Sonbhadra News: रिहन्द में केवल 4 फीट पानी बढ़ने से सताने लगी बिजली उत्पादन की चिंता, जानिए वहां का हाल
Sonbhadra News: मानसून की बेरुखी के चलते जुलाई माह के शुरुआत से ही बिजली की मांग और खपत उच्च स्तर पर बनी हुई है। रिहंद के जलस्तर में 16 जून से अब तक महज 4 फीट के करीब की वृद्धि दर्ज हो पाई है।
Sonbhadra News: इस बार देर से मानसून ने दस्तक दी जिससे विघुत उत्पादन में कमी आई है। भीषण गर्मी और उमस में लोगों को बिजली कटौती का सामना करना पड़ रहा है। 35 दिन के दरम्यान महज चार फीट ही पानी जमा हो पाया है। ऊर्जा विशेषज्ञों का कहना है कि अगर शेष बारिश के सीजन में अच्छी बारिश नहीं हुई तो विद्युत उत्पादन पर प्रभाव पड़ेगा।
थर्मल पावर सेक्टर का प्राण कहे जाने वाले तथा प्रदेश को बेहद सस्ती बिजली देने वाले, एशिया के विशालतम जलाशयों में एक रिहंद डैम (गोविंद बल्लभ पंत सागर) में बारिश के 35 दिन के दरम्यान महज चार फीट ही पानी जमा हो पाया है। जुलाई का पहला पखवाड़ा व्यतीत होने के बेहद कम जलस्तर ने पावर सेक्टर की बेचौनी बढ़ा दी है। हालत यह है कि बिजली की अधिकतम मांग में 4000 से 5000 मेगावाट की कमी आने के बावजूद पीक आवर में सोनभद्र सहित प्रदेश के कई हिस्सों में ताबड़तोड़ कटौती का क्रम जारी है।
मंगलवार की सुबह बिजली की मांग 11,000 मेगावाट के न्यूनतम स्तर पर आने के बावजूद सिस्टम कंट्रोल को रुपये 3 प्रति यूनिट से ज्यादा की दर से बिजली खरीदनी पड़ी। वहीं पीक आवर में बिजली की उपलब्धता में 520 मेगावाट की कमी आने से सूबे के उर्जा जगत में हड़कंप की स्थिति बनी रही। यह स्थिति तब दिखी, जब अनपरा और लैंको अनपरा में 800 से 1000 मेगावॉट के लगभग थर्मल बैकिंग करवाई गई।
मानसून की बेरुखी के चलते जहां जुलाई माह के शुरुआत से ही बिजली की मांग और खपत उच्च स्तर पर बनी हुई है। वहीँ रिहंद के जलस्तर में 16 जून से अब तक महज 4 फीट के करीब की वृद्धि दर्ज हो पाई है। डैम के कंट्रोल रूम से मिली जानकारी के अनुसार 16 जून को रिहंद जलाशय का इस वर्ष का न्यूनतम जलस्तर 839.8 रिकॉर्ड किया गया था। वही मंगलवार की सुबह (21 जुलाई) इसका जलस्तर 844.1 रिकॉर्ड किया गया। जबकि इसी तिथि को पिछले वर्ष जलस्तर 848.8 फीट दर्ज किया गया था। इन आंकड़ों से यह पता चलता है कि लगातार विद्युत उत्पादन के लिए पर्याप्त जलस्तर (860.5 फीट) दूर, पिछले वर्ष के मुकाबले भी यह लगभग 5 फीट कम है।
अच्छी बारिश न होने से विद्युत उत्पादन पर प्रभाव
ऊर्जा विशेषज्ञों का कहना है कि अगर शेष बारिश के सीजन में अच्छी बारिश नहीं हुई तो विद्युत उत्पादन पर प्रभाव पड़ने की आशंका के साथ ही बिहार से हुए समझौते के मुताबिक रेणुका नदी (रिहंद) होते हुए सोन नदी में छोड़े जाने वाले पानी की मात्रा को लेकर भी असमंजस की स्थिति बनती दिखाई दे सकती है। कम जलस्तर के कारण मौजूदा समय भी रिहंद और ओबरा जल विद्युत गृह से बिजली उत्पादन आपात स्थिति में ही लिया जा रहा है।
