UP Election 2022: क्या इस बार फिर मस्त चाल में चलेगी हाथी?

बसपा ने कांग्रेस, भाजपा व सपा तीनों दलों के साथ सियासी पारी खेली है। इसकी स्थापना 1984 में दलितों के नेता कांशीराम ने की थी। बहुजन शब्द का अर्थ 'बहुसंख्यक लोग' से है।

Written By :  aman
Published By :  Divyanshu Rao
Update: 2021-09-13 12:02 GMT
बसपा सुप्रीमों मायावती की तस्वीर (डिजाइन फोटो:न्यूज़ट्रैक)

लखनऊ: तक़रीबन सैंतीस साल पहले स्थापित बहुजन समाज (बसपा) पार्टी ने उत्तर प्रदेश में बहुत उतार चढ़ाव के दिन देखें हैं। शीर्ष पर पहुँचने के लिए बसपा ने राजनीति में हर प्रयोग किये हैं। सभी दलों से समझौते के साथ ही साथ तिलक तराज़ू और तलवार से लेकर ब्राह्मण शंख बजायेगा हाथी दौड़ा जायेगा तक के नारों की यात्रा की है।

बसपा ने कांग्रेस, भाजपा व सपा तीनों दलों के साथ सियासी पारी खेली है। इसकी स्थापना 1984 में दलितों के नेता कांशीराम ने की थी। बहुजन शब्द का अर्थ 'बहुसंख्यक लोग' से है। अर्थात एक ऐसी पार्टी जो बहुसंख्यक समाज की बात करे। यह पार्टी मुख्यतः अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा अन्य पिछड़े वर्गों के अलावा धार्मिक अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व करती रही है। इस पार्टी की विचारधारा दलितों के सशक्तिकरण तथा स्वाभिमान पैदा करने तथा बौद्ध दर्शन की रही है।    

वर्तमान में मायावती इस पार्टी की सबसे बड़ी नेता और राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। ये चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। इन्हें 'बहनजी' के नाम से भी पुकारा जाता है। मायावती पहली भारतीय दलित महिला हैं जिन्होंने यूपी की मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। मायावती साल 1995,1997, 2003 और 2012 में प्रदेश की सीएम बनीं। इस दल का जनाधार देश के अन्य राज्यों में भी रहा है। इसीलिए इसे राष्ट्रीय पार्टी की मान्यता प्राप्त है। 

जानें क्यों 'हाथी' ही है चुनाव चिह्न  

बसपा का चुनाव चिह्न 'हाथी' है। असम और सिक्किम दो ऐसे राज्य हैं जहां बसपा को दूसरा चुनाव चिह्न चुनना है। दरअसल, हाथी बसपा के लिए एक प्रतीक चिह्न है। जैसे हाथी एक विशाल जानवर के अलावा शारीरिक शक्ति और इच्छाशक्ति का प्रतीक है। यही बहुजन समाज पार्टी की भी सोच है। लेकिन यहां हाथी का तात्पर्य समाज के शोषित-पीड़ित वर्गों की विशाल आबादी से है। उच्च जातियों के द्वारा किए जाने वाले उत्पीड़न के खिलाफ संघर्ष का प्रतीक हाथी है। क्योंकि हाथी निडर, शांतिपूर्ण और ताकत से भरा जानवर होता है।

बसपा सुप्रीमो मायावती और बीएसपी का पार्टी का चुनाव निशान हाथी की तस्वीर (फोटो:सोशल मीडिया)


गैर-ब्राह्मणवाद मतलब बसपा 

अपनी स्थापना के बाद बहुत कम समय में ही बसपा ने प्रदेश की राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाई। ये वो समय था जब उत्तर भारत की राजनीति में गैर-ब्राह्मणवाद का मतलब ही बहुजन समाज पार्टी था। हालांकि मंडल आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद बहुजन समाज पार्टी का उभार भी तेजी से देखने को मिला। दलित नेता कांशीराम का मानना था कि अपने हक के लिए लड़ना होगा। उसके लिए गिड़गिड़ाने की जरूरत नहीं है। 

गेस्ट हाउस कांड के बाद गिरी मिलीजुली सरकार 

यूपी का 1993 विधानसभा चुनाव बसपा के लिए बेहद निर्णायक रहा। पहली बार कांशीराम और सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने साथ चुनाव लड़ा। सपा को जहां 109 सीट तो बसपा को 67 सीटें मिली। परिणाम, बीजेपी 177 सीटें जीतकर भी सरकार नहीं बना सकीं। कुछ समय तो ये सरकार ठीक चली । लेकिन इसके बाद गेस्ट हाउस कांड हो गया। ये मिलीजुली सरकार गिर गई। 1995 में मायावती ने बीजेपी के समर्थन से पहली बार मुख्यमंत्री बनीं। 1997 में एक बार फिर बहुजन समाज पार्टी ने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनायीं।  

2007 बसपा का स्वर्ण युग 

2002 का साल क्षेत्रीय क्षत्रपों का रहा। इस साल विधानसभा चुनाव में बसपा ने 98 सीटें हासिल की। लेकिन सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर समाजवादी पार्टी की सरकार बनी। मायावती और उनकी पार्टी को 5 साल सत्ता से दूर रहना पड़ा। अब बारी थी साल 2007 विधानसभा चुनाव की। इस चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने लंबी छलांग लगाते हुए 30.46 प्रतिशत वोट के साथ 206 सीटें जीतने में सफलता पायी। दो दशक की राजनीति में पहली बार बहुजन समाज पार्टी की सरकार ने उत्तर प्रदेश को स्थायी सरकार दी। 

2017 में बसपा का सबसे बुरा हाल  

2012 आते-आते प्रदेश की जनता का बसपा से मन उचट गया। मायावती को लेकर लोगों में नाराजगी बढ़ चुकी थी। इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि जिस बसपा ने 2007 में 206 सीटें हासिल की थी उसे जनता ने करीब 2012 में मात्र 80 सीटें दी। लेकिन अभी पार्टी को और बुरा दौर देखना बाक़ी था। 2017 के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी 22.23 प्रतिशत वोट के साथ केवल 19 सीटों तक पर सिमट गई।

अब एक बार फिर मायावती और उनकी पार्टी अगले साल यानि 2022 के विधानसभा चुनाव में जाने को तैयार है। हालांकि वो इस बार ब्राह्मण महासभा आदि कर अगड़ी जातियों को भी लुभाने की कोशिश कर रही हैं, अब देखना होगा कि ये कितना कारगर होता है।

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