अब तो गए इमरान: पाक में बुलंद होने लगी विरोधियों की आवाज, क्या बचेगी कुर्सी
चुनाव से पहले पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने पाकिस्तान की जनता से जो भी वादे किये थे अब वे उन वादों पर खरे नहीं उतर पा रहे हैं। वो चाहे आर्थिक मुद्दे हों चाहे कश्मीर का मुद्दा हर जगह उनको हार का सामना ही करना पड़ रहा है। मुश्किलें दिनोंदिन बढ़ती जा रही हैं।
नई दिल्ली: हमारा पड़ोसी देश पाकिस्तान अपने शीर्ष राजनितिक नुमायिन्दों और सेना से ही परेशान रहता है। वहां के अवाम के लिए यह बड़ा ही दुर्भाग्यपूर्ण है। चुनाव से पहले पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने पाकिस्तान की जनता से जो भी वादे किये थे अब वे उन वादों पर खरे नहीं उतर पा रहे हैं। वो चाहे आर्थिक मुद्दे हों चाहे कश्मीर का मुद्दा हर जगह उनको हार का सामना ही करना पड़ रहा है। मुश्किलें दिनोंदिन बढ़ती जा रही हैं। यही वजह है कि लोग अब उनसे सवाल पूछ रहे हैं कि वह 'नया पाकिस्तान' आखिर कहां है जिसका वादा करके वह सत्ता में आए थे।
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वहीं इमरान लोगों को सब्र करने की नसीहतें दे रहे हैं। उनका कहना है कि लोगों में सब्र नहीं है, सरकार को बने अभी तेरह महीने ही हुए हैं, तब्दीली तो रफ्ता-रफ्ता ही आएगी। हालांकि, पाकिस्तान की तस्वीर कुछ अलग ही असलियत बयां करती है। आइये जानते हैं कि बीते 13 महीनों में कैसे इमरान खान सरकार हर मोर्चे पर असफल साबित हुई है और भविष्य में उन्हें किन चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है...
13 महीनों में देश के कुल कर्ज में 7509 अरब रुपये
रिपोर्टों के मुताबिक, कंगाली की कगार पर खड़े इमरान सरकार ने अपने 13 महीने के कार्यकाल में काफी कर्जा लिया है। इन्हीं 13 महीनों में देश के कुल कर्ज में 7509 अरब रुपये की बढ़ोत्तरी हुई है। आंकड़े बताते हैं कि अगस्त 2018 से अगस्त 2019 के बीच इमरान खान की सरकार ने विदेश से 2804 अरब रुपये जबकि घरेलू स्रोतों से 4705 अरब रुपये का कर्ज लिया है। कुल कर्जों की बात करें तो पाकिस्तान 32,240 अरब रुपये के कर्ज में डूबा हुआ है। यही नहीं इमरान खान की सरकार के आने के बाद तो इसमें 7508 अरब रुपये का इजाफा तक हो चुका है।
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वो दिन दूर नहीं कि कटोरा लेने की आ सकती है नौबत
सरकारें अपना खजाना और कर्जों की भरपाई कर संग्रह की रकम से करती हैं। लेकिन पाकिस्तान में मौजूदा वित्तीय वर्ष के पहले तीन महीने में सरकार का कर संग्रह 960 अरब रुपये रहा जो एक ट्रिलियन रुपये के लक्ष्य से कम है। पाकिस्तान में कारोबारियों की हालत बेहद खराब होने लगी है। कारोबारियों का कहना है कि सरकार ने जुबानी भरोसा दिलाने के अलावा कोई कदम नहीं उठाया है। यही आलम रहा तो उन्हें कटोरा लेने की नौबत आ जाएगी।
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सेना मालामाल, जनता कंगाल क्योंकि अपना सारा बजट रक्षा मामले में ही खर्च करता है
पाकिस्तानी सेना 50 कंपनियां चलाती है और इसके अधिकारी अनाज, कपड़े, सीमेंट, शुगर मिल, जूता निर्माण कार्य से लेकर एविएशन सर्विसेज, इंश्योरेंस और यहां तक की रिजॉर्ट चलाने और रियल एस्टेट का कारोबार कर रहे हैं। सेना के कारोबार की मार्केट वैल्यू 2016 में करीब 20 अरब डॉलर थी जो अब कई गुना ज्यादा बढ़ चुकी है। बीते पांच वर्षों में अकेले फौजी फाउंडेशन की परिसंपत्तियों और टर्नओवर में करीब 62 फीसद की बढ़ोत्तरी हुई है।
