Political Interview: उम्र कम मगर हौसले बुलंद, चुनाव जीतने पर आदिवासी और मजदूरों के हक की लड़ाई लड़ेंगे डॉ. रवि गोंड़
Political Interview: अन्य दलों के लोगों की तरह डॉ. रवि गोंड़ "बड़कू" ने भी चुनावी समर को लेकर तैयारियां शुरू कर दी हैं।
Political Interview: ऊर्जांचल की राजनीति के युवा चेहरा डॉ. रवि गोंड़ "बड़कू" को 2017 के विधानसभा चुनाव के पूर्व तक एक सामान्य कार्यकर्ता के रूप में पहचाना जाता था। कम उम्र होने के कारण उनकी राजनीतिक दक्षता पर भी सवाल उठाए जाते थे। महज 28 वर्ष की उम्र में ओबरा विधानसभा से वर्ष 2017 में सपा के टिकट पर विधानसभा प्रत्याशी के रूप में पारी शुरू की तो लोगों को लगा कि सपा की नैया यहां पूरी तरह से डूब जाएगी । लेकिन एक तरफ मोदी लहर और दूसरी तरफ ओबरा विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के मजबूत सियासी समीकरण के बावजूद न केवल भाजपा को कड़ी टक्कर दी । बल्कि इससे पूर्व के चुनाव में जीते प्रत्याशी के बराबर मत पाकर राजनीतिक दक्षता को लेकर सवाल उठाने वाले लोगों के मुंह पर ताला लगा दिया। अब एक बार फिर से विधानसभा चुनाव कि दुंदुभी बजनी शुरू हो गई है ।
अन्य दलों के लोगों की तरह डॉ. रवि गोंड़ "बड़कू" ने भी चुनावी समर को लेकर तैयारियां शुरू कर दी हैं। इसके लिए गांव-गांव लोगों से मिलना, उनके साथ बैठकें करना, उनकी समस्याओं के निदान की रणनीति बनाने का काम शुरू कर दिया गया है। उनके इस व्यस्त शिड्यूल के बीच न्यूज ट्रैक ने उनसे, उनके राजनीतिक सफर, उनकी जीवनशैली और मौजूदा समय के राजनीतिक परिदृश्य के प्रति उनकी सोच को लेकर कई सवाल दागे, जिसका उन्होंने कुछ इस तरह से बेबाक जवाब दिया...।
प्रश्न- आप राजनीति में नहीं आते तो क्या करते?
उत्तर- बचपन से ही राजनीतिक और सामाजिक कार्यो के साथ सिविल सर्विसेस प्रेरणादायक रही। राजनीति में न आता तो निश्चित तौर पर सिविल सर्विसेज के क्षेत्र में प्रयास करता।
प्रश्न- आपको खाने, पहनने में क्या पसंद है?
उत्तर- घर का बना हर भोजन। पहनने में खादी और कॉटन के साधारण कपड़े , ज्यादातर लोवर टी-शर्ट में रहना पसंद है।
प्रश्न- राजनीति के अलावा अन्य कार्यों के लिए समय?
उत्तर - जनसेवा और प्रकृति प्रेम में रुचि है।
प्रश्न- वर्तमान राजनीति में बदलाव चाहते है क्या? यदि हाँ तो कैसा?
उत्तर - राजनीति की पहचान जनसेवा के रूप में है। इसमें जनता और जनसेवक के बीच झूठे वादों का कोई स्थान नही होना चाहिए। वर्तमान समय में नेता के साथ ही राजनीतिक दल भी घोषणा पत्र में अनेकों झूठे वादों की लाइन लगा देते हैं। वह सीधे तौर पर आम जनमानस की भावनाओं और मजबूरियों से जुड़े होते हैं, जो बाद में पूर्ण न होने पर उन्हें आहत करते हैं। नेता और राजनीतिक दलों को इसमे सुधार करना चाहिए। साथ ही चुनाव आयोग को भी इसे संज्ञान में लेना चाहिए ।
प्रश्न- ज़िंदगी का सबसे बेहतरीन क्षण, जिसे याद करना चाहेंगे।
उत्तर - सन् 2017 में सोनभद्र के ओबरा विधानसभा से समाजवादी पार्टी से टिकट के लिये आवेदन किया था। पार्टी से बतौर कार्यकर्ता, हर स्तर पर समर्पित होकर कार्य, सामाजिक जुड़ाव और शैक्षणिक योग्यता ही मात्र हमारी पूंजी थी जिसे समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने प्राथमिकता देते हुए बिना किसी राजनीतिक बैकग्राउंड के साधारण मजदूर श्रेणी कर्मचारी परिवार से होते हुए भी हम जैसे साधारण कार्यकर्ता को महज 28 वर्ष की उम्र में ओबरा विधानसभा का प्रत्याशी बनाकर विधानसभा चुनाव लड़ने का मौका दिया। उस वक़्त आंखे नम और मन भावुक था। चुनाव हारने के बाद भी जब मैं अपने हरदिल अजीज नेता अखिलेश यादव जी से मिलने गया तो उनके आशीर्वाद स्वरूप वो शब्द "तुमने अच्छी लड़ाई लड़ी रवि कभी हौसला मत कम करना, क्षेत्र में सदैव बने रहना, मेहनत करो, हर परिस्थिति में मैं तुम्हारे साथ हूं। निरंतर मेहनत और समर्पण ही सभी को जीत तक पहुचाती है" मुझे आज भी हौसला देते हैं। वह क्षण और उस समय बोले गए शब्द ताउम्र एक नई ऊर्जा देते रहेंगे।
