Harad ke Fayde: सैकड़ों रोगों की दवा है ये छोटी सी हरड़, इसके फायदे जान रह जायेंगे दंग

हरड़ के फल को दस्त, पेचिश और पेट फूलने में प्रभावकारी रूप से उपयोग किए जाते हैं। इसके गोंद को टॉनिक के रूप में खाया जाता है

Report :  Brijendra Dubey
Published By :  Ashiki
Update:2021-07-21 22:38 IST

हरड़ 

मीरजापुर: यूपी का विंध्य क्षेत्र आयुर्वेदिक औषधि के पौधे का खजाना है। विंध्य पर्वत के पहाड़ियों में रहस्य का खजाना छुपा है। विंध्य की पहाड़ियों में अनेकों रोगों के इलाज से संबंधित जड़ी बूटी का भंडारण है। आयुर्वेदिक पद्धति से एक निश्चित समय सीमा तय कर इलाज किया जाता है। आयुर्वेद में समय के अंदर इलाज होता है, जिसके कारण बड़े-बड़े रोगों से मुक्ति मिल सकती है। फिर चाहे कितनी भी बड़ी और गंभीर बीमारी ही क्यों न हो।

ऐसा ही एक औषधीय पेड़ हरड़ का। हरड़ के बारे में उत्तरांचल आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज देहरादून से बीएएमएस की पढ़ाई कर चुकी डॉ प्रियंका वर्मा ने बताया कि अस्थमा, गले में खराश, मूत्राशय की पथरी, दिल, मूत्र रोग, खूनी बवासीर, पुरानी पेचिश, शरीर के अंदर या बार कोई गंभीर बीमारी है तो उसका इलाज आयुर्वेद से सम्भव है। किसी अच्छे आयुर्वेद के वैद्य या डॉक्टर से परामर्श करके उसका इलाज किया जाना सम्भव है। इलाज के दौरान जो भी सतर्कता परहेज बरतने को वैद्य के द्वारा बताया जाता है। उसका नियम से पालन करना चाहिए। आयुर्वेदिक दवा में परहेज करना अति आवश्यक है। जिस कारण बड़ा से बड़ा रोग जड़ से आयुर्वेदिक पद्धति में इलाज में खत्म हो जाता हो जाता है। आयुर्वेदिक पद्धति इलाज बहुत चमत्कारी सिद्ध होता है।

डॉ प्रियंका वर्मा

हरड़ के पौधे औषधि के लिए गुणकारी

डॉक्टर प्रियंका बताती हैं, इसके फल, छाल और गोंद का औषधीय रूप से उपयोग किया जाता है। फलों का उपयोग अस्थमा, गले में खराश, मूत्राशय की पथरी, खूनी बवासीर, दिल और आंखों की बीमारियों में किया जाता है। यूनानी प्रणाली में, इसके कच्चे फलों का उपयोग पेचिश और दस्त में किया जाता है।पके हुए फल को वायुनाशी, दस्त लानेवाली और टॉनिक के रूप में उपयोग किया जाता है। इसके फलों का एक ठंडा जलसेक आसव गार्गल के रूप में मुंह के छाले और पुराने अल्सर, खांसी, अस्थमा और मूत्र संबंधी रोगों में उपयोग किया जाता है। इसके फलों का बारीक चूर्ण मसूड़ों से रक्तस्राव और अल्सर में उपयोग किया जाता है।


उन्होंने बताया कि हरड़ के फल को दस्त, पेचिश और पेट फूलने में प्रभावकारी रूप से उपयोग किए जाते हैं। इसके गोंद को टॉनिक के रूप में खाया जाता है और कोलाइटिस पेट संबंधी में भी उपयोग किया जाता है। इससे त्रिफला बनाया जाता है, जो कब्ज के लिए दैनिक उपयोग किया जाता है। इसके जड़ का पेस्ट कंजंक्टिवाइटिस नेत्र संबंधी के लिए उपयोग किया जाता है।

इतना ही नहीं मिर्जापुर जिले की आदिवासी महिलाएं गर्भपात के लिए इसके फलों का पेस्ट खाती हैं और पुरानी छालों में भी इसका इस्तेमाल करती हैं। हींग असफोएटिडा के साथ इसकी पत्तियों के गॉल फोड़े का पेस्ट हड्डी के फ्रैक्चर पर लगाया जाता है। आदिवासी लोग खांसी को ठीक करने के लिए इसके बिना भुने हुए फलों को चबाते हैं और इसके आधे उबले हुए बीज भी खाते हैं। इसके तने की छाल का रस पेट दर्द में दिया जाता है।

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