Sonbhadra News: जियोलॉजिकल प्रदर्शनी के जरिए बताई दुनिया के अजूबे फासिल्स की महत्ता, भूविरासत के संरक्षण- स्वच्छता की दिलाई शपथ
Sonbhadra News: जियोलॉजिकल प्रदर्शनी में अमेरिका के यलोस्टोन से भी सुरक्षित और विकसित रूप में मौजूद दुनिया के अजूबे फासिल्स की खूबियों से अवगत कराया गया।
Sonbhadra News: 'स्वच्छता ही सेवा...' थीम के तहत खान मंत्रालय से जुड़ी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण उत्तरी क्षेत्र की टीम ने शनिवार को सलखन स्थित फॉसिल्स पार्क में जियोलॉजिकल प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। इस दौरान जिले में उपलब्ध खनिज, उनके उपयोग, उनकी महत्ता के बारे में जानकारी देने के साथ ही, सोनभद्र में अमेरिका के यलोस्टोन से भी सुरक्षित और विकसित रूप में मौजूद दुनिया के अजूबे फासिल्स की खूबियों से अवगत कराया गया। लोगों से धरोहरों के संरक्षण और धरोहरों वाले स्थलों पर साफ-सफाई बनाए रखने की अपील की गई।
बतौर मुख्य अतिथि निदेशक (क्रिटिकल मिनरल्स) खान मंत्रालय ने फीता काटकर कार्यक्रम का शुभारंभ किया और मौजूद सभी को सलखन में मौजूद अनूठी भूविरासत के संरक्षण और स्वच्छता की शपथ दिलाई। अध्यक्षता कर रहे भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण उत्तरी क्षेत्र के उपमहानिदेशक वी पी गौड़, निदेशक हेमंत कुमार निदेशक, निदेशक एवं जनसंपर्क अधिकारी भृगु शंकर, निदेशक डॉ रत्नेश सिंह चंदेल सहित अन्य ने सलखन फासिल्स पार्क की महत्ता, जिले की भौगोलिक संरचना और यहां पाए जाने खनिज-धातुओं की उपयोगिता के बारे में जानकारी दी।
खनिज और अयस्क से जुड़ी प्रदर्शनी का किया गया आयोजन
इस दौरान भारतीय वैज्ञानिक सर्वेक्षण द्वारा प्रदर्शित स्थानीय खनिजों, अयस्कों एवं पोस्टर की प्रदर्शनी का भी मुख्य अतिथि ने अनावरण किया । मुख्य अतिथि के साथ ही, मौजूद अन्य ने प्रदर्शनी में प्रदर्शित और अयस्क के बारे में बारी-बारी जानकारी दी। कार्यक्रम में आखिर में पौधरोपण और सफाई का कार्य किया गया। यहां आए लोग और विभिन्न विद्यालयों से आई छात्र-छात्राओं की टीम को भूविरासत की महत्ता बताते हुए, इसके संरक्षण की जरूरत पर जरूरी जानकारी दी गई।
1933 में दुनिया के सामने आई थी सलखन की अनूठी विरासत
बताया गया कि सलखन स्थि फासिल्स पार्क (जीवाश्म उद्यान) की बहुतायत और सुरक्षित मात्रा में मौजूदगी की जानकारी वर्ष 1933 में दुनिया के सामने आई थी। यह यूपी का एकमात्र भू विरासत स्थल है जिससे जीवन की उत्पत्ति यानी वायुमंडल में ऑक्सीजन बनने की शुरूआत के प्रमाण मिलते हैं। यहां विंध्य तलछठी महासमूह की चूना पत्थर चट्टानों से जुड़े स्ट्रोमैटोलाइट प्रकार के जीवाश्म पाए जाते हैं। इनकी पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति और विकास क्रम को समझाने में महत्वपूर्ण भूमिका है। दावा किया गया कि इन जीवाश्मों की खोज 1933 में भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के वैज्ञानिकों द्वारा की गई थी। यह जीवाश्म लगभग डेढ़ अरब वर्ष पूर्व समुद्र के तल पर पाए जाने वाले एक कोशिकीय शैवाल हैं जिनका वातावरण में आक्सीजन उपलब्ध करवाने का योगदान जाना जाता है।