Formal Education: पुरानी फाइल से! अनौपचारिक शिक्षा योजना में संशोधन का फैसला

Formal Education: अनौपचारिक शिक्षा योजना में संशोधन के फैसले का अनुमानित सारांश है कि शिक्षा मंत्रालय ने योजना में कुछ संशोधनों का फैसला लिया है। इस फैसले के बाद योजना में अनौपचारिक शिक्षा को बढ़ावा देने की ताकत मिलेगी।

Update:2023-05-09 23:01 IST
Formal Education (social media)

Education News : मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने अनौपचारिक शिक्षा योजना की खामियों को देखते हुए उसमें संशोधन का फैसला किया है। संशोधित योजना को वैकल्पिक एवं नवोन्मेषी शिक्षा योजना का नाम दिया गया है।
योजना आयोग के कार्यक्रम व मूल्यांकन अनौपचारिक शिक्षा योजना के क्रियान्वयन में कई खामियां गिनाई हैं और इन्हें दूर करने के लिए सरकार को सुझाव भी दिये हैं। मूल्यांकन संगठन के अनुसार राष्ट्रीय अनौपचारिक शिक्षा योजना ने नकारात्मक रूप ले लिया है। संगठन के मुताबिक इस योजना की सबसे बड़ी खामी यह है कि इसमें ग्रामीण जनता और पंचायती राज संस्थाओं की भागीदारी बहुत कम है तथा औपचारिक शिक्षा प्रणाली के साथ इसका कोई तालमेल नहीं है।

संगठन ने सुझाव दिया है कि संशोधित योजना को सामान्य स्कूलों तथा राष्ट्रीय ओपन स्कूल के साथ जोड़ा जाना चाहिए। सरकार का इरादा है कि सन् 2010 तक प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमिकीकरण का लक्ष्य पाने के लिए बनाई गयी योजना में इसे भी शामिल किया जाये।

बालिका शिक्षा के मामले में भी यह शिक्षा खासी निरर्थक रही है। योजना पर लागत का आकलन करने में भी लापरवाही बरती जा रही है। नतीजतन पढ़ाई के लिए बहुत घटिया स्तर की सामग्री की आपूर्ति की जा रही है। हालांकि इन सबके बावजूद संगठन यह मानता है कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा पिछड़े वर्ग के बच्चों में साक्षरता बढ़ाने में योजना काफी हद तक कामयाब साबित हुई है।

संशोधित वैकल्पिक एवं नवोन्मेषी शिक्षा योजना का लक्षित समूह भी वही होगा जो अनौपचारिक शिक्षा का था। यानि 6 से 14 साल के बच्चे। इन बच्चों को औपचारिक विद्यालय प्रणाली में वापस लाना ही इसका मकसद होगा और जहां यह संभव नहीं है वहां उन्हें अपेक्षाकृत कुशल वैकल्पिक शिक्षा सुविधा प्रदान करने की बात योजना में है।

संशोधित योजना की सबसे खास बात यह है कि वैकल्पिक एवं नवोन्मेषी शिक्षा के केंद्र वहीं खोले जायेंगे जहां स्थानीय समुदाय इसकी मांग करेगा। ऐसे सभी स्थानों पर जहां एक किमी के दायरे में कोई भी शिक्षा केंद्र नहीं है, वे इसके केंद्र में रहेंगे। हालांकि प्राथमिकता अब भी देश के दस सबसे पिछड़े राज्यों आंध्र प्रदेश, अरूणाचल प्रदेश, आसाम, बिहार, जम्मू कश्मीर, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल को ही दी जायेगी।

संशोधित योजना में पांच विकल्प रखे गये हैं। पहला, ऐसी अनारक्षित श्रेणी की बस्तियां जहां कोई स्कूल नहीं है। इसके लिए आंध्र प्रदेश की ‘इजीयस’ प्रणाली को ध्यान में रखा जायेगा। दूसरा, ऐसे आवासीय शिविर, जो उन बच्चों को पढ़ाने लिखाने का काम करेंगी, जो स्कूल छोड़ चुके हैं। ऐसे बच्चों के लिए संक्षिप्त और छोटे पाठ्यक्रम तैयार किये जायेंगे। इन शिविरों को ‘बैक टू स्कूल कैंप’ नाम दिया जायेगा। तीसरा, शहरी मलीन बस्तियों में ऐसे औपचारिक अल्पकालिक शिक्षण कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे जो बच्चों को औपचारिक स्कूलों में जाने योग्य बनाएंगे। चैथा, किशोरियों को पढ़ने की विविध सामग्री प्रदान करने का प्रयास किया जायेगा, ठीक उसी तरह जैसे कि महिला शिक्षा केंद्र तथा महिला सामाख्या परियोजना में हो रहा है।

पांचवे विकल्प के तहत बिल्कुल नये किस्म की प्रायोगिक परियोजनाएं शुरू की जाएंगी।

संशोधित योजना में बालिका शिक्षा पर ज्यादा ध्यान दिया जायेगा और महिलाओं को ही शिक्षिकाओं, प्रशिक्षिकाओं के तौर पर नियुक्त किया जायेगा। योजना की समीक्षा और निगरानी का काम भी अलग ढ़ंग से करने का प्रस्ताव है जिसमें निरीक्षण की बजाये मार्ग दर्शन पर जोर होगा। यही नहीं शिक्षक और सुपरवाईजर पूरी तरह से ग्राम शिक्षा समितियों के प्रति जवाबदेह होंगे। अकादमिक रूप से ये शिक्षक ‘डायट’ से निर्देशित होंगे।

इस योजना में राज्यों को अपने मॉडल स्वयं चुनने की छूट होगी। संशोधित योजना के केंद्रों का मूल्यांकन इस आधार पर होगा कि इनसे निकल कर कितने बच्चे औपचारिक स्कूलों में पढ़ने जाते हैं। यह भी देखा जायेगा कि राष्ट्रीय ओपन स्कूल के साथ इनके संबंध कितने पुख्ता हैं।

संशोधित योजना में केंद्र और राज्यों की सहभागिता 75 और पच्चीस के अनुपात में होगी। योजना में प्रति प्राथमिक शिक्षा केंद्र के लिए निर्धारित राशि को 375 रूपये वार्षिक से बढ़ा कर 845 रूपये कर दिया गया है। जबकि उच्च प्राथमिक केंद्रों के लिए दी जाने वाली धनराशि को 580 रूपये से बढ़ाकर 1200 रूपये वार्षिक कर दिया गया है। यह भी तय किया गया है कि योजना की प्रबंधन लागत निर्धारित धनराशि की पांच फीसदी से अधिक नहीं रखी जायेगी।
(मूल रूप से दैनिक जागरण के नई दिल्ली संस्करण में दिनांक- 26 जुलाई, 2000 को प्रकाशित)

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