दिवाली में कुत्ते को पूजा! अजीब है ये देश जहां ऐसे धूमधाम से मनाते हैं त्योहार
आज 27 अक्टूबर को हर जगह धूमधाम से दिवाली मनाई जा रही है। लोग हर तरफ खुशियां बांट रहें हैं।;
लखनऊ: आज 27 अक्टूबर को हर जगह धूमधाम से दिवाली मनाई जा रही है। लोग हर तरफ खुशियां बांट रहें हैं। सभी लोग तो अच्छे से दिवाली मना रहें हैं, लेकिन क्या आपको पता है एक ऐसा देश भी है जहां कुत्तों के साथ दिवाली मनाई जाती है। अगर आपको नहीं पता तो हम बतातें हैं यहां के अलग तरीके की दिवाली। हम बात कर रहें हैं नेपाल की जहां पर कुत्तों की पूजा की जाती है।
नेपाल में दिवाली को तिहार कहा जाता है। यह बिल्कुल वैसे ही मनाई जाती है, जैसे भारत में दिवाली मनाई जाती है। लेकिन इसके अगले ही दिन एक और दिवाली मनाई जाती है। इस दिवाली को कुकुर तिहार कहा जाता है। कुकुर तिहार पर कुत्तों की पूजा की जाती है। उनके लिए खास खाना भी बनाया जाता हैं। साथ ही उन्हें दही का सेवन कराया जाता है।
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यह दिवाली यहीं खत्म नहीं होती बल्कि पांच दिन चलती है। इस दौरान लोग अलग-अलग जानवर जैसे गाय, कुत्ते, कौआ, बैल आदि की पूजा करते हैं। लोग ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि उनकी कामना होती है ताकि कुत्ते हमेशा उनके साथ बने रहें। कुकुर तिहार में विश्वास करने वाले लोग कुत्ते को यम देवता का संदेशवाहक मानते हैं।
छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले में होती है बुजुर्गों की पूजा
दिवाली, भारत का सबसे बड़ा त्योहार में से एक है, लेकिन यहां कई तरीके हैं इसे मनाने के। भारत के राज्य छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले में असुर जनजाति के कुछ गांव हैं। वे खुद को असुरराज महिषासुर का वंशज बताते हैं और ये आदिवासी दिवाली भी मनाते हैं। लेकिन यहां के लोग देवी-देवताओं से पहले घर के बुजुर्गों की पूजा करते हैं।
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किसी भी त्योहार में भगवन से पहले ये लोग अपने घर में बुजुर्गों की पूजा कर उनका आशीर्वाद लेते हैं। दिवाली पर भी पारंपरिक पूजा से पहले बड़े-बूढ़ों की पूजा कर उनका आशीर्वाद लेते हैं। इसके पीछे समाज की मान्यता है कि घने जंगल में कहीं खो जाने पर बुजुर्गों का आशीर्वाद ही उनके जीवन की रक्षा कर उन्हें घर तक सुरक्षित वापस पहुंचने का रास्ता दिखाता है। धन-दौलत के पीछे न भागने वाले इन वनवासियों के लिए वन्यजीवन ही अमूल्य निधि है।