प्रश्न- ज़िंदगी की ऐसी कोई घटना जिसने आपको सबसे ज़्यादा दुख पहुँचाया हो।
उत्तर - ऐसी कोई बड़ी दुखद घटना उनके जीवन में नहीं हुई है लेकिन राजनीति या सामान्य जीवन में अक्सर अपने सबसे प्रिय तथा अपनों का ही अविश्वसनीय रूप देखने को मिलता है जो भावनात्मक रूप से काफी दुःखद होता है। वहीं उन अपनों की भीड़ में ही कुछ ऐसे लोग भी हैं कि आपके हर परिस्थितियों, संघर्षों में आपको सकारात्मक ऊर्जा देने का काम करते हैं। क्योंकि सुख दुख जीवन का एक हिस्सा है इसलिए जहां तक बन सके इसे मैं एक सामान्य रूप में लेने की कोशिश करता हूं।
प्रश्न- बच्चों को राजनीति में उतारना चाहेगें।
उत्तर - जी बिल्कुल, यदि उनमें राजनीतिक काबिलियत रही तो जरूर राजनीति में लाया जाएगा। वैसे हमारी निजी सोच है कि कैरियर का चुनाव हमारे-आपके रुचि पर निर्भर न होकर बच्चों की रूचि पर निर्भर हो। उन्हें अपने भविष्य को लेकर फैसले की आजादी दी जाए।
प्रश्न- विधायक निधि के बारे में आपकी राय क्या है? इसे भ्रष्टाचार का कारण मानते हैं या विकास के लिए ज़रूरी।
उत्तर - विधायक निधि विकास का बड़ा उचित माध्यम है जो विधायको की रुचि पर तत्काल रूप से जनता को समर्पित होता है । लेकिन इसे भ्रष्टाचार का साधन बना देना मेरी नज़र में जनादेश के साथ धोखा है । इस पर रोक लगनी चाहिए। ऐसी प्रवृत्ति के लोगों का राजनीतिक बहिष्कार भी होना चाहिए।
प्रश्न- पहले या किसी चुनाव की कोई घटना जो शेयर करना चाहेंगे ?
उत्तर - 2012 के विधानसभा चुनाव में ओबरा विधानसभा के भाठ क्षेत्र कुलडोमरी में चुनाव प्रचार के दौरान रोजमर्रा के आदिवासी दिहाड़ी मजदूरों के बीच मौजूद था। क्षेत्रीय विकास के लिए लोगों से सपा की सरकार बनाने की अपील करते हुए वोट मांग रहा था। तभी एक मजदूर भाई सामने आए। कहा कि साहब बड़ी-बड़ी कंपनी आईं। उनके साथ विकास का पहिया भी दौड़ा लेकिन पहाड़ी क्षेत्र के लोग आज़ादी के बाद से अब तक सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसी बुनियादी सुविधाओं को लेकर जूझ रहे हैं।
वह सवाल न केवल दिल को झकझोरने वाला था बल्कि शासन व्यवस्था पर बड़ा और एक जायज सवाल सामने खड़ा था। मेरा मानना है कि राजनीति में कुछ नया करने की सोच रखने वालों के लिए यह सवाल बहुत बड़ी सीख और एक संदेश था, जिस पर सभी को ध्यान देना चाहिए।
प्रश्न- 2022 में पार्टी पुनः प्रत्याशी बनाती है, और जीतते हैं तो आपकी प्राथमिकता क्या होगी ?
उत्तर - जनता का जनादेश मिला तो मूलभूत सुविधाओं को सभी के लिए उपलब्ध और बेहतर बनाना प्राथमिकता होगी। ग्रामीण आदिवासी अंचलों में शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, बिजली, पानी के लिए प्राथमिकता से कार्य कराया जाएगा । फिलहाल आदिवासी और मजदूर बाहुल्य क्षेत्र में उनके हर हक-अधिकार की लड़ाई में मजबूती से साथ तो रहूंगा ही, स्थानीय बेरोजगारों को स्थानीय कल कारखानों में प्राथमिकता के आधार पर रोजगार दिलाने के लिए भी हर स्तर से लड़ाई जारी रहेगी।।