यहां हजारों साल की परम्परा टूटी, बुद्ध जयंती के दिन पर्यटक स्थल पर पसरा सन्नाटा
बौद्ध धर्म दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा धर्म माना जाता है। आज (07 मई 2020) भगवान बुद्ध की 2564वीं जयंती है। गौतम बुद्ध का जन्म नेपाल के लुंबिनी में हुआ था। जबकि देवी पाटन मंडल के श्रावस्ती जिले के श्रावस्ती स्थान को उनकी तपोभूमि माना जाता है।
तेज प्रताप सिंह
गोंडा: बौद्ध धर्म दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा धर्म माना जाता है। आज (07 मई 2020) भगवान बुद्ध की 2564वीं जयंती है। गौतम बुद्ध का जन्म नेपाल के लुंबिनी में हुआ था। जबकि देवी पाटन मंडल के श्रावस्ती जिले के श्रावस्ती स्थान को उनकी तपोभूमि माना जाता है।
इसलिए वैशाख पूर्णिमा यानी बुद्ध जयंती पर श्रावस्ती के तमाम मठ, मंदिरों में भव्य आयोजन होते हैं। लेकिन कोरोना वायरस के चलते इस साल यहां सभी तरह के आयोजन निरस्त कर दिए गए।
सालों साल देशी और विदेशी लाखों पर्यटकों से गुलजार रहने वाली बौद्धस्थली श्रावस्ती पर कोरोना का ग्रहण लग़ गया। लाकडाउन के कारण यहां मठ मंदिरों के दरवाजे नहीं खुलते, पुरातत्व खंडहर सूने पड़े हैं और पूरी बौद्धस्थली वीरान है। विश्व प्रसिद्ध इस पर्यटन स्थल पर आध्यात्मिक, सामाजिक और आर्थिक गतिविधियों पर भी पूरी तरह से विराम लगा है।
ऐसे में श्रावस्ती के इतिहास में यह पहला अवसर होगा जब भगवान गौतमबुद्ध के जन्म दिवस पर उनके अनुयायियों का जमावड़ा नहीं है। मंदिर के देखरेख में लगे लोगों ने ही पूजा पाठ करके महज औपचारिकता निभाई।
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दुनिया भर से जुटते हैं 10 हजार अनुयायी
श्रावस्ती को भगवान गौतम बुद्ध की तपोभूमि के रूप में पूरे विश्व भर में जाना जाता है। कटरा श्रावस्ती में भगवान बुद्ध ने चौबीस वर्षामास व्यतीत किये थे। सहेट महेट जेतवन व अंगुलिमाल की गुफा के अवशेष श्रावस्ती को प्राचीन काल में बौद्ध धर्म के प्रमुख केन्द्र के रूप में स्थापित करते हैं।
कटरा श्रावस्ती में पूर्वी व दक्षिणी पूर्वी एशिया के कई देशों के द्वारा अपना मठ व मंदिर स्थापित किये गये हैं, जहां वे अपने-अपने पारम्परिक तरीके से भगवान बुद्ध की आराधना करते हैं। श्रावस्ती में पूरे वर्ष लाखों भारतीय व विदेशी पर्यटक विशेषकर बौद्ध धर्म अनुयायी आते हैं। हर साल बुद्ध जयंती पर देश विदेश अनुयायी श्रावस्ती पहुंचते हैं।
गत वर्ष बुद्ध जयंती पर आयोजित मेले में श्रीलंका, जापान, कोरिया, कंबोडिया, वियतनाम, चीन, नेपाल थाईलैंड, मलेशिया, म्यांमार, इंडोनेशिया जैसे 22 देशों से आए 10 हजार से अधिक लोग शामिल हुए थे। प्राचीन काल में श्रावस्ती, कौशल महाजनपद के अन्तर्गत, भगवान रामचन्द्र के पुत्र लव की राजधानी के रूप में जाना जाता था।
मान्यता यह भी है कि श्रावस्ती के टंडवा महन्थ ग्राम में स्थित सीताद्वार स्थल पर भगवान राम के पुत्र लव कुश का जन्म हुआ था। वर्तमान में यहां सीताद्वार मंदिर स्थापित है। जहां प्रतिवर्ष देश विदेश के लाखों श्रद्धालु आते हैं। लेकिन इस साल कोविड-19 के जोखिम को देखते हुए भारत सरकार ने मंदिर में सभी तरह के आयोजनों पर रोक ने यहां अयोजनों पर विराम लगा दिया है।
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जेतवन में होता है मुख्य कार्यक्रम
बुद्ध विहार के सदस्य भंते जगदम्बा प्रसाद कुलदीप बताते हैं कि वैसे तो श्रावस्ती में वर्ष भर बड़ी संख्या में चीन, जापान, थाईलैड, म्यामार, वर्मा, श्रीलंका और नेपाल समेत दर्जनों देशों के पर्यटक आते रहे हैं।
