दुनिया का सबसे बड़ा खलनायक बन गया है चीन

चीन का ये जो चेहरा है वह सोशल मीडिया पर ‘बायकाट चीन’ से ज्यादा खतरनाक और खराब है। क्योंकि चीन की जिन चीजों के बायकाट की बात दुनिया के पैमाने पर सोशल मीडिया पर की गयी हैं

Update: 2020-10-23 06:56 GMT
दुनिया का सबसे बड़ा खलनायक बन गया है चीन (Photo by social media)

नील मणि लाल

लखनऊ: कोरोना संक्रमण चाहे जितना भी घना हो, लेकिन संकट से उबरने के लिए चीन की मदद लेने से ब्राजील के राष्ट्रपति का इनकार पूरी दुनिया में चीन को एक नए ढंग से पेश कर रहा है। और चीन का ये जो चेहरा है वह सोशल मीडिया पर ‘बायकाट चीन’ से ज्यादा खतरनाक और खराब है।

क्योंकि चीन की जिन चीजों के बायकाट की बात दुनिया के पैमाने पर सोशल मीडिया पर की गयी हैं वो चीजें और उनके विकल्प सभी देशों में उपलब्ध थे लेकिन कोरोना की वैक्सीन, जिसका कोई विकल्प नहीं है उसे लेने से ब्राजील का मना करना ये बताता है कि पूरी दुनिया में चीन का चेहरा एक बड़े खलनायक की तरह हो गया है। ब्राजील ही नहीं, कनाडा ने भी चीन के साथ वैक्सीन के लिए किया गया करार तोड़ दिया है जबकि ताइवान पहले की कह चुका है कि वह चीन की वैक्सीन नहीं खरीदेगा।

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इससे संदेह पुख्ता होते हैं कि पूरी दुनिया और कम से कम तीसरी दुनिया के लोग इस बात से मुतमईन हैं कि कोरोना चीन की ही देन है। पहले आफत, और फिर दवाई, यह बात कम से कम तीसरी दुनिया के देशों को कतई पसंद नहीं आयी है।

हम लैब के जानवर नहीं हैं

ब्राजील के राष्ट्रपति जेर बोल्सोनारो ने चीन की वैक्सीन को ख़ारिज करते हुए कहा है कि ब्राजील के लोग किसी के ‘गिनी पिग’ नहीं हैं। गिनी पिग यानी प्रयोगशाला के जानवर। बोल्सोनारो ने कहा कि चीनी वैक्सीन का परीक्षण पूरा नहीं हुआ है और ‘मेरा फैसला है कि ऐसी वैक्सीन खरीदी नहीं जायेगी।‘ बोल्सोनारो ने कहा कि वे स्वास्थ्य मंत्री द्वारा घोषित डील को रद कर रहे हैं। बोल्सोनारो की सरकार के चीन के साथ सम्बन्ध अच्छे नहीं हैं। वे ऑक्सफ़ोर्ड की वैक्सीन लेना चाहते हैं।

इसके पहले ब्राज़ील के स्वास्थ्य मंत्री एदुअर्दो पज़ुएलो ने साउ पाउलो प्रान्त के गवर्नर जोओ डोरिया के साथ एक मीटिंग के बाद घोषणा की थी कि चीन से वैक्सीन ‘कोरोनावैक’ की साढ़े चार करोड़ खुराकें खरीदी जायेंगी। राष्ट्रपति बोल्सोनारो और गवर्नर डोरिया के बीच चीन की वैक्सीन को लेकर गहरे मतभेद हैं। बोल्सोनारो कह चुके हैं कि ब्राजील पर दबाव डाल कर कोई वैक्सीन नहीं बेच सकता है। फेसबुक पर एक पोस्ट में बोल्सोनारो ने कोरोनावैक को जोओ डोरिया की चीनी वैक्सीन कहा था।

इधर ब्राजील के मीडिया और सोशल मीडिया पर चीनी वैक्सीन की बहुत खिलाफत चल रही है। जनता को चीनी वैक्सीन पर संदेह है और लोग इसका विरोध कर रहे हैं।

चीन की वैक्सीन

चीन की कोरोना वैक्सीन ने अभी ट्रायल का तीसरा चरण पार नहीं किया है लेकिन परीक्षण और इमरजेंसी के नाम पर लाखों लोगों को वैक्सीन लगाई जा चुकी है। आलम ये है कि सीनोवैक कंपनी की कोरोनावैक वैक्सीन बीजिंग के अस्पतालों में 300 डालर यानी 22 हजार रुपये में बेची जाने लगी है। चीन में कीमत चुका कर कोई भी वैक्सीन लगवा सकता है। बताया जाता है कि पैसेवाले लोग वैक्सीन के लिए लाइन लगा रहे हैं।

इसके पहले सितम्बर में सीनोफार्म कंपनी ने घोषणा की थी कि उसकी प्रायोगिक वैक्सीन लाखों स्वास्थ्य कर्मियों और विदेश यात्रा करने वाली सरकारी अधिकारियों को लगाई जा चुकी है। इसकी वैक्सीन की एक खुराक 60 डालर में बेची जा रही है। सीनोफार्म वुहान इंस्टिट्यूट ऑफ़ बायोलॉजिकल प्रोडक्ट्स के साथ मिल कर वैक्सीन बना रहा है।

china (Photo by social media)

