Andes Plane Crash: '16 लोग, 72 दिन...' जब खाना पड़ा दोस्तों का मांस,जान बचाने की सबसे भयावह कहानी
Andes Plane Crash:कुछ घटनाएँ इतिहास में इस कदर गहरी छाप छोड़ जाती हैं कि वे सदियों तक याद रखी जाती हैं। 1972 में एंडीज के बर्फीले पहाड़ों में घटी एक ऐसी ही घटना ने पूरी दुनिया को दहला दिया।
Andes Plane Crash: कुछ घटनाएँ इतिहास में इस कदर गहरी छाप छोड़ जाती हैं कि वे सदियों तक याद रखी जाती हैं। 1972 में एंडीज के बर्फीले पहाड़ों में घटी एक ऐसी ही घटना ने पूरी दुनिया को दहला दिया। यह कहानी है 16 जिंदा बचे लोगों की, जिन्होंने 72 दिनों तक मौत के खौफ में बर्फीली पहाड़ियों में फंसे रहकर अपनी जान बचाई। यह हादसा आज भी "मिरेकल ऑफ एंडीज" और "एंडीज फ्लाइट डिजास्टर" के नाम से जाना जाता है।
कैसे हुआ प्लेन क्रैश
13 अक्टूबर 1972 को उरुग्वे एयरफोर्स का एक प्लेन, जिसमें रग्बी टीम के खिलाड़ी, उनके अधिकारी और परिवार के लोग सवार थे, एंडीज पर्वत की ऊंचाई पर अचानक खराब मौसम का शिकार हो गया। प्लेन 14,000 फीट की ऊँचाई से सीधे पहाड़ों में क्रैश हो गया। जैसे ही हादसा हुआ, उरुग्वे सरकार ने तुरंत रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू किया, लेकिन बर्फ से ढके सफेद पहाड़ों पर प्लेन को ढूंढना बेहद मुश्किल था। 11 दिन बाद ऑपरेशन को बंद कर दिया गया और अब इन फंसे हुए लोगों को खुद ही अपनी जिंदगी बचानी थी।
72 दिनों की जंग
ऐंडीज पर्वत की ऊंचाइयों पर फंसे लोगों ने ठंड से बचने के लिए टूटे हुए प्लेन के टुकड़ों को इकट्ठा किया और उन्हें सील करने की कोशिश की। विमान में सवार दो मेडिकल छात्र भी थे, जिनके पास कुछ मेडिकल किट्स थीं। इनकी मदद से वे घायलों का इलाज करने में जुटे हुए थे, लेकिन 9वें दिन एक और व्यक्ति की जान चली गई। अब उनकी जिंदा रहने की जंग और भी विकट हो गई थी।
विमान में खाने-पीने का सामान बहुत सीमित था, क्योंकि इस यात्रा का उद्देश्य ज्यादा लंबा नहीं था। उनके पास आठ चॉकलेट के डिब्बे, तीन बोतल जैम, खजूर, ड्राई फ्रूट्स, कुछ कैंडीज़ और कुछ बोतलें वाइन थीं। पानी भी अब खत्म हो चुका था। अब विमान में सिर्फ 27 लोग जीवित थे, और उनके पास कोई स्पष्ट रास्ता नहीं था यह जानने का कि वे अगले कुछ दिनों तक कैसे जिंदा रहेंगे।
लेकिन जब खाना खत्म हो गया, तो उन्होंने अपने मृत साथियों के शवों के टुकड़े खाना शुरू कर दिया। लेकिन मौत का खौफ किसी का पीछा नहीं छोड़ रहा था। तभी दो नायक सामने आए—नंदो पैराडो और रॉबर्ट कैनेसा। इन दोनों ने असंभव को संभव कर दिखाया। बेहद कमजोर होने के बावजूद, इन दोनों ने 12 दिनों तक ट्रैकिंग की और चिली के आबादी वाले क्षेत्र तक पहुँचकर रेस्क्यू टीम को अपने साथियों का स्थान बताया। आखिरकार, 23 दिसंबर 1972 को 16 लोगों को बचाया जा सका। इस बेहद दिल दहला देने वाली घटना पर आधारित एक फिल्म, अलाइव, 1993 में रिलीज हुई थी, जो इस संकटमय और साहसिक कहानी को पर्दे पर जीवंत करती है।