संकट में जिनपिंगः अब घर में दबेगी पूंछ, कैसे बचाएंगे अपना साम्राज्य
चीन के लोगों की क्रय शक्ति में काफ़ी गिरावट आई है। चीन के मामलों के एक जानकार का मानना है कि चीन की वाम सरकार युद्ध का माहौल बनाकर घरेलू फ़्रंट पर लोगों का ध्यान भटकाने में लगी। लेकिन पहले चीन को घरेलू फ़्रंट पर लड़ना होगा।
योगेश मिश्र
लखनऊ। कोविड-१९ मानव निर्मित है। यह चीन के वुहान लैब से निकला है। यह तक़रीबन दुनिया के सभी महत्वपूर्ण देश स्वीकार करने लगे हैं। कोविड को लेकर चीन में ही ख़ासा विरोध कम्युनिस्ट पार्टी व शी जिनपिंग को झेलना पड़ रहा है। एलएसी पर घुसपैठ में मिली मात से चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग का भविष्य खतरे में आ गया है। वह राष्ट्रवाद यानी युद्ध की आहट दिखा कर जनता को शांत करने की कोशिश में लगे हैं। लेकिन इस बार के हालात घरेलू फ्रंट पर बेहतर नहीं है।
जिनपिंग को मिल रही चुनौतियां
चीनी महिला वैज्ञानिक ने अमेरिका से कोविड के चीन निर्मित होने का दावा करते हुए इसके प्रमाण देने का दावा करके चीन को परेशानी में डाल दिया है।
उधर चीन में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की माँग ज़ोर पकड़ने लगी है। यह बात दीगर है कि इस दिशा में उठने वाली आवाज़ को बहुत तेज़ी से दबाया भी जा रहा है। इसने उस सामाजिक स्थिरता को बाधित किया है जिस पर कम्युनिस्ट पार्टी निर्भर रही है।
चीन में युवा सिटीज़न जर्नलिस्ट यूट्यूब के ज़रिए बोलने की आज़ादी की वकालत कर रहे हैं। कोरोना वायरस के प्रकोप ने चीन में युवा लोगों को लामबंद कर दिया है।
अपनी गलतियों को छिपाने और सिविल सोसाइटी को मदद के लिए आगे आने से रोकने के लिए सरकार की कोशिशों का अनेक चीनी युवा विरोध कर रहे हैं।
इस महामारी ने ऐसे पीढ़ीगत जनजागरण को प्रेरित किया है, जिसकी तुलना दूसरे विश्वयुद्ध और वर्ष 2008 के वित्तीय संकट के समय के निर्णायक प्रभावों से ही की जा सकती है।
आलोचना का मतलब ये नहीं
इनक्रिप्टेड मैसेजिंग एप्प टेलीग्राम में अपना चैनल बनाकर सेंसर्ड आलेख और सोशल मीडिया पोस्ट का स्क्रीनशॉट शेयर करने वाली 34 वर्षीय हांग यंग कहती हैं हाल की इन घटनाओं ने कुछ लोगों को साफ़ तौर पर दिखा दिया कि अपने देश की आलोचना करने का मतलब यह नहीं होता है कि वे अपने देश से प्रेम नहीं करते हैं।
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कोरोना वायरस संक्रमण को कम करने में मिली हाल की चीन की सफलता ने सरकार के लाख दावों और यात्रा संबंधी पाबंदियों के बावजूद नए सिरे से राष्ट्रवादी उभार में मदद की है।
लेकिन यदि महामारी के कारण वैश्विक मंदी आती है तब चीनी सामानों की माँग ख़त्म हो जाएगी। देश का दशकों का आर्थिक विकास थम गया है। पार्टी को लेकर विरोध बढ़ रहा है।
युवाओं के लिए सदमा
चीनी सरकार के बारे में लिखने वाले स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के समाजशास्त्री जिगु आंग जाऊँ कहते हैं यह घटनाक्रम अनेक युवाओं के लिए सदमा है। जिसने उन्हें अपने भविष्य के बारे में सोचने को मजबूर किया है।
चीन भले ही अपनी बेहतर अर्थव्यवस्था का दावा करता हो पर हक़ीक़त इसके उलट है। सभी विदेशी कंपनियों ने चीन में अपने उत्पादन ठप कर दिये हैं। उत्पादन यूनिट्स कहीं और ले जाने की तैयारी दिख रही है।
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कई देशों ने अपनी यूनिटें शिफ़्ट भी कर ली हैं। चीन में मंदी की वजह से जो उनके अपने उत्पादन हो भी रहे हैं, उनके लिए बाज़ार और उपभोक्ता नज़र नहीं आ रहे हैं। पहले वहाँ हर हाथ के पास इफ़रात काम होता था।
नतीजतन लोगों का जीवन स्तर बेहतर था। अब लोगों की क्रय शक्ति में काफ़ी गिरावट आई है। चीन के मामलों के एक जानकार का मानना है कि चीन की वाम सरकार युद्ध का माहौल बनाकर घरेलू फ़्रंट पर लोगों का ध्यान भटकाने में लगी। लेकिन पहले चीन को घरेलू फ़्रंट पर लड़ना होगा।