पूर्णिमा श्रीवास्तव
गोरखपुर: केन्द्र से लेकर प्रदेश की भाजपा सरकारें देश ही नहीं विदेशों में भी खुले में शौच से मुक्ति के अभियान का गुणगान करते नहीं थक रही हैं। यह यूपी में भाजपा के सत्ता के वनवास को खत्म करने में सहायक बताया गया तो केंद्र में वापसी के लिए भी इसे कारगर बताया गया। उपलब्धियों के शोर के बीच न तो कोई गांव में ओडीएफ की जमीनी हकीकत देखना चाह रहा है, न ही विपक्ष कुछ करने की स्थिति में दिख रहा है।
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गोरखपुर समेत कुशीनगर, महराजगंज और देवरिया को ओडीएफ (खुले में शौच से मुक्त) घोषित हुए पूरे एक साल गुजर चुके हैं मगर अखबारों में शौचालय के गड्ढे में गिर कर बच्चे की मौत, खेत में शौच करने गई किशोरी से बलात्कार और सडक़ किनारे शौच कर रही महिला को तेज रफ्तार वाहन से रौंदा जैसे शीर्षक ओडीएफ को लेकर सरकारी दावों पर सवाल खड़े कर रही है। यह स्थिति तब है जब सिर्फ मुख्यमंत्री के गृह जनपद गोरखपुर जिले में 6 लाख से अधिक शौचालयों पर 900 करोड़ से अधिक की रकम खर्च की जा चुकी है। मौतों से लेकर बलात्कार के आकड़े ओडीएफ की कलई खोल रहे हैं। जब भी योजना में गोलमाल को लेकर सवाल उठते हैं, अफसर जांच, एफआईआर, निलंबन जैसी कवायद से गोलमाल के गड्ढों को ढकने कोशिश करते नजर आने लगते हैं।
इन सवालों का जवाब नहीं
कुशीनगर जिले को पिछले वर्ष ओडीएफ घोषित किया गया था मगर गांधी जयंती के दूसरे ही दिन ओडीएफ घोषित गांव रजवटिया की सांस-बहू तब तेज रफ्तार वाहन की चपेट में आ गईं जब वे शौच करने जा रही थीं। हादसे में सूरत प्रसाद की पत्नी दुर्गावती देवी की मौत हो गई और बहू प्रीती गंभीर रूप से घायल हुई थीं। संतकबीर नगर में पिछले दिनों 8 महीने से अधूरे पड़े शौचालय के सोकपिट में गिरकर ढाई साल के मासूम की मौत हो गई। परिवार वाले शौचालय के लिए मिलने वाली रकम के लिए प्रधान से लेकर अफसरों तक की दौड़ लगाते रहे। उन्हें स्वच्छ भारत मिशन के सपने की कीमत अपने मासूम की मौत से चुकानी पड़ी। वहीं पिपरौली के खानपुर में शौचालय के लिए खोदे गए गड्ढे में गिरकर भैंस मर गई।
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पैसा मिलने पर भी काम नहीं हो रहा
पिपरौली ब्लाक के खानिमपुर में दर्जनों घरों में आज भी शौचालय नहीं बना है। सरकार द्वारा पंचायत के खाते में लंबे समय से धन दे दिया गया है, लेकिन ग्राम पंचायत स्तर पर कार्य नहीं कराया जा रहा है। इस गांव की पुष्पा देवी कहती हैं कि प्रधान के लोगों ने बताया कि गड्ढा खोदवा लीजिए, शौचालय बनवाने के लिए धन सरकार दे देगी। गड्ढा खोदवाकर कई महीना इंतजार किये। इस गड्ढे में भैंस गिर गयी, बहुत दवा हुई, लेकिन उठ नहीं सकी। 50 हजार की भैंस थी। गांव के कई और लोग गड्ढा खोदवाने के बाद महीनों इंतजार किए मगर जब धन नहीं आया तो लोगों को लगा कि गड्ढे में और हादसा हो सकता है। इसलिए रमाकांत, भैरोनाथ आदि ने अपना गड्ढा पटवा दिया। शिव चरन यादव की पत्नी मुन्नी देवी कहती हैं कि गड्ढा खोदवाने के बाद महीनों इंतजार किया, लेकिन सरकारी पैसा नहीं आया तो कर्ज लेकर शौचालय बनवा रही हूं। मीरा पत्नी रमाकांत और कुसुम गौड़ पत्नी गोविंद की भी शिकायत है कि शौचालय के लिए सरकारी फंड नहीं मिला जिससे शौचालय नहीं बन सका। यही हाल जयशीला का भी है।
पाल टोले में नहीं पहुंचा पैसा
गांव के लोगों ने बताया कि पाल लोगों के टोले में भी लोगों को शौचालय का फंड नहीं मिला है। बताया जाता है कि इस गांव में करीब पांच सौ परिवार हैं। इसमें 449 लोगों के शौचालय के लिए पिछले वर्ष ही फंड जारी हुआ था। खाते में लाखों रुपये बैलेंस होने के बावजूद शौचालय निर्माण नहीं कराया जा रहा है। यह हाल तब है जब स्वच्छ स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के तहत जिले को एक साल पहले ही ओडीएफ घोषित कर दिया गया है।
