Sonbhadra News: पब्लिक स्कूलों की फीस में मनमानी बढ़ोत्तरी, महंगी किताबें-गणवेश पर सपा ने बोला हल्ला, कहा: बेड़ियों में जकड़ा शिक्षा तंत्र, फीस एक्ट हो लागू

Sonbhadra News: अभिभावकों पर साल दर साल बढ़ते आर्थिक बोझ, शिक्षा के नाम पर की जा रही मनमानी और महंगी फीस वसूली और महंगे किताब-गणवेश खरीदने के लिए बच्चों का मानसिक रूप से किए जा रहे टार्चर के मसले पर भी तीखा हमला बोला;

Update:2025-04-11 20:59 IST

Sonbhadra News: सोनभद्र । सीबीएसई पाठ्यक्रम की पढ़ाई की आड़ में प्राइवेट स्कूलों में प्रतिवर्ष हो रही फीस की मनमानी बढ़ोत्तरी, महंगी किताबों और महंगी ड्रेस के चलते बढ़ते आर्थिक बोझ को लेकर सपा ने शुक्रवार को खासा हल्ला बोला। खुद को बेड़ियों को जकड़ कर जहां आधुनिक शिक्षा को महंगाई की बेड़ियों में जकड़े होने का एहसास कराया। वहीं, अभिभावकों पर साल दर साल बढ़ते आर्थिक बोझ, शिक्षा के नाम पर की जा रही मनमानी और महंगी फीस वसूली और महंगे किताब-गणवेश खरीदने के लिए बच्चों का मानसिक रूप से किए जा रहे टार्चर के मसले पर भी तीखा हमला बोला कलेक्ट्रेट पर प्रदर्शन करते हुए, प्राइवेट विद्यालयों के लिए फीस एक्ट लागू करने, प्रतिवर्ष पाठ्यक्रम बदलने, नए गणवेश निर्धारित करने के प्रवृत्ति पर रोक की मांग की। संजीदगी न दिखाए जाने पर अभिभावकों के साथ सड़क पर उतरने की चेतावनी दी।

निजी विद्यालय बन गए हैं शिक्षा की दुकान, पुस्तक-गणवेश बिक्री में हो रही माफियागिरी: सपा

प्रदर्शन की अगुवाई कर रहे सपा नेता प्रमोद यादव ने सीबीएसई पाठ्यक्रम पर संचालित हो रहे स्कूलों की मनमानी पर तीखा आक्रोश जताया। इससे जुड़ी व्यवस्था पर आरोप लगाते हुए कहा कि मौजूदा फीस की जो स्थिति है, उसमें जहां कई निजी विद्यालय शिक्षा की दुकान बनते जा रहे हैं। वहीं, अभी तक शिक्षा माफिया शब्द सुनने को मिल रहा था। अब किताब-गणवेश बिक्री के नाम पर भी माफियागिरी की स्थिति सामने आने लगी है। कई दुकानें ऐसी हैं जिन्होंने एक-दो विद्यालय ही नहीं, 17-17 विद्यालयों के किताब-गणवेश बिक्री का ठेका लेकर बैठे हुए है। एक ही दुकान पर, संबंधित विद्यालय की किताबें मौजूद होने के कारण, अभिभावकों का जहां, उसी दुकान से किताब-गणवेश खरीदना मजबूरी है। आरोप लगाया कि महंगी किताबों को लेकर अगर कोई अभिभावक एतराज जता रहा है तो उसके साथ दुर्व्यवहार किया जा रहा है।

25 से 30 फीसद तक बढ़ गए शिक्षण शुल्क

जिले में शिक्षण शुल्क के नाम पर प्रतिमाह वसूले जाने वाले शुल्क में किस कदर मनमानी हो रहा है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है, जिस कक्षाओं की फीस पिछले वर्ष 14 से 1500 थी, वह फीस अब 1900 से दो हजार हो गया है। इसी तरह पिछले वर्ष एलकेजी कक्षाओं की किताओं के दाम दो से ढाई हजार थे। इस बार तीन से साढ़े तीन हजार पहुंच गए हैं। कक्षा आठ की किताब खरीदारी के लिए पांच हजार रूपये तक अदा करना पड़ रहा है। गणवेश का बोझ अलग हैं। जहां सप्ताह में दो तरह की ड्रेस खरीदवाई जा रही है। वहीं, ड्रेश वाली दुकान से ही जूते, मोजे भी खरीदने पड़ रहे हैं। बच्चे के लिए ड्रेस फिट है या नहीं, संबंधित दुकान पर जो उपलब्ध है, उसी में से खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।

बेमानी से बन गए हैं एनसीआरटी, एसईआरटी के निर्देश

सस्ती किताबों पाठ्यक्रमों के लिए एनसीआरटी, एसईआरटी के भी निर्देश बेमानी से बन गए हैं। सीबीएसई पाठ्यक्रम वाले स्कूलों की प्रभावी निगरानी-एक्शन के लिए जिले स्तर पर कोई ठोस व्यवस्था न होने से स्थिति साल दर साल बिगड़ती जा रही है। हालत यह हो गई है कि कई विद्यालयों में यूपी बोर्ड के पाठ्यक्रम की पढ़ाई ही बंद किए जाने के संकेत मिलने लगे हैं।

अभिभावकों पर दबाव के लिए बच्चे किए जा रहे टार्चर

शिक्षा का मंदिर कहे जाने वाले विद्यालय में बाल अधिकार की भी जमकर धज्जियां उड़ाई जा रही है। हालत यह है कि जो बच्चे आर्थिक दिक्कत के कारण, किताब खरीदने में देर कर रहे हैं। स्कूल खुलने के साथ पूरा गणवेश नहीं खरीद पा रहे हैं। फीस अदायगी में देर हो रही है, तो अभिभावकों पर दबाव बनाने के लिए बच्चों को कभी शिक्षण कक्ष में डांट-फटकार कर अपमानित किया जा रहा है तो कभी तपती धूप में खड़ा कर देने की धमकी दी जा रही है। कई बच्चों को शिक्षण कक्ष से बाहर भी खड़ा कर दिया जा रहा है।

कभी भी सतह पर आ सकता है अभिभावकों का आक्रोश

कथित विद्यालयों में जिस तरह की मनमानी हो रही है। बच्चों को अच्छी शिक्षा, मानसिक सेहत का ख्याल रखने की बजाय, लगातार बढ़ते आर्थिक बोझ की अदायगी, अपनी तरफ से निर्धारित समय के मुताबिक कराने के लिए, बच्चों को ही टार्चर किया जा रहा है। बताते चलें कि कोराना कॉल में महज ऑनलाइन पढ़ाई का पूरा शुल्क वसूला गया था।

वहीं, महज तीन साल के भीतर शुल्क में लगभग 80 फीसद की हुई बढ़ोत्तरी ने, मध्यमवर्गीय परिवारों को बजट बिगाड़ कर रख दिया है। आए दिन कल्चरल प्रोग्राम के नाम पर बनने वाली खर्च की स्थिति के साथ, महंगी किताब, गणवेश का बढ़ता बोझ अलग परेशान किए हुए है। पिछले तीन से चार सालों के भीतर जिस तरह की स्थिति देखने को मिली है, उसको देखते हुए, अगर अभिभावकों का समूह किसी दिन सड़क पर उतरकर आवाज उठाते नजर आए तो बड़ी बात नहीं होगी।

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