उत्तराखंड त्रासदी: महंगी पड़ी चेतावनी की अनदेखी, वैज्ञानिकों ने जताई थी आशंका
देहरादून के वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ बायोलॉजी के वैज्ञानिकों ने ग्लेशियरों के बारे में अध्ययन किया था। वैज्ञानिकों का कहना था कि जम्मू-कश्मीर के काराकोरम रेंज समेत पूरे हिमालय क्षेत्र में ग्लेशियरों द्वारा नदी का प्रवाह रोकने से कई झीलें बनी है।
नई दिल्ली: उत्तराखंड के चमोली जिले में रविवार को ग्लेशियर के फटने से मची तबाही के पीछे चेतावनी को अनदेखा करना बड़ा कारण रहा है। वैज्ञानिकों ने इस बाबत पहले ही चेतावनी दी थी मगर सरकार और शासन की ओर से इस चेतावनी की गंभीरता को नहीं समझा गया। जानकारों का कहना है कि अगर आठ महीने पहले वैज्ञानिकों की ओर से दी गई इस चेतावनी पर कार्रवाई की गई होती तो शायद देवभूमि में रविवार को हुई घटना से बचा जा सकता था।
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प्रवाह रोकने से बनीं झीलें खतरनाक
देहरादून के वाडिया इंस्टीट्यूट आफ जियोलॉजी के वैज्ञानिकों ने ग्लेशियरों के बारे में अध्ययन किया था। वैज्ञानिकों का कहना था कि जम्मू-कश्मीर के काराकोरम रेंज समेत पूरे हिमालय क्षेत्र में ग्लेशियरों द्वारा नदी का प्रवाह रोकने से कई झीलें बनी है। वैज्ञानिकों ने इसे बेहद खतरनाक स्थिति बताया था।
वैज्ञानिकों ने इस बाबत श्योक नदी का उदाहरण दिया था। उनका कहना था कि श्योक नदी के प्रवाह को एक ग्लेशियर ने रोक दिया है और इसकी वजह से वहां एक बड़ी झील बन गई है। वैज्ञानिकों के मुताबिक झील में ज्यादा पानी होने पर इस ग्लेशियर के फट जाने का खतरा है।
तेजी से पिघल रहे हैं ग्लेशियर
वैज्ञानिकों ने कुल 146 लेक आउटबस्ट की घटनाओं का पता लगाकर उसकी विवेचना भी की थी। इस शोध में वैज्ञानिकों का कहना था कि हिमालय क्षेत्र की लगभग सभी घाटियों में स्थित ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं जो किसी भी समय खतरे का कारण बन सकते हैं।
इसके साथ ही उनका यह भी कहना था कि पीओके वाले काराकोरम क्षेत्र में ग्लेशियर में बर्फ की मात्रा बढ़ रही है। इस कारण ये ग्लेशियर समय के निश्चित अंतराल पर आगे बढ़कर नदियों का मार्ग अवरुद्ध कर रहे हैं। इस प्रक्रिया में ग्लेशियर के ऊपरी हिस्से की बर्फ तेजी से पिघल कर निचले हिस्से की ओर जाती है।
2013 की आपदा का दिया था उदाहरण
2013 में हुए केदारनाथ हादसे के बाद वैज्ञानिक लगातार हिमालय पर शोध करने में जुटे हुए हैं। देहरादून के भूविज्ञान संस्थान के शोधकर्ताओं का मानना है कि ग्लेशियरों के कारण झीलें बनती हैं और ये झीलें ही बाद में बड़े खतरे का कारण बन जाती हैं।
वैज्ञानिकों ने 2013 की भीषण आपदा का उदाहरण देते हुए यह भी कहा था कि इस आपदा से समझा जा सकता है कि किस तरह एक झील के फट जाने से कहीं भी तबाही आ सकती है।
लगातार निगरानी की जरूरत
इस अध्ययन से जुड़े वैज्ञानिकों ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि हिमालय क्षेत्र में ग्लेशियरों की स्थिति की लगातार निगरानी की जानी चाहिए। ऐसा करना इसलिए भी जरूरी है ताकि किसी बड़ी आपदा से बचा जा सके।
अपने इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने कहा है कि शोध से पता चलता है कि हिमालय क्षेत्र की लगभग सभी घाटियों में ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं।
चेतावनी का सिस्टम बनाने पर जोर
दूसरी ओर पाक अधिकृत कश्मीर वाले काराकोरम क्षेत्र में ग्लेशियर में बर्फ की मात्रा में लगातार बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है। ग्लेशियर का आकार बढ़ने पर यह नदियों का प्रवाह रोक देते हैं।
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वैज्ञानिकों ने इस बात पर जोर दिया है कि इस बाबत चेतावनी का सिस्टम विकसित किया जाना चाहिए ताकि आबादी वाले निचले इलाकों को आने वाले नुकसान से बचाया जा सके।
रिपोर्ट- अंशुमान तिवारी
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