Sonbhadra News: सांप काटने से मौलना समेत दो की मौत, पढ़ें सोनभद्र की बड़ी खबरें
सोनभद्र जिलें में दो लोगों को सांप काटने से मौत हो गई है। जिसमें से एक व्यक्ति अपने ससुराल आया हुआ था जहां उसकी मौत हो गई।
Sonbhadra News: जनपद में गर्मी और उमस सर्पदंश का कहर जारी है। दुद्धी कोतवाली क्षेत्र के दिघुल गांव में जहां ससुराल आए मौलाना की सर्पदंश से मौत हो गई। वहीं राबर्ट्सगंज कोतवाली क्षेत्र के कमालडीह ने सर्प के दंश ने किशोर की जान ले ली। चालू वित्तीय वर्ष में अब तक जहां सर्पदंश के चलते 37 की जान जा चुकी है। वहीं औसतन प्रतिवर्ष लगभग 200 से 250 लोग सर्पदंश की चपेट में आते हैं। इसमे से ज्यादातर लोग अस्पताल उपचार कराने पहुंचते हैं। वहीं कई लोग ऐसे भी होते हैं जो झाड़-फूंक के जरिए ही सर्पदंश का उपचार कराने में लगे रहते हैं।
बताते हैं कि टेढ़ा गांव निवासी मौलाना हाफीजुद्दीन (25) पुत्र अली मोहम्मद बुधवार की देर शाम बकरीद के अवसर पर दिघुल गांव स्थित ससुराल गए हुए थे। वहां रात में खाना खाने के बाद जैसे ही चारपाई पर आराम करने के लिए लेटे, तभी तकिया के नीचे छिपे विषैले सर्प ने गर्दन में डंस लिया। इससे वह कुछ मिनट बाद ही अचेत हो गए। इससे उनके ससुराल में कोहराम मच गया। आनन-फानन में उन्हें सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया।
वहां ड्यूटी पर तैनात डा. मनोज इक्का ने हालत गंभीर बताते हुए सीएचसी में जरूरी ट्रीटमेंट उपलब्ध कराने की बजाय जिला अस्पताल के लिए रेफर कर दिया। रास्ते में जिला अस्पताल आते समय उनकी मौत हो गई। दूसरी घटना राबर्ट्सगंज कोतवाली क्षेत्र के कमालडीह गांव की है। 14 वर्षीय राहुल को बुधवार की देर रात सोते समय पर ने डस लिया। मामले की जानकारी होने पर परिजनों में कोहराम मच गया।
अस्पताल जाने की वजह परिवार के लोग उसकी झाड़-फूंक कराने में लग गए। हालत में सुधार नहीं आया तो दोपहर बाद घोरावल क्षेत्र में जड़ी बूटी से उपचार करने वाले एक व्यक्ति के पास लेकर पहुंचे। तब तक देर हो चुकी थी। वहां उपचार शुरू होने के कुछ देर बाद ही उसकी मौत हो गई। लोगों का कहना था कि समय से अस्पताल ले जाया गया होता तो जान बच सकती थी। ---
भौगोलिक परिवेश बन गया है सांपों का बसेरा:
बताते चलें कि सोनभद्र का दो तिहाई भाग पहाड़, पठार और जंगलों से आच्छादित होने के कारण यहां की भौगोलिक स्थितिया कुछ इस तरह की बन गई हैं कि यहां वर्ष भर सर्पदंश की घटनाएं सुनने को मिलती रहती है। बारिश और उमस के समय इसकी संख्या बढ़ जाती है। अस्पताल में पहुंचने वाले केसों और झाड़फूंक के सामने आने वाले मामलों पर गौर करें तो प्रतिवर्ष सर्पदंश की दो सौ से ढाई सौ घटनाएं होती हैं।
इसमें से सौ से डेढ़ सौ केस अस्पताल पहुंचते हैं। वहीं शेष मामलों में जड़ी-बूटी, झाड़-फूंक का सहारा लिया जाता है। अस्पताल में पहुंचने वाले मौत के केस और सरकारी आंकड़ों पर नजर डालें तो औसतन यहां प्रतिवर्ष सांपों का जहर 40 से 45 लोगों की जान ले लेता है। अप्रैल से अब तक की स्थिति पर नजर डालें तो सरकारी आंकड़े एक सप्ताह पूर्व 31 के मौत की पुष्टि कर सकते हैं। घोरावल क्षेत्र में तीन दिन के भीतर चार की मौत सामने आ चुकी है। एक मौत दुद्धी क्षेत्र और एक मौत राबर्ट्सगंज कोतवाली क्षेत्र में सामने आई है। -
एंटी स्नैक वेनम की उपलब्धता बनी रहती है चुनौतीः
सोनभद्र में ज्यादातर सर्पदंश की घटनाएं जून से सितंबर के बीच होती है। इस दौरान जिला अस्पताल के सभी प्रमुख सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर एंटी स्नेक वेनम की पर्याप्त और नियमित उपलब्धता बड़ी चुनौती बनी रहती है। जिला अस्पताल में इस सप्ताह की स्थिति पर गौर करें तो यहां से 500 एंटी स्नेक वेनम की डिमांड की गई थी जिसमें लखनऊ से 100 डोज ही उपलब्ध कराई गई। 500 के लिए नई डिमांड भेजी गई है।
