न्यूयॉर्क: 11 सितंबर 2001 को अमेरिका पर हुए आतंकी हमले को भले ही 16 वर्ष पूरे हो जाएं या 50 वर्ष, इन हमलों का भूत अमेरिका को हमेशा सताता रहेगा।
उस समय हमलों को पर्ल हार्बर नाम दिया गया। इन हमलों के बाद अमेरिका ने सुरक्षा व्यंवस्थाे को पहले से ज्याेदा चाक-चौबंद कर दिया था।
अल कायदा ने इन हमलों की जिम्मेमदारी ली थी। अल कायदा के सरगना ओसामा बिन लादेन ने 19 हाइजैकर्स में से 15 सऊदी अरब के थे और बाकी यूएई, इजिप्ट और लेबनान के रहने वाले थे। कुछ आतंकी तो यूरोप में रहे और बाद अमेरिका में बसने कामयाब हो गए थे।
वर्ल्डे ट्रेड सेंटर क्या था
न्यू्यॉर्क के मैनहट्टन स्थित वर्ल्ड ट्रेड सेंटर सात बिल्डिंग्सह का एक कॉम्ले त क्सद था जिसमें से ज्या दातर ऑफिस और कमर्शियल इस्तेमाल के लिए थीं। वर्ष 1970 की शुरुआत में इन बिल्डिंग्सस का काम पूरा हुआ और वर्ष 1973 में इसे खोला गया। 1,300 फीट की ऊंचाई वाली ये इमारतें अमेरिका की शान बन गई थीं। इन्हेंक दुनिया की सबसे ऊंची बिल्डिंग माना जाता था।
आतंकवादियों ने हाईजैक किए विमान को सेंटर से टकरा दिया था जिसमें पूरी इमारत देखते देखते भरभरा के गिर गई थी। उस हमले में करीब पांच हजार लोग मारे गए थे ।लेकिन वाह से अमरीकी मीडिया ,हमले के दौरान मारे गए एक भी व्यक्ति की फोटो नहीं दिखाई गई थी । 9/11 पहली साजिश नहीं
वर्ष 1993 में आतंकियों ने वर्ल्डम ट्रेड सेंटर के अंडरग्राउंड गैराज में एक ट्रक बम प्लांाट किया था। जोरदार ब्लाेस्टे में सात मंजिलों को नुकसान पहुंचा था। उस समय छह लोगों की मौत हुई और करीब 1,000 लोग घायल हो गए थे। लेकिन दोनों टॉवर्स को कुछ नहीं हुआ था। एफबीआई ने बाद में हमले में शामिल सात आतंकियों को गिरफ्तार किया था।
अब दोगुनी ऊंचाई वाला वर्ल्डह ट्रेड सेंटर
वर्ल्डत ट्रेड सेंटर को स्टीवल से तैयार किया गया था। इसकी डिजाइन ऐसी थी कि यह 200 मील प्रति घंटे से चलने वाली हवाओं का भी झेल सकता था और अगर कोई बड़ी आग लग जाती तो भी इस बिल्डिंग को कुछ नहीं होता। लेकिन यह बिल्डिंग जेट फ्यूल की गर्मी को झेल नहीं पाई थी और स्टील की बनी इमारत पिघल कर जमीन पर आ गई थी ।
हमलों के बाद अमेरिका ने क्याक किया
9/11 के बाद अमेरिका ने होमलैंड सिक्योनरिटी नामक एक डिपार्टमेंट बनाया। इस डिपार्टमेंट का काम सिक्योररिटी एजेंसियों के साथ मिलकर आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई करना है। इसके अलावा एयरपोर्ट पर यात्रियों की स्क्री निंग प्रक्रिया को बढ़ाया गया और दुनिया के बाकी देशों के बीच इंटेलीजेंस शेयरिंग को और मजबूत बनाया गया।