अफसरों के दावे की हवा निकली
ओडीएफ जिले गोरखपुर में खेत में शौच करने गई किशोरी से बलात्कार की खबरें अफसरों के दावों की हवा निकाल रही है। पिछले मई महीने में गोरखपुर के चिलुआताल क्षेत्र में शौच करने गई किशोरी से छेडख़ानी हुई। रात में शौच करने गई किशोरी के साथ गांव के युवकों ने ही छेडख़ानी कर दी। जांच में पता चला कि किशोरी के घर में शौचालय तो है पर अनुदान नहीं मिलने के चलते अधूरा बना है। अप्रैल महीने में पिपराइच में शौच करने गई युवती के साथ गांव के ही युवकों ने सामूहिक बलात्कार किया। जून महीने में चौरीचौरा के एक गांव में दलित किशोरी से गैंगरेप हुआ। गांव के तीन युवकों पर केस दर्ज हुआ। घर में शौचालय होने के बाद भी किशोरी रात में शौच के लिए गांव के बाहर खेत में गई थी। जाहिर है बलात्कार की घटनाएं सरकार के ‘इज्जतघर’ पर बड़ा सवाल है। सरकार ने जिस मंशा से शौचालयों को ‘इज्जतघर’ बनाया वह फिलहाल पूरी होती नहीं दिख रही है। वर्ष 2013 से अब तक गोरखपुर में 5.30 लाख शौचालयों के निर्माण का दावा किया जाता है। जिले के ओडीएफ घोषित होने के बाद भी दो बार सर्वे कराया गया। पहली बार 60 हजार और दूसरी बार करीब 20 हजार ऐसे लोग चिह्नित किए गए जिनके पास शौचालय नहीं हैं। इन्हें भी शौचालय के लिए 12 हजार रुपये प्रोत्साहन राशि के तौर पर दिए जा रहे हैं।
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अफसरों के अजब-गजब तर्क
ओडीएफ को लेकर उठ रहे सवालों पर अफसर अजब-गजब तर्क दे रहे हैं। गोरखपुर के डीपीआरओ हिमांशु शेखर ठाकुर का कहना है कि जिले में करीब पौने छह लाख शौचालयों का निर्माण हुआ है। गड्ढा खोदे जाने के बाद चिनाई होती है तो लाभार्थी के खाते में छह हजार जाते हैं। शौचालय पूर्ण होने पर फिर छह हजार दिए जाते हैं। कुछ शौचालय ही अपूर्ण हैं। करीब 15 से 20 हजार शौचालय नहीं बने हैं। जिन लाभार्थियों ने रकम लेने के बाद भी शौचालय नहीं बनवाया है, उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज कराएंगे।
नगर निगम गोरखपुर में भी फर्जीवाड़ा
नगर निगम गोरखपुर 10,942 व्यक्तिगत शौचालय बनाकर सालभर पहले ही शहर को ओडीएफ घोषित कर चुका है। वहीं शहर में सामुदायिक शौचालय और यूरिनल पर नगर निगम 10 करोड़ से अधिक खर्च कर चुका हैं। निगम के अफसर ओडीएफ को लेकर केंद्रीय टीम का दो बार दौरा करा चुके हैं, लेकिन पार्षद यह लिखकर देने को तैयार नहीं हैं कि उनका वार्ड ओडीएफ हो गया है। पार्षद जियाउल इस्लाम कहते हैं कि प्रदेश में एक के बाद एक घोटाले खुल रहे हैं। शौचालय के नाम पर सिर्फ लूट हुई है। उच्चस्तरीय जांच हो तो नीचे से ऊपर तक के अधिकारी नपेंगे।
कुछ और है हकीकत
स्वच्छ भारत अभियान के तहत जिले में 923 ग्राम पंचायतों में तीन लाख परिवारों को शौचालय निर्माण के लिए बजट आवंटित कर 30 सितंबर 2018 को जिले को खुले में शौचमुक्त घोषित कर दिया गया था। हकीकत कुछ और ही है। निचलौल तहसील क्षेत्र के बीजापार, गेरमा, कुइयां गांव में तमाम शौचालय अधूरे पड़े हैं। निचलौल तहसील क्षेत्र के बीजापार गांव के बाहर खुले में शौचमुक्त घोषित होने की वास्तविक तस्वीर दिख जाती है। सुबह और शाम के समय तमाम महिलाएं सडक़ किनारे शौच को दिख जाती हैं। इस गांव में करीब दो दर्जन लोग ऐसे हैं, जिनका शौचालय अधूरा है। कुछ शौचालय ऐसे हैं, जहां भूसा रखा गया है।