चतरा जिले के सीएचसी-पीएचसी के लिए भी की जाने वाली मांग और आपूर्ति में अंतर बना हुआ है। सर्पदंश के मामले में डेंजर जोन कहे जाने वाले दुद्धी के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में दो दिन पूर्व पूरी तरह एंटी स्नेक वेनम खत्म होने से हड़कंप की स्थिति बन गई थी। बुधवार को वहां डोज भेजी गई, तब जाकर लोगों ने राहत की सांस ली।
एक सर्पदंश पीड़ित को लगाई जाती है पांच से दस एंटी स्नेक वेनम:
बता दें कि एक सर्पदंश के मामले में मरीज को खतरे से बाहर लाने के लिए थोड़े-थोड़े अंतराल पर कम से कम पांच एंटी स्नेक वेनम लगाई जाती है। कुछ मामलों में यह सात से दस तक पहुंच जाती है। उधर मुख्य चिकित्सा अधिकारी नेम सिंह ने दावा किया कि जिले में जरूरत के हिसाब से एंटी स्नेक वेनम की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित कर ली गई है। सीएचसी-पीएचसी पर क्या स्थिति है? इसकी रोजाना जानकारी करवाई जा रही है।
बिजली की मांग ने फिर पकड़ी तेजी, 21817 मेगावाट तक पहुंची मांग
वहीं तीन दिन की नरमी के बाद बिजली की मांग में फिर से आई तेजी ने सरप्लस बिजली के दावों की हवा निकाल कर रख दी है। नॉर्दन रीजन लोड डिस्पैच सेंटर के आंकड़े बताते हैं कि बुधवार की रात पीक आवर के समय महंगी बिजली खरीदी जाने के बावजूद 360 मेगावाट की बिजली उपलब्धता कम पड़ गई। इसके चलते मांग और आपूर्ति में संतुलन बनाए रखने के लिए सोनभद्र सहित प्रदेश के कई हिस्सों में ताबड़तोड़ बिजली कटौती की गई।
अवर्षण की स्थिति जहां भारी उमस बनाए हुए है। वहीं इसके चलते बिजली खपत आए दिन रिकॉर्ड ऊंचाई छू रही है। यह स्थिति तब है जब प्रदेश के कई हिस्सों को, खासकर ग्रामीण इलाकों को, कई-कई घंटे के साथ कई-कई दिन बत्ती गुल होने का दंश झेलना पड़ रहा है। स्टेट लोड डिस्पैच सेंटर से मिली जानकारी के मुताबिक पिछले तीन दिन तक 20000 मेगावाट के नीचे रहने वाली बिजली की मांग बुधवार की रात 9:27 बजे ही 21871 मेगावाट पर पहुंच गई। इसके बाद की स्थिति बिजली कटौती कर नियंत्रित की गई। गुरुवार को भी आसमान में बादलों के डेरा जमाए रहने के बावजूद भारी उमस बिजली की खपत बढ़ाए रही। दोपहर होते-होते मांग 18,000 मेगावाट को पार कर गई। --
अनपरा डी में शून्य उत्पादन के चलते चलानी पड़ी जल विद्युत इकाइयां :
प्रदेश को सस्ती बिजली देने वाली 1000 मेगावाट क्षमता की अनपरा की परियोजना का उत्पादन शून्य रहने के चलते, रिहंद डैम का जलस्तर कम रहने के बावजूद बुधवार की पूरी रात ओबरा और रिहंद जलविद्युत की इकाइयों से पूर्ण क्षमता से बिजली पैदा करने की कोशिश बनी रही। गुरुवार को भी विद्युत उत्पादन लिया गया। अनपरा परियोजना प्रबंधन का कहना है कि अनपरा डी की बंद पड़ी दोनों इकाइयों को उत्पादन पर लेने के लिए युद्ध स्तर पर प्रयास जारी हैं।पूरी उम्मीद है कि इस सप्ताह के अंत तक उत्पादन शुरू हो जाएगा।
-विभिन्न परियोजनाओं की 10 इकाइयों से थमा पड़ा है उत्पादनः
कहीं ट्रिपिंग तो कहीं अनुरक्षण कार्य के चलते वर्तमान में विभिन्न परियोजनाओं की कुल 2072 मेगावाट की क्षमता वाली 11 इकाइयां बंद चल रही है। इसमें जनपद में स्थित ओबरा परियोजना की 200 मेगावाट क्षमता वाली 13वीं, अनपरा डी परियोजना की दोनों इकाइयां, एनटीपीसी सिंगरौली परियोजना की 200 मेगावाट क्षमता वाली तीसरी और 500 मेगावाट क्षमता वाली सातवीं इकाई भी शामिल हैं। अनपरा और ओबरा परियोजना प्रबंधन का कहना है उनके यहां बंद चल रही इकाइयों को लाइटअप करने का काम शुरू कर दिया गया है। इस कार्य के पूर्ण होते ही इकाइयों को उत्पादन पर लेने का काम शुरू कर दिया जाएगा। बता दें कि ओबरा की तेरहवीं और अनपरा डी की दूसरी इकाई लंबे समय से बंद चल रही है। इनके उत्पादन पर आने के बाद सस्ती बिजली की उपलब्धता के मामले में पावर सेक्टर को बड़ी राहत मिलती नजर आएगी। उधर एनटीपीसी प्रबंधन का कहना है कि अनुरक्षण पर चल रही इकाइयों को अगस्त में उत्पादन पर आ जाने की उम्मीद है।