रिहंद जलाशय कई बिजली-कोल परियोजनाओं को देता है जरूरत का पानी
बता दें कि रिहंद डैम को लेकर उत्तर प्रदेश और बिहार में हुए समझौते के मुताबिक टाइम से एक निश्चित मात्रा में पानी वर्ष में दो बार बिहार के लिए छोड़ना पड़ता है। इस पानी को रोहतास जिले में स्थित इंद्रपुरी जलाशय में रोककर बिहार और झारखंड की एक बड़ी एरिया को सिंचाई के लिए उपलब्ध कराया जाता है।
बताते चलें कि उत्तर प्रदेश में स्थापित चार कोल परियोजनाएं, सात बिजली परियोजनाएं, कभी एशिया की सबसे बड़ी रही एल्युमिनियम फैक्ट्री, एक कार्बन फैक्ट्री, दो केमिकल फैक्ट्री, दो जल विद्युत गृह इन परियोजनाओं से जुड़ी कालोनियों बाजारों में पड़ ने वाले पानी की जरूरत की पूर्ति रिहंद डैम के पानी से की जाती है। इसी तरह जनपद से सटे मध्य प्रदेश के सिंगरौली में देश के सबसे बड़े बिजली घर एनटीपीसी विंध्याचल समेत चार बिजली परियोजनाएं, एक एल्युमिनियम फैक्ट्री, छह कोल परियोजनाएं और इससे जुड़ी कालोनियों, बाजार को खपत का ज्यादातर पानी रिहंद डैम से ही पहुंचता है।
2016 के बाद से नहीं बुझी रिहंद जलाशय की प्यास
रिहंद जलाशय के कंट्रोल रूम तथा नार्दन रीजन लोड डिस्पैच सेंटर और स्टेट लोड डिस्पैच सेंटर से मिली जानकारी पर गौर करें तो 2016 के बाद से अब तक रिहंद का जलस्तर अपने उच्च स्तरीय सीमा को नहीं छू पाया है। आंकड़े बताते हैं कि 2016 में 872 फीट को भी पार कर जाने वाला जलस्तर 2017 में 866.2, 2018 में 867.6, 2019 में 863.8, 2020 में 868 फीट तक ही पहुंच पाया है। 2021 में क्या स्थिति होगी यह तो 15 अक्टूबर तक चलने वाले बारिश के सीजन के बाद ही पता चलेगा? लेकिन अभी की जो स्थिति है, वह पावर सेक्टर के अफसरों के पेशानी पर बल डाले हुए है।
भारत की सबसे बड़ी कृत्रिम झील का दर्जा रखता है रिहंद जलाशय
बता दें कि रिहंद परियोजना भारत की एक प्रमुख नदी घाटी परियोजना है। रिहंद जलाशय-रिहंद बांध (गोविंद वल्लभ पंत सागर) सोनभद्र में पिपरी स्थित दो पहाड़ों के बीच रिहंद नदी को बांधकर बनाया गया है। यह झील भारत की सबसे बड़ी कृत्रिम झील है। यह उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के सीमा पर स्थापित है। जलाशय 30 किमी लंबा और 15 किमी चौड़ा है। इस योजना के अंतर्गत 30 लाख किलोवाट विद्युत उत्पन्न करने की क्षमता है। जल संग्रहण क्षेत्र 5148 वर्ग प्रति किमी और जल भंडारण क्षमता 10,608 लाख घन मीटर है, इसकी ऊंचाई 91 मीटर और लंबाई 934 मीटर है। अधिकतम जलस्तर 880 फीट नियत है, लेकिन जलाशय में औद्योगिक अवशिष्टों के भराव के कारण 870 फीट के ऊपर जलस्तर जाते ही बांध के फाटक से पानी छोड़े जाने का क्रम शुरू कर दिया जाता है।