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कैसे चुकाएंगे अरबों डॉलर का कर्ज
प्रधानमंत्री इमरान खान कर्ज लेकर कर्ज पाटने और सरकार चलाने की नीति पर काम कर रहे हैं। नतीजा यह हो रहा है कि पाकिस्तान और कर्ज के दलदल में धंसता जा रहा है। आलम यह है कि बाहरी मुल्क भी अब पाकिस्तान को कर्ज देने से कतराने लगे हैं और इमरान खान आर्थिक मदद के लिए एकबार फिर चीन की शरण में हैं। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट कहती है कि पाकिस्तान को जून 2022 तक चीन को 6.7 अरब डॉलर का कर्ज चुकाना है। वहीं अगले तीन साल में आईएमएफ को 2.8 अरब डॉलर के लोन की भरपाई भी करनी है। जबकि वास्तविक यह है कि इमरान के पास इसके लिए कोई फुलप्रुफ प्लान नहीं है।
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आतंकी संगठनों की फंडिंग के कारण अगर ब्लैक लिस्ट हुए तो कुर्सी पर संकट
इस महीने की 13 से 18 तारीख के बीच एफएटीएफ की बैठक होनी है, जिसमें आतंकी संगठनों की फंडिंग के मसले पर पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई का निर्णय लिया जाएगा। FATF के एशिया प्रशांत समूह (Asia Pacific Group, APG) ने म्युचुअल इवैल्यूएशन रिपोर्ट ऑफ पाकिस्तान (Mutual Evaluation Report of Pakistan) शीर्षक वाली अपनी 228 पन्नों की रिपोर्ट में कहा है कि पाकिस्तान ने आतंकी संगठनों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई नहीं की है। यही नहीं एफएटीएफ की 40 अनुशंसाओं में से कुछ ही का मुकम्मल तौर पर पालन किया है। ऐसे में यदि एफएटीएफ पाकिस्तान को ब्लैक लिस्ट करता है तो जनता का पारा सातवें आसमान पर होगा और इमरान को कुर्सी बचाने के लिए जद्दोजहद करनी होगी।
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आवाम तो नाराज है ही सेना, विपक्ष और कारोबारियों ने भी खोला है मोर्चा
कश्मीर के मुद्दे पर दुनिया को साथ लाने में नाकाम रहे इमरान खान की कुर्सी अभी से हिलती नजर आ रही है। समाचार एजेंसियों की रिपोर्ट में कहा गया है कि सेना और चरमपंथी जो पहले इमरान के समर्थन में खड़े नजर आते थे अब उनको किनारे लगाने की जुगत में हैं। यही नहीं पाकिस्तान (Pakistan) की प्रमुख दक्षिणपंथी पार्टी के जमियत अलेमा-ए-इस्लाम-फज्ल (जेयूआई-एफ) के प्रमुख मौलाना फज्लुर रहमान ने विपक्ष के साथ प्रधानमंत्री इमरान खान की सरकार को अपदस्थ करने के लिए मोर्चा खोल दिया है।
खुद को बचाने में लगे हुए हैं इमरान
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान अब चारों तरफ से घिरते नजर आ रहे हैं। लोगों के सवालों से परेशान हो गए हैं। इमरान खुद को बचाने में लग गए हैं। पूरा जोर मीडिया को मैनेज करने में लगा रहे हैं। उन्होंने अपनी आर्थिक मामलों की टीम से कहा है कि वह मीडिया से अधिक से अधिक संपर्क करे और आर्थिक मोर्चे पर सरकार के पक्ष में माहौल बनाने के लिए काम करे।
अब देखना ये है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान अपने किये हुए वादों पर पाकिस्तान की जनता केउम्मीदों पर खरे उतरने और अपनी कुर्सी बचा पाने में कामयाब हो पाते हैं या नहीं ।