Afghanistan Panjshir : पंजशीर फिर बना तालिबान के विरोध का केंद्र

Afghanistan Panjshir : राजधानी काबुल से 113 किलोमीटर दूर किलेनुमा घाटी में करीब 2 लाख की आबादी वाला पंजशीर इन दिनों पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बना हुआ है।

Written By :  Neel Mani Lal
Published By :  Vidushi Mishra
Update: 2021-08-21 09:17 GMT

पंजशीर (फोटो- सोशल मीडिया)

Afghanistan Panjshir : अफगानिस्तान के 34 प्रांतों में से पंजशीर इकलौता ऐसा राज्य है जिस पर न तो सोवियत संघ कब्ज़ा कर पाया और न तालिबान। काबुल से 113 किलोमीटर दूर किलेनुमा घाटी में करीब 2 लाख की आबादी वाला पंजशीर इन दिनों पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बना हुआ है। जहाँ अमेरिका और नाटो देशों की सेनाएं तालिबान से थक कर वापस जा चुकी हैं, वहीं पंजशीर में स्थित विद्रोही गुट तालिबान को टक्कर देने के लिए फिर एकजुट हो रहे हैं।

पंजशीर के अधिकांश लोग फ़ारसी बोलने वाले ताजिक समुदाय के हैं। पंजशीर प्रान्त में मशहूर पंजशीर घाटी आती है। पंजशीर को पंजशेर भी कहते हैं जिसका मतलब है पांच शेरों की घाटी। लोगों का मानना है कि घाटी के पांच भाईयों ने गजनी के सुल्तान महमूद के लिए पंजशीर नदी पर बाँध बनाया था और बाढ़ के पानी को रोका था। उसी के बाद से इसका नाम पांच शेरों की घाटी पड़ गया।

अहमद शाह मसूद

पंजशीर, नार्दर्न अलायन्स और अहमद शाह मसूद – ये सब एक दूसरे के पर्याय हैं। इसकी शुरुआत अहमद शाह मसूद से होती है जो उत्तरी अफगानिस्तान की पंजशीर घाटी के एक ताजिक सुन्नी मुसलमान थे।

सत्तर के दशक में मसूद बुरहानुद्दीन रब्बानी द्वारा चलाये जा रहे कम्युनिस्ट विरोधी इस्लामिक आन्दोलन से मसूद की शुरुआत हुई और बाद में वह रब्बानी की पार्टी जमात-ए-इस्लामी में शामिल हो गए।

फोटो- सोशल मीडिया

1979 में मसूद ने सोवियत संघ के खिलाफ जबर्दस्त प्रतिरोध संघर्ष शुरू किया और अपने रणनीतिक कौशल और जुझारू नेतृत्व के चलते 'पंजशीर के शेर' के नाम से मशहूर हो गए। मसूद की वजह से सोवियत संघ पंजशीर पर कभी नियंत्रण नहीं जमा पाया। इस घाटी में आज भी सोवियत सेनाओं के हमलों की निशानियाँ बिखरी पड़ी हैं।

अफगानिस्तान में सोवियत समर्थित कम्युनिस्ट सरकार के पतन के बाद 'इस्लामिक स्टेट ऑफ़ अफगानिस्तान' नाम से सरकार का गठन किया गया था जिसमें कई अफगान मुजाहिदीन पार्टियाँ शामिल थीं। इसी सरकार के प्रेसिडेंट बुरहानुद्दीन रब्बानी और रक्षा मंत्री अहमद शाह मसूद थे।

1995 में तालिबान का उदय हुआ तो मसूद ने उसके कट्टरपंथी इस्लामिक टूट तरीकों को नामंजूर कर दिया। तालिबान के हमलों के खिलाफ मसूद के गुट ने जम कर लोहा लिया लेकिन बाद में उन्हें देश छोड़ कर ताजिकिस्तान जाना पड़ा।

