किसानों के साथ शिवपाल: भारत बंद का एलान, करेंगे कृषि सुधार अध्यादेश का विरोध

प्रसपा मुखिया ने बुधवार को कहा कि कि नए अध्यादेशों के तहत सरकार मंडियों को छीनकर कॉरपोरेट कंपनियों को देना चाहती है। अधिकांश छोटे जोत के किसानों के पास न तो न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए लड़ने की ताकत है और न ही वह इंटरनेट पर अपने उत्पाद का सौदा कर सकते हैं।

Update: 2020-09-23 14:30 GMT
किसानों के साथ शिवपाल: भारत बंद का एलान, करेंगे कृषि सुधार अध्यादेश का विरोध

लखनऊ: प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवपाल यादव ने मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा है कृषि सुधार अध्यादेशों के तहत सरकार ने देश के अन्नदाताओं पर आजादी के बाद का सबसे बड़ा हमला किया है। सरकार के इन तथा कथित सुधारों में न्यूनतम समर्थन मूल्य की कोई चर्चा नहीं है। उन्होंने किसान संगठनों के आह्वान पर आगामी 25 सितंबर को भारत बंद को समर्थन देते हुए कहा कि आज अगर चैधरी चरण सिंह, लोहिया और समाजवादियों की विरासत सत्ता में होती तो अन्नदाताओं के साथ इतना बड़ा छल नहीं हो सकता था।

सरकार मंडियों को छीनकर कॉरपोरेट कंपनियों को देना चाहती है

प्रसपा मुखिया ने बुधवार को कहा कि कि नए अध्यादेशों के तहत सरकार मंडियों को छीनकर कॉरपोरेट कंपनियों को देना चाहती है। अधिकांश छोटे जोत के किसानों के पास न तो न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए लड़ने की ताकत है और न ही वह इंटरनेट पर अपने उत्पाद का सौदा कर सकते हैं। इससे तो किसान बस अपनी जमीन पर मजदूर बन के रह जाएगा। उन्होंने कहा कि इस अध्यादेश के जरिये केंद्र सरकार कृषि का पश्चिमी मॉडल हमारे किसानों पर थोपना चाहती है लेकिन सरकार यह बात भूल जाती है कि हमारे किसानों की तुलना विदेशी किसानों से नहीं हो सकती क्योंकि हमारे यहां भूमि-जनसंख्या अनुपात पश्चिमी देशों से अलग है और हमारे यहां खेती-किसानी जीवनयापन करने का साधन है वहीं पश्चिमी देशों में यह व्यवसाय है।

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छोटे जोत वाले किसानों के पास मोल-भाव करने की क्षमता नहीं

शिवपाल ने कहा कि सरकार जिसे सुधार कह रही है वह अमेरिका, यूरोप जैसे कई देशों में पहले से ही लागू होने के बावजूद वहां के किसानों की आय में कमी आई है। उन्होंने बताया कि 1960 के दशक से ही किसानों की आय में गिरावट आई है। इन वर्षों में यहां पर अगर खेती बची है तो उसकी वजह बड़े पैमाने पर सब्सिडी के माध्यम से दी गई आर्थिक सहायता है। उन्होंने कहा कि इस अध्यादेश के तहत बड़े कारोबारी सीधे किसानों से उपज खरीद कर सकेंगे, लेकिन इस देश में 80 फीसदी छोटे जोत वाले किसान हैं, जिनके पास मोल-भाव करने की क्षमता नहीं है, वे इसका लाभ कैसे उठाऐंगे?

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मंडल या प्रांत में बार-बार चक्कर काटने होंगे

शिवपाल ने कहा कि एक राष्ट्र, एक मार्केट बनाने की बात करने वाली सरकार को यह नहीं पता कि जो किसान अपने जिले में अपनी फसल नहीं बेच पाता है, वह राज्य या दूसरे जिले में कैसे बेंच पायेगा। उन्होंने कहा कि इस अध्यादेश की धारा-4 में कहा गया है कि किसान को पैसा तीन कार्य दिवस में दिया जाएगा। किसान का पैसा फंसने पर उसे दूसरे मंडल या प्रांत में बार-बार चक्कर काटने होंगे। न तो दो-तीन एकड़ जमीन वाले किसान के पास लड़ने की ताकत है और न ही वह इंटरनेट पर अपना सौदा कर सकता है। यही कारण है किसान इसके विरोध में है।

किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिल सकेगा

प्रसपा अध्यक्ष ने कहा कि अगर मंडियां खत्म हो गईं तो किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिल सकेगा। उन्होंने कहा कि एक राष्ट्र, एक मार्केट की बात करने वाली सरकार एक राष्ट्र और एक न्यूनतम समर्थन मूल्य की बात क्यों नहीं कर रही। शिवपाल ने कहा कि सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम-1955 में बदलाव करके निजी हाथों में खाद्यान्न जमा होने की इजाजत दे दी है। अब सरकार का इस पर कोई नियंत्रण नहीं होगा।

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धीरे-धीरे कृषि से जुड़ी पूरी ग्रामीण अर्थव्यवस्था चैपट हो जायेगी

उन्होंने कहा कि कोरोना संकट काल में यह नियंत्रण सरकार के हाथ में है इसलिए लोगों को अनाज को लेकर दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ा। लेकिन इस अध्यादेश के लागू होने से धीरे-धीरे कृषि से जुड़ी पूरी ग्रामीण अर्थव्यवस्था चैपट हो जायेगी। पूंजीपति सप्लाई चेन को अपने हिसाब से तय करेंगे और मार्केट को चलाएंगे, जिसका सीधा असर ग्राहकों पर पड़ेगा। अब पूंजीपति इस जरिए फसलों की जमाखोरी करेंगे। इससे बाजार में अस्थिरता उत्पन्न होगी और महंगाई बढ़ेगी। ऐसें में इन्हें नियंत्रित किए जाने की आवश्यकता है।

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विवाद सुलझाने के लिए 30 दिन के अंदर समझौता मंडल में जाना होगा

उन्होंने कहा कि इसमें अगर विवाद हुआ तो नुकसान किसानों का है। विवाद सुलझाने के लिए 30 दिन के अंदर समझौता मंडल में जाना होगा। वहां न सुलझा तो धारा 13 के अनुसार एसडीएम के यहां मुकदमा करना होगा। एसडीएम के आदेश की अपील जिला अधिकारी के यहां होगी और जीतने पर किसान को भुगतान करने का आदेश दिया जाएगा। देश के 85 फीसदी किसान के पास दो-तीन एकड़ जोत है। ऐसे में विवाद होने पर उनकी पूरी पूंजी वकील करने और ऑफिसों के चक्कर काटने में ही खर्च हो जाएगी।

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