सुबह 6.00 बजे प्रभात फेरी निकालकर बुद्ध के भक्त जेतवन, श्रीलंका मंदिर, बौद्ध वृक्ष, गंधकुटी, महामंकोल मंदिर, अंगुलिमाल गुफा, आदि अनेक स्थानों पर पुजा अर्चना करते थे।
मुख्य कार्यक्रम विपश्यना केन्द्र में विगत 30 वर्षों से भंते शीलरत्न के नेतृत्व में होता रहा है। जहां पूजा वंदना और भोजन दान के बाद भगवान बुद्ध के जीवन आदर्श व उनके शिक्षाओं पर प्रवचन होता था।
हजारों लोगों की मौजूदगी में कार्यक्रम पूरे दिन चलता रहता था। बुद्ध विहारों में टंगे धम्म ध्वज को उतारकर उसकी जगह नया ध्वज फहराया जाता है। लेकिन इस बार कोरोना वायरस के संक्रमण को देखते हुए बौद्ध की तपोस्थली श्रावस्ती के मठ मंदिरों में ताला डाल दिया गया है। इस कारण से अब विदेशी यात्री नहीं आए हैं। इसके अलावा स्थानीय दर्शनार्थी भी श्रावस्ती नहीं पहुंचे हैं। देश के साथ श्रावस्ती जनपद में लाक डाउन से न तो मंदिरों के दरवाजे खुले हैं और न ही होटलों में भीड़ दिखी है।
शांति की प्रार्थना और बुद्ध की विशेष पूजा
बुद्ध पूर्णिमा का पर्व भारतवर्ष में बुद्ध अनुयायियों का एक प्रमुख पर्व है। बौद्ध और हिंदू दोनों ही धर्मों के लोग बुद्ध पूर्णिमा को श्रद्धा के साथ मनाते हैं। ये पर्व बुद्ध के आदर्शों और धर्म के रास्ते पर चलने की प्रेरणा देता है।
बुद्ध विहार के भंते देवेन्द्र ने बताया कि बुद्ध पूर्णिमा पर बौद्ध धर्म मानने वाले लोग बौद्ध विहारों और मठों में इकट्ठा होकर एक साथ उपासना करते हैं। सर्वप्रथम भिक्खु संघ को विधिवत पंचांग प्रणाम किया जाता हैं। दीप जलाते हैं। रंगीन पताकाओं से सजावट की जाती है और बुद्ध की शिक्षाओं पर जीवन जीने का संकल्प लेते हैं।
इस दिन भक्त भगवान बुद्ध पर फूल चढ़ाते हैं, अगरबत्ती और मोमबत्तियां जलाते हैं तथा भगवान बुद्ध के पैर छूकर शांति के लिए प्रार्थना करते हैं। ये काम करने के बाद हाल में उपलब्ध स्थान पर बैठकर सामूहिक वुद्ध वंदना की जाती है। फिर उपस्थित उपासक, उपासिकाओं द्वारा भिक्षु संघ से तिसरण (त्रिशरण) और पञ्चसील (पंचशील) ग्रहण किया जाता हैं। इस दिन सफेद कपड़े पहनते हैं और दान देते हैं।
मंदिरों में बचे लोगों ने ही निभाई औपचारिकता
विपश्यना केन्द्र के प्रमुख भंते शीलरत्न बताते हैं कि देश में लाकउाउन के कारण इस बार देश और विदेशों से श्रद्धालु नहीं आ सके तो मंदिरों के देखरेख में लगे लोगों ने ही भगवान बुद्ध की पूजा अर्चना करके महज औपचारिकता निभाई।
विपश्यना केन्द्र में सिर्फ एक दर्जन लोगों को ही भोजन कराया गया। प्रवचन आदि के कार्यक्रम नहीं हुए। उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस के कारण हजारों साल की परम्परा टूटी है। इसका उन्हें दुःख है, किन्तु कोरोना जैसी वैश्विक महामारी से मानव मात्र की रक्षा भी जरुरी है।
कोरोना वायरस को लेकर जिले में अलर्ट
श्रावस्ती के सीएमओ डा. एपी भार्गव ने बताया कि चीन से निकल कर दुनिया भर में फैले कोरोना वायरस को लेकर जिले में अलर्ट जारी कर दिया गया है। श्रावस्ती में भी किसी प्रकार के कार्यक्रम को अनुमति नहीं दी गई है।
जिले की सीमा का नेपाल राष्ट्र से सटे होने के कारण नेपाल के रास्ते इस जिले में प्रवेश करने वाले चीनी यात्रियों पर खास नजर भी रखी जा रही है। जुकाम और बुखार से जूझ रहे नेपाल की सीमा से सटे गांवों के लोगों की गंभीरता से जांच की जा रही है।
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