Sultanpur: सुल्तानपुर का देवा जहां देश के कोने-कोने से पहुंचते हैं ज़ायरीन, कौमी एकता की है मिसाल
Sultanpur News: नेकराही के उर्स और मेले की तैयारी 15 दिन पहले से शुरू हो जाती है। बड़ी संख्या में लोग उर्स में पहुंचते हैं। दशहरा ख़त्म होते ही उर्स की शुरुआत हो जाती है। दरगाह पर हर धर्म के लोग अकीदत व आस्था के साथ पहुंचते और माथा टेकते हैं।
Sultanpur News: अयोध्या-प्रयागराज बाईपास (Ayodhya-Prayagraj Bypass) पर कोतवाली देहात थाना क्षेत्र नकराही में देवा वाले की दरगाह है। यहां दुर्गा पूजा के बाद वारिस शाह का उर्स मनाया जाता है। जिसमें मुल्क भर से लोग जियारत को पहुंचते हैं। पांच दिनों तक यहां बड़ा मेला लगता है। इसमें तीन दिन, तीन वक्त हजारों लोगों के लिए लंगर की व्यवस्था होती है। इसकी खासियत ये है कि लंगर में सेवादार खुद ज़ायरीन होते हैं। कहते हैं कि, सारा काम खुद-ब-खुद हो जाता है। भीड़ को भी अदृश्य शक्ति नियंत्रित करती है। बहरहाल, यहां की भव्यता देखते ही बनती है।
हर धर्म के लोग पहुंचते हैं माथा टेकने
नेकराही के उर्स और मेले की तैयारी 15 दिन पहले से शुरू हो जाती है। बड़ी संख्या में लोग उर्स में पहुंचते हैं। दशहरा ख़त्म होते ही उर्स की शुरुआत हो जाती है। दरगाह पर हर धर्म के लोग अकीदत व आस्था के साथ पहुंचते और माथा टेकते हैं। यहां के सज्जादा नशीन बाबा आजाद शाह वारसी ने बताया कि वारिस पनाह का उर्स 1947 से से हो रहा है। पूरे हिन्दुस्तान से लोग आते हैं। उन्होंने बताया कि छत्तीस धर्म के लोग यहां आते हैं। ये मान लीजिए हर जगह त्रिवेणी है। यहां छत्तीस वेणी है। छत्तीस धर्म के लोग अपने हिसाब से आते हैं।
अदृश्य शक्ति करती है मदद
वहीं, आजाद शाह (Nasheen Baba Azad Shah Warsi) ने ये भी बताया कि 'यहां हजारों लोगों की सुरक्षा के लिए लोग एक-दूसरे का साथ देते हैं। पुलिस की जरूरत ही नहीं पड़ती। ये वारिस पनाह की शान की बात है जो आते हैं वो बैठे रहते हैं। यही नहीं, जिस पार्टी का भी लीडर हो, भाजपा के विधायक विनोद सिंह आए थे, कांग्रेस वाले आए थे। यहां पार्टी विशेष की कोई बात नहीं है। जो आते हैं उनकी हम सेवा करते हैं और मालिक से प्रार्थना और दुआ करते हैं। लोगों के लिए तीन वक्त का लंगर बैठाकर खिलाया जाता है, जितना भी खाए।'
वारिस बाबा की शान में होते हैं विभिन्न कार्यक्रम
खादिम आज़ाद वारसी ने बताया कि, दुकानदार मस्त खाना, खाने वाला मस्त, खाना खिलाने वाला मस्त। यहां कई कर्नल आए हुए हैं वो बाहर हैं कमरे में नहीं रहते। मोहर्रम में वारिस अली शाह ने पर्दा किया तो मोहर्रम में उर्स होता है लेकिन उसमें कव्वाली नहीं होती। हां उसमें याद-ए हुसैन मनाते हैं उसमें दो दिन का लंगर चलता है। आजाद शाह ने बताया कि यहां मौला-ए-कायनात की महफिल उसके बाद मिलाद शरीफ, परचम कुशाई हुई जिसमें हज़ार लोग थे। मौला हुसैन के नाम से गागर निकाला जाता है। कव्वाली और सुबह में कुल वारिस पनाह का किया जाता है।