Sonbhadra News: 'कर्मनाशा' नदी को शापित होने का टूटा मिथक, कई ने लगाई डुबकी, किया पूजा-अर्चना और हवन

Sonbhadra News: गंगापुत्र कहे जाने वाले निलय उपाध्याय की अगुवाई में आज कई लोगों ने स्नान किया। इतना ही नहीं नदी का पूजा-अर्चना और नदी तट पर हवन कर एक नई परंपरा की शुरुआत की।

Published By :  Ragini Sinha
Update: 2022-01-14 11:34 GMT

कर्मनाशा’ नदी को शापित होने का टूटा मिथक 

Sonbhadra News: सदियों से स्थापित होने का दंश झेल रही पौराणिक नदी 'कर्मनाशा' के लिए मकर संक्रांति पर शुक्रवार का दिन एक नई सुबह लेकर आया है। गंगापुत्र कहे जाने वाले निलय उपाध्याय की अगुवाई में आज कई लोगों ने स्नान किया। इतना ही नहीं नदी का पूजा-अर्चना और नदी तट पर हवन कर एक नई परंपरा की शुरुआत की। बता दें की लोग पहले इस नदी में स्नान तो दूर, छूने से भी लोग घबराते थे। यूपी के सोनभद्र और बिहार के कैमूर की सीमा पर स्थित कैमूर श्रृंखला से निकली 'कर्मनाशा' नदी के लिए भी यह पहल दूर तक संदेश देने वाली रही।       

'मकर संक्रांति पर यहां स्नान कर असीम शांति मिली'

गंगोत्री से गंगासागर तक साइकिल यात्रा कर गंगा संरक्षण की अलख जगाने वाले और गंगा को लेकर कई पुस्तकें लिखने वाले निलय उपाध्याय ने जहां पूरे अभियान की अगुवाई की। वहीं, उन्होंने कहा कि उन्हें मकर संक्रांति के अवसर पर यहां स्नान कर असीम शांति मिली है। सूर्योपासना से जुड़े पर्वों का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि पुरातन काल से दो प्रमुख पर्व मनाए जाते हैं। पहला छठ पर्व है, जिसमें सूर्योपासना कर शीत ऋतु में प्रवेश करते हैं और दूसरा पर्व मकर संक्रांति है, जिस पर सूर्योपासना कर शीत ऋतु से बाहर निकलते हैं। दोनों पर्वों पर नदी में स्नान का विशेष महत्व माना गया है।


'कर्मनाशा नदी वास्तव में कर्मावती नदी है'

उन्होंने आगे कहा कि मकर संक्रांति के पावन अवसर पर सोनभद्र में कर्मनाशा में स्नान कर अपने पुरखों और लोक मानस के पाप को धोया। वैदिक काल में जिस नदी को शापित किया गया, उसके लिए वह क्षमा प्रार्थी हैं कि इतने दिन तक वह कुछ नहीं कर सके। आज स्नान कर के वह जनमानस को यह बताना चाहते हैं कि जिसे कर्मनाशा कहा गया है, वह वास्तव में कर्मावती नदी है और आज इस कार्यक्रम के जरिए वह नदी को शापमुक्त घोषित करते हैं।

ये रहें मौजूद

इस मौके पर उनके साथ विजय शंकर चतुर्वेदी, विजय विनीत तिवारी सहित कई लोग शामिल रहें। यह नजारा आसपास के लोगों के लिए कौतूहल का विषय बना रहा। 

बताते चलें कि मकर संक्रांति पर्व पर स्नान और दान का विशेष महत्व माना जाता है। गंगा सहित देश की सभी प्रमुख नदियों में इस अवसर पर स्नान के लिए श्रद्धालुओं का रेला उमड़ पड़ता है, लेकिन कर्मनाशा नदी के शापित होने के पौराणिक आख्यानों के चलते लोग मकर संक्रांति जैसे विशेष पर्वों पर इस नदी में स्नान तो दूर, इसकी तरफ जाना भी पसंद नहीं करते। कर्मनाशा नदी (Karmanasa River) सोनभद्र से सटे बिहार के कैमूर जिले से चलकर सोनभद्र और चंदौली की कुल 192 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए गाज़ीपुर ज़िले के बाड़ा गांव और बिहार के बक्सर ज़िले के चौसा गांव के पास गंगा में मिल जाती है।

गंगा जैसी पवित्र नदी से जुड़ा होने के बावजूद जनमानस में इसके शापित समझते हैं। शुक्रवार को निलय उपाध्याय की अगुवाई में नदी के शापित होने का मिथक तोड़ने को लेकर किया गया प्रयास आगे चलकर कितना प्रभावी होगा यह तो वक्त बताएगा? लेकिन इस साहसिक पहल ने एक नई चर्चा तो छेड़ ही दी है। 

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