Assembly Election 2022: सोनभद्र में बेरोजगारी और महंगाई को लेकर सियासी जंग शुरू

Assembly Election 2022: चुनाव के नजदीक आते ही सत्ता पक्ष की तरफ से भी विभिन्न कार्यक्रमों और जनता के बीच जाकर उपलब्धियां गिनाने की होड़ दिखने लगी है।

Written By :  Kaushlendra Pandey
Published By :  Pallavi Srivastava
Update:2021-08-05 09:19 IST

विधानसभा चुनाव को लेकर अपनी-अपनी उपलब्धियां गिनाने में जुटी राजनीतिक पार्टियां pic(social media)

Assembly Election 2022: उत्तर प्रदेश आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर सभी पार्टियों में गमागहमी तेज हो गयी है। वोट बैंक बढ़ाने के लिए पार्टियां लोगों को अपना पिछला काम काज गिनाने में लग गयी है। चुनाव के नजदीक आते ही सत्ता पक्ष की तरफ से भी विभिन्न कार्यक्रमों और जनता के बीच जाकर उपलब्धियां गिनाने की होड़ दिखने लगी है। महंगाई और बेरोजगारी को लेकर प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा सरकार पर निशाना साध रही है।

सूबे के सत्ता की सबसे बड़ी कुर्सी से जुड़े सियासी समर को लेकर जिले से रोजगार सहित अन्य मसलों को लेकर आंकड़े जुटाने और एक-दूसरे के खिलाफ राजनीतिक बिसात बिछाने का खेल शुरू हो गया है। इस काम में विपक्षी दलों के साथ सत्ता पक्ष ने भी तेज दौड़ लगानी शुरू कर दी है। कार्यकाल के आखिरी छह महीने में जहां सरकार खुद को रोजगार मोड में दिखाकर वोटरों को अपने साथ जोड़े रखने की कोशिश में जुटी हुई है। वहीं बसपा, सपा और भाजपा के कार्यकाल में किस विभाग से कितने युवाओं को रोजगार और योजनाओं का लाभ मिला, इसका तुलनात्मक ब्यौरा जुटाया जा रहा है।

सोनभद्र में सभी विभागाध्यक्षों को अपने-अपने विभाग से जुड़ी जानकारी शासन को उपलब्ध कराने के निर्देश दिए जा चुके हैं। बसपा, सपा और भाजपा के समय में उपलब्ध कराए गए रोजगार के तुलनात्मक विवरण के साथ अधिकांश विभागों ने ब्यौरा भी शासन को भेज दिया है। इसको 2022 के सियासी समर से जोड़ते हुए चर्चाएं तेज हो गई है।

 जनेश्वर मिश्रा की जयंती पर साइकल रैली का आयोजन करने के साथ सपा ने सियासी दांवपेंच का खेल तेज कर दिया है (File photo)pic(social media)

ब्राह्मण वोटरों को लुभाने की कवायद तेज

वर्ष 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव का समय नजदीक आने के साथ ही सत्ता पक्ष सहित प्रमुख सियासी दलों की छटपटाहट दिखने लगी है। बसपा ने जहां सोनभद्र में 18 अगस्त को प्रस्तावित प्रबुद्ध वर्ग के सम्मान, सुरक्षा व तरक्की से जुड़ी विचार गोष्ठी के जरिए ब्राह्मण वोटरों को लुभाने की कवायद तेज कर दी है।

वहीं कभी भाजपा और सपा के खेमे में सक्रिय रहे ब्राह्मण युवाओं को सम्मेलन की अहम जिम्मेदारी देकर, इसे सियासी समर का मजबूत आधार बनाने के संकेत भी दे दिए हैं। वहीं दूसरी तरफ गत बुधवार को खस्ताहाल सड़कों को लेकर प्रदर्शन और बृहस्पतिवार (आज) को जनेश्वर मिश्रा की जयंती पर साइकल रैली का आयोजन करने के साथ ही रोजगार के मसले पर निशाना साधते हुए सपा ने भी सियासी दांवपेंच का खेल तेज कर दिया है। सत्ता पक्ष की तरफ से भी विभिन्न कार्यक्रमों और जनता के बीच जाकर उपलब्धियां गिनाने की होड़ दिखने लगी है।

भाजपा को घेरने में लगे हैं राजनीतिक दल

मौजूदा समय जहां महंगाई बड़ा मुद्दा बना हुआ है। वहीं रोजगार के मसले पर सपा, बसपा, कांग्रेस सहित सभी राजनीतिक दल भाजपा को घेरने में लगे हुए हैं। इसमें रोजगार का मामला कुछ ज्यादा ही गरमाया हुआ है। सपा बसपा और कांग्रेस जहां राज्य सरकार को रोजगार के मसले पर फेल बताकर घेरने में लगे हुए हैं। वहीं भाजपा सरकार ने जनपद सहित पूरे प्रदेश में विभागवार रोजगार का आंकड़ा तलब कर मजबूत पलटवार की तैयारी शुरू कर दी है। शासन की तरफ से गत 27 जुलाई को राज्य के सभी विभागाध्यक्षों को जारी पत्र में अवगत कराया गया था कि उच्च स्तर पर रोजगार की समीक्षा होनी है।

इसलिए सभी विभागाध्यक्ष अपने विभाग में दिए गए रोजगार के संबंध में वर्ष 2017 से अद्यतन स्थिति, अप्रैल 2012 से मार्च 2017, मई 2007 से मार्च 2012 तक का आंकड़ा उपलब्ध करा दें। जारी पत्र में उसी दिन शाम चार बजे तक कार्मिक विभाग के मेल आईडी पर निर्धारित प्रारूप में आंकड़ा उपलब्ध कराने के निर्देश भी दिए थे। नाम न छापने की शर्त पर कई विभागाध्यक्ष ने बताया कि संबंधित जानकारी उन लोगों ने उसी दिन शासन को भेजवा दी है।

जिले पर सभी प्रमुख दलों की सियासी नजर

बता दें कि 2017 से अब तक भाजपा सरकार है। इससे पहले अप्रैल 2012 से मार्च 2017 तक सपा की सरकार थी। वहीं मई 2007 से मार्च 2012 तक प्रदेश में बसपा की सरकार रही है। बताते हैं कि शासन की तरफ से इसी तरह कई और तुलनात्मक जानकारियां विभागों को पत्र जारी कर जुटाई जा रही हैं। इसको सत्तापक्ष जहां सरकारी कामकाज से जुड़ा रूटीन वर्क बता रहा है। वहीं विपक्षी खेमे और राजनीतिक पंडितों के बीच इसके सियासी मतलब निकाले जाने लगे हैं। बता दें कि सोनभद्र की सीमाएं जहां चार राज्यों से कटी हुई हैं। वहीं आदिवासी बहुल और देश के 112 विशेष चयनित जिलों में एक होने के कारण, जिले के हालात पर सभी प्रमुख दलों की सियासी नजर टिकी हुई है।

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