बरेली: दुनका के रहने वाले मुहम्मद रफीक सऊदी अरब की जद्दा जेल से रिहा हो गए। जद्दा की जेल से कैदियों को छुड़ाने के लिए पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने कोशिश की थी, लेकिन वहां की सरकार ने उन्हें छोड़ा नहीं था। अब विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने भारत के कैदियों की रिहाई के लिए सऊदी अरब सरकार से बातचीत की, इसके चलते 27 मार्च को मुहम्मद रफीक समेत तीन बंदियों को जद्दा जेल से रिहा किया गया।
चार साल में 120 के हुए सिर कलम
मुहम्मद रफीक ने कहा कि जिन कैदियों की सजा पूरी हो जाती थी, उन्हें जेल से किसी दूसरी जगह ले जाया जाता था। वहां सिर कलम कर देते थे, यह सुनकर जेल में रोंगटे खड़े हो जाते थे। चार साल के दौरान लगभग 120 लोग शरीयत कानून के तहत मौत के घाट उतार दिए गए।
बेटा हुआ मानसिक रोगी
दुनका में रफीक की पत्नी ने पति के जेल में रहते आर्थिक तंगी में गुजर बसर करके सात बच्चों का गुजारा करने को मेहनत मजदूरी और सिलाई का काम किया। वह कहती है कि उनका 17 साल का बेटा पिता के जेल में होने की खबर के बाद अत्यधिक परेशान रहने लगा, जिससे वह मानसिक रोगी हो गया।
जेल की कमाई से की बेटी की शादी
मुहम्मद रफीक को जेल में सजायाफ्ता कैदियों को नमाज पढ़ाने का काम सौंपा गया था। नमाज पढ़ाने के एवज में तकरीबन एक लाख रुपये मिले। इनसे दुनका में उनकी बेटी ताहिर नूरी की शादी हो सकी।
मिलता था एक लीटर पानी
जद्दा जेल में सैकड़ो की संख्या में अलग-अलग देश के मादक पदार्थ से जुडे़ तस्कर सजा काट रहे है, जिन्हें पेट भर खाना नहीं मिलता। दिन में एक लीटर पानी पीने को दिया जाता था।
जेल जाने की कहानी रफीक की जुबानी
15 जून 2012 को उमरा करने के लिए उन्होंने हरिद्वार ज्वालापुर के नसीम और मुबारक अली के साथ पासपोर्ट बनवाया था। उमरा जाने से पहले उन्होंने अफीम की खेती से पैदा होने वाली खसखस भूनकर उसके दस-दस किलो के पैकेट अपने बैग में रख लिए थे। जद्दा पहुंचते ही मशीनों से हुई स्केनिंग में पकड़ लिए गए, उन्होंने कहा कि अफीम पकड़ी जाने के बाद सभी को पुलिस कस्टडी में पुलिस स्टेशन भेज दिया गया। कुछ दिन पुलिस स्टेशन में बिताने के बाद हरिद्वार के रहने वाले दोनो साथियों को 5-5 साल और उन्हें 6 माह की सजा सुनाई गई। इसके बाद बरीमाल जेल बैरक नम्बर 12 में डाल दिया गया। 6 माह की सजा पूरी होने पर जद्दा सरकार ने छोड़ा नहीं।