दवा के साथ मास्क और सही पोषण से ही भारत बनेगा टीबी मुक्त: डॉ. वेदप्रकाश

क्षय रोग एक गंम्भीर बीमारी है जो माइकोबैक्टीरियम टूबरकुलोसिस नामक बैक्टीरिया से फैलता है। देश में लगभग 40 प्रतिशत आबादी टीबी संक्रमण से ग्रसित हैं।

Update:2021-03-23 18:54 IST
फोटो— सोशल मीडिया

लखनऊ। क्षय रोग एक गंम्भीर बीमारी है जो माइकोबैक्टीरियम टूबरकुलोसिस नामक बैक्टीरिया से फैलता है। देश में लगभग 40 प्रतिशत आबादी टीबी संक्रमण से ग्रसित हैं। टीबी बैक्टीरिया की खोज राबर्ट कोच नामक वैज्ञानिक ने 24 मार्च, 1882 में की थी। इसलिए 24 मार्च को विश्व टीबी दिवस के रूप में मनाया जाता है। क्षय रोग आज भी सम्पूर्ण विश्व में 10 प्रमुख मृत्यु के लिए जिम्मेदार बीमारियों में से एक है। वर्ष 2019 में लगभग 1 करोड़ से ज्यादा लोग टीबी से ग्रसित हैं जिनमें से लगभग 14 लाख लोगों ने अपनी जान गवाई है। 2019 में ड्रग रजिस्टेन्ट टीबी से ग्रसित होने वाले रोगियों की संख्या लगभग 4 लाख 65 हजार है जिसमें से भारत में लगभग 1.35 लाख एमडीआर टीबी के रोगी हैं।

विश्व के 8 देश लगभग 2 तिहाई टीबी रोगियों के लिए जिम्मेदार है जिसमें भारत सबसे ऊपर है। विश्व में टीबी इंसिडेंस 2 प्रतिशत दर से घट रहा है। जबकि 2025 तक टीबी मुक्त भारत का सपना साकार करने के लिए इस दर को 4-5 प्रतिशत ले जाने की आवश्यकता है। इस वर्ष WHO का Theme “THE CLOCK IS TICKING” है। इसका मतलब है कि समय हमारे हाथ से निकलता जा रहा है और अब सिर्फ कागजी कार्यवाही का समय नही है बल्कि हम सबको साथ मिलकर जमीनी कार्यवाही करके विश्व से टीबी खत्म करने की जरुरत है।

जहां एक तरफ डब्ल्यूएचओ ने 2030 तक टीबी का अंत करने की कार्य योजना तैयार की है वही भारत सरकार द्वारा 2025 तक टीबी मुक्त भारत का संकल्प लिया गया है। इस सपने को साकार करने के लिये यह जरुरी है कि जो दिशा निर्देश भारत सरकार द्वारा दिये गये हैं उनका अनुपालन कड़ाई से कराया जाए तथा टीबी का उपचार विशेषज्ञ चिकित्सकों की देख रेख में ही कराना सुनिश्चित किया जायें। भारत सरकार ने टीबी के मरीज के पोषण के लिए हर माह 500 रुपए की सहायता राशि देने का निश्चय किया है। भारत सरकार क्षय रोग के उन्मूलन के लिए प्राइवेट सेक्टर मे इलाज कराने वाले मरीजों, चिकित्सको एवं अस्पतालों को सहायता भी दे रही है। चिकित्सक एवं अस्पतालों को रागी के उपचार और इस बीमारी की गंभीरता के प्रति जागरुक करने के लिये 500 रुपए प्रति माह 6 से 9 महीने के लिए दिये जा रहे हैं। भारत सरकार द्वारा पारित कानून के अनुपालन के लिए अधिसूचना के अनुरुप कार्ययोजना तैयार कर कार्यवाही की जानी चाहिये, जिसमें निजी संथाओं एवं चिकित्सकों की भागीदारी को बढ़़ावा दिया जाना होगा तथा टीबी के मरीजों को नाटीफाई किया जाये, साथ ही इस कानून का पालन नहीं किये जाने पर दोषी व्यक्ति को 6 माह से 2 वर्ष तक की सजा का प्राविधान भारत सरकार द्वारा किया गया है।

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टीबी के बैक्टीरिया श्वांस द्वारा शरीर में प्रवेश करते हैं और रोगी के खांसने, बात करने, छींकने, थूकने से दूसरे लोगों में इसका संक्रमण हो जाता है। इसलिए लोगों को सलाह दी जाती है कि मरीज के मुंह पर कपड़ा या मास्क रखा जाय और होने वाले संक्रमण से बचा जाये।

फेफडे़ की टीबी के लक्षण

1— दो हफ्ते से ज्यादा तक खांसी का आना।

2— बलगम आना।

3— बलगम के साथ रक्त आना।

4— सीने में दर्द।

5— बुखार आना।

6— भूख एवं वनज तेजी से कम होना।

क्षय रोग केवल फेफड़ों को ही नहीं शरीर के किसी भी अंग और किसी भी उम्र के व्यक्ति को प्रभावित कर सकता है। क्षय रोग की वजह से महिलाओं में बांझपन की समस्या आ रही है। जननांग अंगों के क्षय रोग का शुरुआती अवस्था में पकड़ना मुश्किल होता है।