यूनाइटेड इस्‍लामिक फ्रंट फॉर द सालवेशन ऑफ अफगानिस्‍तान

इसके बाद मसूद ने तालिबान से टक्कर लेने के लिए नार्दर्न अलायन्स या 'यूनाइटेड इस्‍लामिक फ्रंट फॉर द सालवेशन ऑफ अफगानिस्‍तान' की स्थापना की। इस अलायन्स में शुरुआत में सिर्फ 2 हजार ताजिकिस्तानी लड़ाके शामिल थे। बाद में इस गठबंधन में बुरहानुद्दीन रब्बानी और अब्दुल रशीद दोस्तम, अमरुल्लाह सालेह जैसे लोग भी शामिल हो गए।

तालिबान सरकार के खिलाफ नार्दर्न अलायन्स के संघर्ष को भारत, ईरान, रूस, तुर्की, ताजकिस्तान, उज्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान का समर्थन मिला था। 2001 में अफगानिस्तान के करीब 10 फीसदी हिस्से पर नार्दर्न अलायन्स का कब्जा हो गया था।

फोटो- सोशल मीडिया

अमेरिका पर 9/11 के हमले के मात्र दो दिन पहले अलकायदा और तालिबान ने गहरी साजिश करके एक फिदायीन हमले में अहमद शाह मसूद की ह्त्या करवा दी।

9/11 हमले के बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान पर धावा बोल दिया और तालिबान को मार कर भगा दिया। तालिबान शासन के अंत होने के साथ नार्दर्न अलायन्स को भंग कर दिया गया और उसके घटक गुटों ने अफगानिस्तान की नई सरकार को समर्थन दे दिया। नार्दर्न अलायन्स के कई लोग अफगान सरकार में शामिल भी हुए थे।

फिर तालिबान से टक्कर

अब पंजशीर की सुरक्षा का जिम्‍मा उनके बेटे अहमद मसूद पर है। नार्दर्न अलायन्स में शामिल रहे अमरुल्लाह सालेह अफगान सरकार में उप राष्ट्रपति थे और अब उन्होंने अपने को कार्यवाहक राष्ट्रपति घोषित कर दिया है। यानी तालिबान के खिलाफ फिर से नार्दर्न अलायन्स तैयार हो रहा है। अहमद मसूद और अमरुल्लाह सालेह, दोनों ही पंजशीर घाटी में तालिबान से लड़ाई की तैयारी में जुटे हुए हैं।

ताजिक असल में अफगानिस्‍तान के दूसरे सबसे बड़े एथनिक ग्रुप हैं। पंजशीर में हजारा समुदाय के लोग भी रहते हैं जिन्‍हें चंगेज खान का वंशज समझा जाता है। तालिबान हजारा समुदाय को मुस्लिम ही नहीं मानता है और इस समुदाय का बड़े पैमाने पर नरसंहार भी किया गया है

अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद का कहना है कि वह अपने पिता के नक्शेकदम पर चलने की उम्मीद कर रहे हैं। अहमद मसूद ने अमेरिका से अपने लड़ाकों को हथियार और गोला-बारूद की आपूर्ति करने का भी आह्रान किया है। अहमद मसूद ने कहा है कि अमेरिका अब भी लोकतंत्र का एक बड़ा शस्त्रागार हो सकता है। उसने कहा कि हम एक बार फिर तालिबान से मुकाबला करने के लिए तैयार हैं।

वहीं, अमरुल्ला सालेह ने कहा है कि - मैं तालिब आतंकवादियों के आगे कभी नहीं, कभी भी और किसी भी परिस्थिति में नहीं झुकूंगा। मैं अपने हीरो अहमद शाह मसूद, कमांडर, लेजेंड और गाइड की आत्मा और विरासत के साथ कभी विश्वासघात नहीं करूंगा। मैं उन लाखों लोगों को निराश नहीं करूंगा जिन्होंने मेरी बात सुनी। मैं तालिबान के साथ कभी भी एक छत के नीचे नहीं रहूंगा।

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