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गेरमा गांव की सुभावती देवी ने बताया कि ग्राम प्रधान से लेकर ब्लॉक तक के अधिकारियों से शिकायत की, लेकिन शौचालय नहीं बन सका। शिकायत करने का कोई मतलब नहीं है। कुशीनगर जिले के विशुनपुरा ब्लाक के डिबनी गांव पिछले मई महीने में सुखिर्यों में आया था जब गांव के प्रद्युम्न की नई नवेली दुल्हन सुनीता चौहान यह कहते हुए मायके लौट गई कि ससुराल में शौचालय बनने के बाद ही वहां जाएगी। सुनीता की सास विमला प्रधान व सचिव से मिलकर कई बार शौचालय की मांग की, लेकिन आज तक शौचालय नहीं बन सका।
मुसहर बस्तियों में नहीं बने टॉयलेट
मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ कुशीनगर के मुसहर बस्ती में पहुंचे थे। तब वहां उन्होंने 5000 मुसहर परिवारों के लिए टॉयलेट बनाने का ऐलान किया था। अफसरों ने मुसहर परिवारों को चिन्हित कर डीपीआर तैयार कर लिया और करोड़ों रुपये खपा भी दिए। मुख्यमंत्री का जोर था कि मुसहर बस्तियों में घर बनने से इंसेफेलाइटिस से जंग लडऩे में मदद मिलेगी। जिला प्रशासन के आकड़ों में कुशीनगर जिले के 138 गांवों की 159 मुसहर बस्तियों में रहने वाले 10247 मुसहर परिवारों के घरों में शौचालय बन चुके हैं। दुदही, फाजिलनगर, नेबुआ नौरंगिया, रामकोला, सेवरही और विशुनपुरा आदि ब्लॉक के मुसहर बस्तियों में स्वच्छ भारत मिशन के तहत बने शौचालयों का कोई उपयोग नहीं है। कहीं प्रधान ने गड्ढा खुदवाकर रकम हड़प ली तो कहीं लाभार्थी ने अनुदान में मिली रकम को बीमारी में खर्च कर दिया। मुसहर बस्ती शाहपुर माफी में टॉयलेट के लिए खोदे गए गड्ढे ओडीएफ की हकीकत बयां कर रहे हैं। दुदही ब्लाक कपिलदेव की झोपड़ी के बगल में बने शौचालय में दरवाजा ही नहीं लगा है। टॉयलेट की सीट में ईंट भरी हुई है। इसी तरह ठाढीभार से सुसल मुसहर के टॉयलेट में लगा टीन का दरवाजा पूरी तरह टूट चुका है।
अफसर के केबिन में पहुंच गई दुल्हन
महराजगंज की प्रियंका भारती ने अपने ससुराल को सिर्फ इसलिए छोड़ दिया था क्योंकि वहां टॉयलेट नहीं था। इसके बाद सुलभ इंटरनेशनल ने प्रियंका को पुरस्कृत किया था और महराजगंज प्रशासन ने उसे स्वच्छ भारत मिशन का ब्रांड एंबेस्डर बनाया था। प्रियंका का प्रकरण 6 साल पुराना है। तब महराजगंज जिला ओडीएफ नहीं घोषित था। अब पूरा जिला ओडीएफ है, पर दुल्हन अफसरों के केबिन तक शौचालय की गुहार लेकर जाने को मजबूर हैं। पिछले दिनों महराजगंज जिले के संपूर्ण समाधान दिवस में घूंघट में दुल्हन पहुंची तो सभी दंग रह गए। पहले तो लोगों ने सोचा की कोई पारिवारिक मामला होगा, लेकिन जब उसने एसडीएम को पत्र सौंपा तो पूरी कहानी सामने आ गई। सभी को शौचालय देने का दावा करने वाले अधिकारियों की पोल खुल गई। दुल्हन ने घूंघट में ही अपनी पीड़ा को बयां करते हुए इज्जत घर निर्माण कराने की मांग की।
कार्रवाई के बाद भी बदसूरत तस्वीर
ओडीएफ को लेकर झूठी सूचनाओं, गोलमाल की खबरें सिर्फ गोरखपुर ही नहीं कुशीनगर, देवरिया व महराजगंज जिलों में भी बेशुमार हैं। प्रदेश के चार जिलों में शौचालय निर्माण की फर्जी रिपोर्ट पर डीपीआरओ सहित कई स्टाफ को सस्पेंड किया जा चुका है। पर, मुख्यमंत्री के जिले ही नहीं आसपास के अफसरों को अभयदान मिला हुआ है। डीपीआरओ और सीडीओ के निर्देश पर खोराबार के एक ही ग्राम पंचायत में जांच हुई तो करीब 15 लाख का घोटाला पकड़ा गया जिसमें प्रधान व सचिव के विरुद्ध एफआईआर दर्ज करायी गयी है। सरदारनगर में भी जांच के दौरान एक ही ग्राम पंचायत में दस लाख से अधिक की धांधली पकड़ी जा चुकी है। वहीं खजनी, पिपरौली, कैम्पियरगंज, गगहा आदि ब्लाकों में निरीक्षण के दौरान शौचालय निर्माण में अनियमितता के मामले सामने आ चुके हैं।