजन 23 सितम्बर को यशपाल सभागार में किया गया। बताते चलें कि हिन्दी के प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार, आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि रामधारी सिंह 'दिनकर' का आज ही के दिन 1908 में जन्म हुआ था। 'दिनकर' स्वतन्त्रता पूर्व एक विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतन्त्रता के बाद 'राष्ट्रकवि' के नाम से जाने गये।
स्मृति समारोह के यशपाल सभागार मेंडॉ. सदानन्द प्रसाद गुप्त, कार्यकारी अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की अध्यक्षता में आयोजित समारोह में मुख्य वक्ता के रूप में डॉ. शंभु नाथ, पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान आमंत्रित थे।
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दीप प्रज्वलन माँ सरस्वती की प्रतिमा एवं राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के चित्र पर पुष्पांजलि के उपरान्त प्रारम्भ हुए कार्यक्रम में वाणी वन्दना की प्रस्तुति आराधना संगीत संस्थान द्वारा की गयी।
मंचासीन अतिथियों का उत्तरीय द्वारा स्वागत डॉ. सदानन्द प्रसाद गुप्त, कार्यकारी अध्यक्ष उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने किया।
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मुख्य वक्ता के रूप में आमंत्रित डॉ. शंभु नाथ, पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान कहा-आज विश्व की निगाहें हमारे भारतवर्ष पर है।
दिनकर की कविता ‘आज कलम उनकी जय बोल‘ कविता ने देश की आजादी व स्वतंत्रता आन्दोलन को गतिशीलता प्रदान की। दिनकर युगधर्मी कवि हैं, दिनकर ने बहुत अच्छी रोमानी कविताएँ भी लिखीं। उनकी कविताएँ आध्यात्मिकता से ओत-प्रोत हैं। दिनकर की पहचान ‘रेणुका‘ रचना से मिली।
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उन्होंने कहा कि वे कुशल सम्पादक थे। ‘कुरुक्षेत्र‘ उनकी अमर रचना है। दिनकर पर माक्र्स का प्रभाव था। उनकी कविताओं में दीन-दुखियों का दर्द दिखायी पड़ता है। ‘बापू‘ रचना उन्होंने गांधीजी से प्रभावित होकर लिखी। दिनकर की राष्ट्रीय कविताओं ने युवाओं में स्वतंत्रता के प्रति ऊर्जा भरती रहीं।
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इसके साथ ही उन्होंने कहा कि वे सुभाषचन्द्र बोस से भी प्रभावित रहे। ‘हारे को हरिराम‘ रचना में उनका अध्यात्मिक भाव दिखायी देता है। दिनकर राष्ट्रीयता के कवि हैं। दिनकर की रचना ‘रश्मि रथी‘ में कर्ण के बारे में वर्णन किया गया है।
अध्यक्षीय सम्बोधन में डॉ. सदानन्दप्रसाद गुप्त, मा0 कार्यकारी अध्यक्ष, उप्र हिन्दी संस्थान ने कहा कि राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर युगधर्मी कवि हैं।
दिनकर उत्तरछायावादी कवि है। दिनकर की कविताएँ ठोस धरातल की कविताएँ हैं। दिनकर की कविताएँ यथार्थ चेतना से परिपूर्ण हैं। दिनकर भारतीय चेतना के कवि है। दिनकर की राष्ट्रीय चेतना में सशक्त संघर्ष की आवाज सुनायी पड़ती है।
इसके साथ ही उन्होंने रहा कि दिनकर की कविताओं में संस्कृति परिलक्षित होती है। भारतीय संस्कृति एक अखण्ड प्रवाह वाली संस्कृति है। दिनकर राष्ट्रीय चेतना के प्रमुख कवि के रूप में हमारे सामने आते हैं।
इस अवसर पर आराधना संगीत संस्थान की ओर से राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी की ‘मेरे नगपति मेरे विशाल‘, कंचन थाल सजा फूलों से‘, ‘बहुत दिनों पर मिले आज तुम‘ तथा ‘कलम आज उनकी जय बोल‘ शीर्षक कविताओं की संगीतमयी प्रस्तुति की गयी, जिनमें मुख्य स्वर डॉ. ऋचा चतुर्वेदी का था।
रामधारी सिंह 'दिनकर' पर एक नजर...
हिन्दी के प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार, आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि रामधारी सिंह 'दिनकर' का आज ही के दिन 1908 में जन्म हुआ था। 'दिनकर' स्वतन्त्रता पूर्व एक विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतन्त्रता के बाद 'राष्ट्रकवि' के नाम से जाने गये।
वे छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के कवि थे। उनकी कविताओ में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति की पुकार है तो दूसरी ओर कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति भी मिलती है। इन्हीं दो प्रवृत्तियों का चरम उनकी कुरुक्षेत्र और उर्वशी में मिलता है।
दिनकर का जन्म बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया गाँव में हुआ था। उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से इतिहास, दर्शनशास्त्र और राजनीति विज्ञान में बीए किया। संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी और उर्दू पर उनकी पकड़ थी। स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वह अध्यापक हो गये। वह बिहार सरकार की सेवा में सब-रजिस्ट्रार और प्रचार विभाग के उपनिदेशक पदों पर भी रहे। बाद में भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार बने।
दिनकर को पद्म विभूषण की उपाधि से भी अलंकृत किया गया। उनकी पुस्तक संस्कृति के चार अध्याय के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा उर्वशी के लिये भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया। द्वापर युग की ऐतिहासिक घटना महाभारत पर आधारित उनके प्रबन्ध काव्य कुरुक्षेत्र को विश्व के १०० सर्वश्रेष्ठ काव्यों में 74वाँ स्थान मिला है।