बिना अप्रूवल के इस तरह वैक्सीन बेचे जाने पर विश्व स्वास्थ्य संगठन चुप्पी साधे हुए है

बिना अप्रूवल के इस तरह वैक्सीन बेचे जाने पर विश्व स्वास्थ्य संगठन चुप्पी साधे हुए है। लेकिन चीन के मामले में डब्लूएचओ के रिकार्ड को देखते हुए इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है।

चीन के लिए कोरोना की वैक्सीन लोगों की जान बचाने से ज्यादा अपने को शक्तिशाली देश जताने का जरिया है। इसीलिए कोरोना वैक्सीन की जम कर पब्लिसिटी की जाती है। चीन बताना चाहता है कि कोरोना संकट से वही दुनिया को उबारेगा। सीनोवैक ने इंडोनेशिया को मार्च 2021 तक कोरोनावैक की 4 करोड़ डोज़ देने का वादा किया है। थाईलैंड, पाकिस्तान, और खाड़ी के कुछ देशों से भी चीन ने ऐसा वादा कर रखा है। चीन का कहना है वह साल भर में वैक्सीन की एक अरब खुराकें बनायेगा और इसके लिए क्षमता का निर्माण कर लिया गया है।

सवालों में आर्थिक मजबूती

चीन भले ही अपनी अर्थव्यवस्था के उड़ान भरने का ढिंढोरा पीट रहा है लेकिन असलियत ये हो ही नहीं सकती क्योंकि अर्थशास्त्र के सिद्धान्तों के अनुसार किसी भी देश के लोगों के हाथों में जब खरीदने की ताकत होगी तभी उस देश की अर्थव्यवस्था टेक ऑफ़ करेगी। या फिर सरकार उस देश के लोगों तक इतना पैसा पहुंचा दे कि लोगों में खरीदने की शक्ति यानी परचेजिंग पावर आ जाए। लोगों में खरीदने की शक्ति हो इसके दो ही तरीके हैं – या तो भरपूर रोजगार हो या सरकार लोगों की जेबों में पैसा डाल दे। चीन में कोई ऐसा पेकेज दिया गया है इस बात कोई ऐलान चीन की किसी मीडिया पर नहीं दिखाई दिया है। रही बात हर हाथ को काम की तो चीन में तमाम इंडस्ट्री बंद हो गयीं हैं।

चीन की अर्थव्यवस्था में घरेलू उपभोग बहुत पुरानी कमजोरी रही है क्योंकि लोगों पास पैसा ही नहीं रहता है। अब तो घरेलू उपभोग सामान्य स्तर का भी आधा रह गया है। चीन की अर्थव्यवस्था एक्सपोर्ट और औद्योगिक गतिविधियों पर ही टिकी हुई है लेकिन जिस तरह देश चीन से विमुख हो रहे हैं उससे चीन को तगड़ा झटका लग रहा है।

चीन की अर्थव्यवस्था की विकास दर ढलान पर थी

इस साल की शुरुआत से ही चीन की अर्थव्यवस्था की विकास दर ढलान पर थी और 27 साल के सबसे निचले स्तर पर आ गयी थी। 2019 के तीसरी तिमाही में ये ग्रोथ मात्र 6 फीसदी रह गयी थी। उसी समय ये अनुमान लगाया जा रहा था कि 2020 में चीन की आर्थिक विकास दर और भी नीचे जायेगी। दरअसल, चीन अपने बारे में आंकड़े कभी सही नहीं बताता और इसमें खूब हेर फेर किया जाता है। चीन की आर्थिक गितिविधियों और जीडीपी के आंकड़ों में हमेशा से अंतर देखा गया है।

चीन के नेशनल ब्यूरो ऑफ़ स्टेटिस्टिक्स द्वारा अप्रैल में जारी किये आंकड़े ही बताते थे कि चीन की जीडीपी 6.8 फीसदी गिर चुकी है। ऐसी स्थिति 1992 के बाद से पहली बार बनी थी। भारत के सख्त रुख के चलते चीन से आयात इस साल 20 फीसदी घट गया है। इस दिवाली में चीन को 40 हजार करोड़ रुपये का घाटा होने वाला है।

चालाकी और ढिलाई

प्रख्यात ब्रिटिश लेखक और सिक्यूरिटी स्पेशलिस्ट एडवर्ड लुकास ने एक लेख में चीन की जमकर धज्जियाँ उड़ाईं हैं। लुकास ने लिखा है –

एक ओर जहाँ बाकी दुनिया भय, अविश्वास, बेरोजगारी, मंदी, ठहराव, बीमारी और कोरोना वायरस की दूसरी लहर से जूझ रही है वहीं चीन जनवरी 2020 की अपेक्षा 2021 में ज्यादा मजबूती से प्रवेश करने वाला है। इस साल जनवरी में ही चीन की ढिलाई, चालाकी और कम्यूनिस्ट पार्टी की निर्दयी व्यवस्था ने कोरोना वायरस को मानवजाति में पैर जमाने दिया था।

