UP Nikay chunav 2023: मेयर पद के लिए कांटे की टक्कर, भाजपा, बसपा किसी की राह नहीं आसान!

UP Nikay chunav 2023: बसपा के लिए इतिहास ना दोहराने के डर की सबसे बड़ी वजह बड़े चेहरों की कमी है। बता दें कि बसपा प्रमुख पहले ही यह घोषणा कर चुकी हैं कि निकाय चुनाव प्रचार के लिए कहीं नहीं जाएंगी। इसके अलावा पिछले विधानसभा चुनाव में मुस्लिमों का बसपा से काफी हद तक दूर हो जाना भी पार्टी प्रत्याशी को सता रहा है।

Update:2023-04-30 18:20 IST
UP Nikay chunav 2023 Meerut (Photo: Social Media)

UP Nikay chunav 2023 Meerut News: नगर निगम की सियासत पर बेशक अब तक भाजपा और बसपा का काबिज रही हों। लेकिन इस बार नगर निगम के चुनाव भाजपा और बसपा के लिए आसान नहीं है। नगर निगम के अब तक इतिहास को देखें तो वर्ष 1995 में बसपा के अय्यूब अंसारी व वर्ष 2000 में बसपा के ही शाहिद अखलाक ने जीत हासिल की थी। इसके बाद अगले दोनों चुनावों में भाजपा की मधु गुर्जर व हरिकांत अहलूवालिया महापौर चुने गये। पिछले चुनावों में यानि 2017 में हुए निकाय चुनाव में एक बार फिर बसपा ने जीत हासिल कर नगर निगम की राजनीति में अपनी पकड़ को साबित किया था। लेकिन,इस बार बसपा के लिए पिछला इतिहास दोहराना आसान नहीं लग रहा है।

बसपा उम्मीदवार को खल रही बड़े चेहरों की कमी

बसपा के लिए इतिहास ना दोहराने के डर की सबसे बड़ी वजह बड़े चेहरों की कमी है। बता दें कि बसपा प्रमुख पहले ही यह घोषणा कर चुकी हैं कि निकाय चुनाव प्रचार के लिए कहीं नहीं जाएंगी। इसके अलावा पिछले विधानसभा चुनाव में मुस्लिमों का बसपा से काफी हद तक दूर हो जाना भी पार्टी प्रत्याशी को सता रहा है। यही नहीं इस चुनाव में बसपा के स्थानीय बड़े मुस्लिम नेता भी सक्रिय नहीं हैं।

हाजी याकूब कुरैशी जेल में हैं, तो हाजी शाहिद अखलाक पिछले काफी अर्से से खामोशी की चादर ओढ़े पड़े हैं। रहा सवाल बसपा के दलित वोट बैंक का तो वो भी पिछले कई चुनावों में बसपा से छिटकता दिख रहा है। ऐसे में बसपा के लिए जीत का इतिहास दोहराना आसान नहीं है।

सपा को मुस्लिम वोटों से इसबार भी खास उम्मीद

दूसरी तरफ सपा उम्मीदवार सीमा प्रधान जो कि सरधना के विधायक अतुल प्रधान की पत्नी हैं रालोद और आजाद समाज पार्टी के सहारे चुनाव में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश में जुटी है। सपा को मुस्लिम वोटों से खास उम्मीद है। हालांकि कांग्रेस के उम्मीदवार नसीम कुरैशी की भी मुस्लिमों वोटों पर नजर है। वर्तमान में जैसा माहौल है उसमें मुस्लिमों में कांग्रेस के प्रभाव से इंकार नहीं किया जा सकता है। रहा सवाल सत्ताधारी दल भाजपा का तो उसने 2012 में भाजपा को मेयर पद जीत दिलाने वाले हरिकांत अहलूवालिया पर फिर से दांव लगाया है।

उनके लिए भी 2012 का अपना इतिहास दोहराना इस बार आसान नहीं है। 2012 की तरह इस बार भी उन्हें वोटों के ध्रुवीकरण का सहारा है। कहा जा रहा है कि आम आदमी पार्टी द्वारा घोषित महापौर प्रत्याशी ऋचा सिंह को जाट उम्मीदवार होने के कारण जाटों के वोट का कुछ हिस्सा जरुर मिलेगा।

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