Sonbhadra News: खेती के जमीन पर बालू खनन पट्टा आवंटित, मामला पहुंचा एनजीटी

Sonbhadra News: बालू साइट को खेती वाली जमीन पर आवंटित किए जाने का आरोप लगाया गया है। इसको लेकर एक याचिका एनजीटी में दाखिल की गई है।

Update: 2024-05-09 14:22 GMT

जांच करते अधिकारी। (Pic: Newstrack)

Sonbhadra News: ओबरा तहसील क्षेत्र के भगवा में खंड नंबर दो की बालू साइट को खेती वाली जमीन पर आवंटित किए जाने का आरोप लगाया गया है। इसको लेकर एक याचिका एनजीटी में दाखिल की गई है। प्राथमिक रिपोर्ट में पट्टा स्थल पर खनन के लिए कोई बालू उपलब्ध न होने की जानकारी सामने आई है। इसको देखते हुए एनजीटी की प्रधान पीठ ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव, सीपीसीबी और ईआईए खनन (गैर-कोयला) के प्रभारी सलाहकार/जेएस एमओईएफ सहित अन्य की मौजूदगी वाली एक उच्चस्तरीय कमेटी गठित करते हुए, छह सप्ताह के भीतर रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। मामले में सुनवाई के लिए अगली तिथि आठ जुलाई मुकर्रर की गई है।

फार्म भरने में की गई गड़बड़ी

याचिकाकर्ता की तरफ से नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में दाखिल याचिका में दावा किया गया है कि मोरम (बालू) की निकासी के लिए भगवा की खंड 2 साइट के लिए जोपर्यावरणीय मंजूरी (ईसी) के लिए जो फार्म भरा गया है उसमें गड़बड़ी बरती गई है। कहा गया है कि पर्यावरण मंजूरी का अनुरोध सोन नदी के तल पर खनन के लिए किया गया है लेकिन जो पट्टा आवंटन स्थल है उसमें कोई मोरम नहीं है। आवेदक की तरफ से ट्रिब्यूनल के समक्ष यह भी कहा गया है कि राज्य स्तर विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति ने एक संयुक्त समिति का गठन किया था जिसमें प्रोफेसर जसवंत सिंह सदस्य, एसईएसी, उमेश गुप्ता आरओ यूपीपीसीबी और आरबी सिंह खनन अधिकारी शामिल थे।

कोर्ट ने तलब किया रिपोर्ट तो सामने आए तथ्य

कोर्ट की तरफ से मांगी गई रिपेार्ट के क्रम में उक्त संयुक्त समिति की तरफ से एनजीटी के सामने जो रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। उसमें इस बात का चौंकाने वाला खुलासा किया गया कि खननपट्टा उस क्षेत्र के लिए है जो कृषि भूमि क्षेत्र है और वहां हैबाढ़ के दौरान खनिज जमा होने की कोई संभावना नहीं है। खनन की दृष्टि से यह स्थल टिकाऊ नहीं है। वहीं, आवेदक की तरफ से कहा गया कि ऐसे खनन पट्टे के आधार पर, खनन कार्य अन्य क्षेत्रों में पट्टा धारकों द्वारा किया जा रहा है जहां खनिज मौजूद है।

गठित की गई उच्चस्तरीय कमेटी

पिछले दिनों मामले की सुनवाई करते समय चेयरपर्सन न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव की अगुवाई वाली तीन सदस्यीय पीठ ने मामले को गंभीर माना और प्रकरण में लगाए जा रहे आरोपों और किए जा रहे दावों की स्थिति पूरी तरह से स्पष्ट करने के लिए एक नई संयुक्त समिति गठित की। इस कमेटी में सदस्य सचिव सीपीसीबी के अलावा एमओईएफसीसी के संयुक्त सचिव और ईआईए खनन (गैर-कोयला) के प्रभारी सलाहकार की मौजूदगी वाली टीम गठित करते हुए, सीपीसीबी को नोडल एजेंसी के रूप में कार्य का निर्देश दिया।

ज्वाइंट कमेटी को निर्देश

एनजीटी की प्रधान पीठ ने निर्देशित किया कि संयुक्त समिति संबंधित बालू साइट का दौरा करेगी और सही स्थिति का पता लगाएगी। मौके की स्थिति के साथ ही, कार्यप्रणाली पर लगाए गए आरोपों की भी सत्यता जांची जाएगी। यह भी तथ्य जांचा जाएगा कि उस क्षेत्र पट्टे का आधार क्या है? जहां कोई खनिज मौजूद नहीं है। समिति को छह सप्ताह के भीतर रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया गया है।

पट्टाधारक ने जताई आपत्ति

उधर, इस मामले में पट्टाधारक रूद्रा माइनिंग की तरफ से भी एनजीटी में लगाए गए आरोपों पर आपत्ति दाखिल करते हुए, पट्टा आवंटन को सही ठहराया गया है। इसके लिए अन्य तथ्यों के साथ ही मौजूदा ज्येष्ठ खान अधिकारी शैलेंद्र सिंह की तरफ से ईआईए के सदस्य सचिव को गत दो मार्च को भेजे गए पत्र का हवाला दिया गया है। जिसमें उल्लिखित है कि संबंधित क्षेत्र राजस्व अभिलेखों में नदी के नाम दर्ज है तथा राज्य सरकार की भूमि है। उक्त क्षेत्र सोन नदी की डाउन स्ट्रीम के दायीं ओर स्थित है, जिस पर वर्षा काल में नदी द्वारा पहाड़ी क्षरण के फलस्वरूप बहाकर लाई गई मोरम यानी बालू प्रचुर मात्रा में निक्षेपित है। स्थल निरीक्षण और जीओ टैग युक्त फोटोग्राफ्स भी उपलब्ध कराने का दावा किया गया है। अब लोगों की निगाहें उच्चस्तरीय कमेटी की तरफ से दी जाने वाली रिपोर्ट पर टिकी हुई हैं।

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