करीब डेढ़ अरब की आबादी वाले चीन में अब रोजाना कोरोना के मात्र दर्जन भर केस आ रहे हैं। जबकि यूनाइटेड किंगडम में 21 हजार नए केस चार दिन पहले रिपोर्ट किये गए थे। चीन में जीवन नार्मल हो गया है जबकि यूरोप और दुनिया के अन्य हिस्सों में नए प्रतिबंधों का लगना आम बात हो चली है।

चीन के बारे में आईएमएफ ने कहा है

चीन के बारे में आईएमएफ ने कहा है कि इस साल के अंत तक चीन की अर्थव्यवस्था 2 फीसदी बढ़ जायेगी जबकि ब्रिटेन में राष्ट्रीय आय दस फीसदी घटने की आशंका है और ऐसे ही हाल अमेरिका और यूरोप के देशों के हैं। चीन की आर्थिक रिकवरी के अनुमान और घोषणाएं हैरत में डालने वाली हैं। चीन पिछले करीब 12 साल से अपनी जीडीपी ग्रोथ के बारे में बढ़ा चढ़ा कर आंकड़े देता रहा है और हर साल वह अपनी ग्रोथ दर को औसतन 1.7 फीसदी पॉइंट ज्यादा बताता रहा है। 2019 की एक स्टडी में पाया गया था कि चीन की अर्थव्यवस्था आधिकारिक आंकड़ों से 12 फीसदी कम है। कोरोना काल में ये फर्क तो और भी बढ़ गया होगा सो चीन का ये कहना कि उसने आर्थिक रिकवरी कर ली है, सच्चाई से परे है।

बदलना होगा चीन को

चीन को अपना राजनीतिक स्वरूप बदलना ही होगा क्योंकि विश्व समुदाय ने कोरोना वायरस के चलते चीन को अलग थलग कर दिया है। चीन में वैसे भी कम्यूनिस्ट पार्टी में शक्ति संघर्ष चल रहा है और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की स्थिति उतनी मजबूत नहीं रही है और अब उनको आन्तरिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

राष्ट्रपति जिनपिंग ने हाल में शेनजेन स्पेशल इकनोमिक जोन की 40वीं वर्षगाँठ के मौके पर दक्षिण चीन का दौरा किया। जिनपिंग का मकसद ऊपरी तौर पर दुनिया को चीन की मजबूती दिखाना था लेकिन जानकारों का कहना है कि असली इरादा तो जिनपिंग को अपनी खुद की स्थिति को मजबूत करना था। अपनी स्थति को मजबूत करने के लिए जिनपिंग युद्ध की बात करने लगे हैं। इसकी तैयारी भी देखी जा रही है। चीनी सैन्य विमान ताइवान की वायु सीमा के पास उड़ान भर रहे हैं। चीनी तट रक्षक फ़ोर्स के जहाज ताइवान के पास समुद्र में गश्त करने लगे हैं। भारत की सीमा के साथ चीन छेड़छाड़ कर ही रहा है जबकि साउथ चाइना सी में सैन्यीकरण से युद्ध के बादल गहराते जा रहे हैं।

भीतर से कमजोर

शी जिनपिंग को मिल रही आन्तरिक चुनौतियों की बात करें तो चीनी कम्यूनिस्ट पार्टी की शेनजेन कमेटी के सचिव वांग वेई झोन ने कहा है कि बेसिक रिसर्च के मामले में चीन कमजोर है। इस साल मई में चीन के प्रधानमंत्री ली केकिंग ने कहा था कि 60 करोड़ चीनी महीने में मात्र 150 डालर ही कमा पाते हैं।

देश की आर्थिक स्थिति को सुधरने के लिए पटरी दुकानदारों से मदद माँगी थी

उन्होंने देश की आर्थिक स्थिति को सुधरने के लिए पटरी दुकानदारों से मदद माँगी थी। ली केकिंग ये भी कह चुके हैं कि सरकार रोजगार की गारंटी देने में असफल रही है। चीनी कम्यूनिस्ट पार्टी के पूर्व डेलिगेट वांग रुइक़िन ने कहा है कि सुधार और मुक्त बाजार के लिए शी जिनपिंग की मनमानी नहीं चल सकती। वांग का कहना है कि पार्टी के ज्यादातर लोग लोकतंत्र के समर्थक हैं लेकिन खुल कर बोलने की हिम्मत किसी में नहीं है।

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बहरहाल, इसी महीने चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी की सेन्ट्रल कमेटी के पांचवें पूर्ण अधिवेशन में कुछ गुल खिलने की संभावना है और संभव है कि जिनपिंग को शक्ति संघर्ष का सामना करना पड़े। इन्हीं हालातों से 1992 में चीनी नेता देंग शियाओपिंग भी गुजरे थे जिनको चीनी कम्यूनिस्ट पार्टी के गहरे विरोध का सामना करना पड़ा था। उसी संघर्ष की देन शी जिनपिंग हैं और अब इतिहास अपने को दोहरा रहा है।

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