साध्वी उमा भारती और ऋतंभरा ने ऐसे डाली थी अयोध्या आंदोलन में जान

अयोध्या आंदोलन का इतिहास वैसे तो काफी लम्बा चौडा है पर नब्बे के दशक से जिस तरह आंदोलन ने गति पकड़ी और उसने एक से एक नेताओं को जन्म दिया।

Update: 2019-11-10 08:41 GMT

श्रीधर अग्निहोत्री

लखनऊ: अयोध्या आंदोलन का इतिहास वैसे तो काफी लम्बा चौडा है पर नब्बे के दशक से जिस तरह आंदोलन ने गति पकड़ी और उसने एक से एक नेताओं को जन्म दिया। पर इन नेताओं की लम्बी चौडी सूची में दो महिला नेत्रियों साध्वी उमा भारती और ऋतंभरा के योगदान को इतिहास कभी नहीं भुला पाएगा।

भाजपा और संघ की विचारधारा से ओतप्रोत उमाभारती और ऋतंभरा ने एक तरफ जहां नारी शक्ति में प्राण जगाने का काम किया। वहीं पुरुष वर्ग को ललकारते हुए आंदोलन को जगाने का काम किया।

1989 में जब वीपी सिंह के नेतृत्व में साझा सरकार का गठन हुआ और मंडल की राजनीति गरमाई तो भाजपा अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी अपनी रामरथ यात्रा से मंडल की राजनीति को कमजोर किया और देश की राजनीति कमंडल की तरफ मुड गयी।

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बाबरी ढांचा विध्वंस में सबसे आगे थी उमा भारती

उत्तर भारत की राजनीति में राममंदिर निर्माण का आंदोलन तेज हो गया। इसी बीच मध्य प्रदेश की राजनीति से निकली उमा भारती अपने भगवाधारी रूप और देश के उच्चतम नेताओं अटल आडवाणी के करीब होने के कारण अचानक चर्चा में आ गयी।

लोधी जाति से ताल्लुक रखने वाली अयोध्या आन्दोलन के लिए जाना पहचाना नाम बन चुका था। यहां तक कि जब अयोध्या में बाबरी ढांचा विध्वंस हुआ तो वह उसमें सबसे आगे उमा भारती ही थी। वही एक ऐसी भाजपा नेत्री थी जिन्होंने बाद में स्वीकार किया था कि बाबरी विध्वंस होने पर उन्हे गर्व है।

90 के दशक में जब अयोध्या आंदोलन अपने चरम पर था तो उमा भारती का भगवा स्वरूप उत्तर भारती की रामभक्त जनता के लिए एक आदर्श स्वरूप बन चुका था।

यहां तक कि 1991 के यूपी विधानसभा चुनाव में उनकी जनसभा पाने के लिए प्रत्याशियों में होड रहती थी कि यदि उमा भारती की एक जनसभा हो जाए तो चुनाव जीता जा सकता है।

उस दौरान उनका दिया हुआ नारा ‘‘ रामलला हम आएगें, मंदिर वहीं बनाएंगें’’ पूरे देश में लोगों की जुबान पर छा गया था। देश में जब साध्वी ऋतम्भरा के हिन्दुत्व को जगाने वाले कैसेटों की धूम मची थी तो कहा गया कि यह सारे भाषण उमा भारती के ही हैं। पर बाद में लोगों ने जाना कि यह उमा भारती नहीं बल्कि साध्वी ऋतम्भरा है।

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साध्वी ऋतंभरा पहली बार ऐसी आई थी चर्चा में

इसी तरह 1988 में हुए गंगा आदांलन के दौरान स्वामी परमानन्द महाराज की शिष्या साध्वी ऋतंभरा पहली बार चर्चा में आई जब उन्होंने गंगा की अविरल धारा को लेकर गंगा खुदाई आन्दोलन में हिस्सा लिया।

पंजाब के लुधियाना जिले से आने वाली साध्वी ऋतम्भरा उत्तर भारत के अयोध्या आंदोलन में एक जाना पहचाना नाम बन चुका था। अयोध्या आंदोलन में उनके हिन्दुओं के जगाने वाले भाषणों ने जनता में जनजागरूकता जगाने का काम किया।

उस दौरान वीपी सिंह की केन्द्र में और मुलायम सिंह यादव की यूपी में सरकार थी। दोनो की सरकारों का मुस्लिम तुष्टीकरण अपने चरमत्कोर्ष पर था पर साध्वी ऋतम्भरा जब मंच से इन नेताओं को ललकारती तो मंच के सामने उपस्थिति हिन्दू जनमानस के पूरे शरीर में रोमांच पैदा हो जाता था।

यहां तक कि उनके कैसटों की धूम मची होती थी। यही कारण है कि जब सुप्रीमकोर्ट ने 9 नवम्बर को अयोध्या पर अपना फैसला दिया तो साध्वी ऋतंभरा खुशी से रो उठी।

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