महिलाओं में लक्षण

1— समय से समाहवारी का ना होना।

2— जननांग से रक्त मिश्रित श्राव होना।

3— सम्भोग के समय दर्द होना इत्यादि।

पुरुषों में लक्षण

1— स्खनल ना होना।

2— स्पर्म की संख्या में कमी।

3—पिट्यूटरी-ग्लैंड की समस्यायें।

महिलाओं में क्षय रोग से ग्रसित होने वाले जननांग

1— फैलोपियन ट्यूब 95 से 100 प्रतिशत तक।

2— यूटेराइन इन्डोमैट्रिक 50 से 60 प्रतिशत तक।

3— ओवरी 20 से 30 प्रतिशत तक।

4— सर्विक्स 5 से 15 प्रतिशत तक।

5— मायोमैट्रियिम 2.5 प्रतिशत तक।

6— वेजाइना 1 प्रतिशत तक।

पुरुषों में क्षय रोग से ग्रसित होने वाले जननांग

1— एपिडिमों-आरकाइटिस।

2— मुत्रनलिका का बंद होना।

3— स्पर्म की संख्या का कम होना।

4— स्खलन ना होना।

90 प्रतिशत जननांगों का क्षय रोग 15 से 40 साल की महिलाओं में पाया जा रहा हैं 60 से 80 प्रतिशत बांझपन का कारण क्षय रोग होता है। विगत वर्षों में जननांगों का क्षय रोग 10 प्रतिशत से बढ़कर 30 प्रतिशत हो गया है। बच्चों में होने वाला क्षय रोग उनके विकास को भी प्रभावित करता है। सामान्यतया टीबी को ठीक किया जा सकता है। इसके लिए जरूरी है कि शुद्ध एवं पौष्टिक खानपान, अच्छी दिनचर्या और समय पर पूरा इलाज लिया जाये। कई बार यह देखा जाता है कि मरीज पूरा इलाज नहीं करवाते है। टीबी के सामान्य मरीजों का इलाज 6 से 8 महीने तक चलता है, जबकि एमडीआर टीबी का इलाज 2 साल तक चलता है, किंतु मरीज दवा खाने के बाद जैसे ही ठीक होने लगता है वह कुछ ही समय पश्चात दवा लेना बन्द कर देता है। हम ऐसे कई मरीजों से मिलते है जो यह बताते है कि कमें टीबी हुयी थी हमने कुछ दिन दवा खायी थी हमको तबियत ठीक लगने लगी तो हमने इलाज स्वयं ही बंद कर दिया। मेरा ऐसे मरीजों को सलाह है कि वो पूरा इलाज कराये और अपने चिकित्सक के परामर्श के बाद ही दवा बंद करें।

इस उपलक्ष में केजीएमयू के पल्मोनरी एवं क्रिटिकल केयर विभाग ने टीबी मुक्त भारत अभियान में इस गांव एवं 25 टीबी ग्रसित मरीजों को गोद लेगा एवं उनको अन्य बीमारियों के लिए भी शिक्षित करेगा। केजीएमयू की कुलाधिपति एवं राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के मार्गदर्शन एवं कुलपति डॉ. बिपिन पुरी के मार्गदर्शन से ग्राम उत्तरधौना तिवारी गंज, लखनऊ के ग्राम प्रधान संदीप सिंह से वार्ता की गयी, जिसमें ग्राम प्रधान द्वारा सहज स्वीकृति प्रदान की गयी है। विश्व को टीबी मुक्त करने के लिए हमारे विभाग गांव जाकर लोगों को टीबी बीमारी के लिए जागरूक करेगा। उनको टीबी के लक्षण की जानकारी देगा जिससे लोग निम्न लक्षण होने पर अपनी जांच करवायेंगे, जिससे टीबी की बीमारी पकड़ में आ सके। साथ ही टीबी से बचाव के तरीकों के बारे में अवगत कराया जायेगा।

इस अवसर पर विश्व विख्यात प्रो. राजेन्द्र प्रसाद का “Recent Advances In Treatment of Tuberculosis'' पर व्याख्यान हुआ। इसमें डॉ. बीएनबीएम प्रसाद, प्रो. पीसीसीएम केजीएमयू, डॉ. पीके मुखर्जी, प्रो. आरएएस कुश्वाहा और डॉ. एनबी सिंह सीनियर श्वास रोग विशेषज्ञ सिविल हाॅस्पिटल लखनऊ चेयरपर्शंस थे। इसी क्रम में केजीएमयू के कुलपति डॉ. बिपिन पुरी के अतिरिक्त डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद, डाॅ. वेद प्रकाश, डाॅ. हेमन्त कुमार, डाॅ. मोहम्मद आरिफ, डाॅ. अभिषेक कुमार गोयल, डाॅ. सचिन, डाॅ. सुलक्षना गौतम, डॉ. रंजय, डाॅ. फैजान, डाॅ. कैफी, डाॅ. हरेन्द्र, डाॅ. मोहम्मद तारिक सहित विभाग के सदस्य भी उपस्थित रहे।

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