ईशनिंदा कानून क्या है, जिसमें 8 साल के हिंदू बच्चे की हुई गिरफ्तारी, पहली बार किसी बच्चे पर आरोप

Ish Ninda Kanoon: पाकिस्तान में ईशनिंदा के लिए किसी को मौत की सजा नहीं सुनाई गई, लेकिन फांसी पर चढ़ाने से पहले या तो सजा बदल दी गई या फिर दोबारा सुनवाई की याचिका दायर होने के बाद उस पर कार्रवाई हो रही है।

Written By :  Neel Mani Lal
Published By :  Shivani
Update: 2021-08-09 06:33 GMT

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Ish Ninda Kanoon: पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून के नाम पर ज्यादतियों की इंतहा हो चली है। अब 8 साल के एक हिंदू बच्चे (Pakistan Hindi Child) को ईशनिंदा कानून (Blasphemy Law) के तहत पुलिस ने हिरासत में लिया है। ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी छोटे बच्चे पर इस कानून को लगाया गया है। पाकिस्तान के माहौल और कट्टरपंथियों के डर से इस बच्चे के परिवारवाले कहीं छिप गए हैं। पूरे परिवार को अब अपनी जान का खतरा हो गया है।

Pakistan Hindu Mandir Mob Attack 

इस बच्चे पर पंजाब प्रांत के रहीम यार खान जिले में एक मदरसे की लाइब्रेरी में जानबूझ (Urinates on Library Floor) कर किताबों पर पेशाब करने का आरोप लगाया गया है। लोगों के उन्माद को देखते हुए पुलिस ने बच्चे को पकड़ लिया था लेकिन हफ्ते भर बाद बाद उसे जमानत दे दी थी। बच्चे के रिहा होते ही भीड़ ने एक हिन्दू मंदिर में जम कर तोड़फोड़ की थी।

इस घटना से इतनी दहशत फैल गई है कि इलाके के अधिकांश हिन्दू परिवार पलायन कर गए हैं। इलाके में व्याप्त भारी तनाव के चलते यहां सेना तैनात की गई है। आरोपित बच्चे के परिवार के एक सदस्य ने द गार्डियन को बताया कि उस बच्चे को ये तक नहीं पता है कि ईशनिंदा का मसला क्या होता है। उसे पता नहीं है कि उसने क्या अपराध किया है और उसे जेल में क्यों रखा गया।


परिवार के इस सदस्य ने कहा कि उस बच्चे को इस मामले में झूठा फंसाया गया है। परिवार के लोग अपनी दुकान अपना काम छोड़ कर छिपे हुए हैं। पूरा समुदाय दहशत में है, हमें हमलों की आशंका है। हम वापस नहीं लौटना चाहते हैं। हमें पता है कि अल्पसंख्यक समुदाय की सुरक्षा के लिए कुछ नहीं होने वाला है।

एक बच्चे पर ईशनिंदा के आरोप लगाए जाने से कानून के एक्सपर्ट भी हैरान हैं। उनका कहना है कि ये एक अभूतपूर्व स्थिति है क्योंकि इतनी कम उम्र वाले पर पहले कभी आरोप नहीं लगे हैं।

क्या है ईशनिंदा कानून

पाकिस्तान का ईशनिंदा कानून ब्रिटिश शासन के 1860 में बनाए गए ईशनिंदा कानून से निकला है। पाकिस्तान के सैन्य शासक जनरल जिया-उल-हक ने इसमें कुछ संसोधन किए और इसमें कुछ नई धाराएं जोड़कर कुरान और पैगंबर मोहम्मद के अपमान को अपराध की श्रेणी में रखा गया। कानून के मुताबिक दोषी पाए जाने पर आजीवन कारावास की सजा या मौत की सजा हो सकती है।


1986 में ईश निंदा कानून में नई धारा 295-सी जोड़ी गई और पैगंबर मोहम्मद के अपमान को अपराध की श्रेणी में रखा गया जिसके लिए आजीवन कारावास या सजा ए मौत का प्रावधान था। 1991 में एक मामले की सुनवाई करते हुए पाकिस्तान की एक शरिया अदालत ने ईशनिंदा की लिए आजीवन कारावास की सजा को निरस्त कर दिया। कोर्ट ने फैसला दिया कि पाकिस्तान पीनल कोड के सेक्शन 295-सी के तहत आजीवन कारावास की सजा का विकल्प इस्लाम की शिक्षाओं के खिलाफ है। कोर्ट ने निर्देश दिया कि पैगंबर मोहम्मद के अपमान के अपराध के लिए केवल मौत की सजा का प्रावधान हो।

पाकिस्तान में ईशनिंदा के लिए किसी को मौत की सजा नहीं सुनाई गई, लेकिन फांसी पर चढ़ाने से पहले या तो सजा बदल दी गई या फिर दोबारा सुनवाई की याचिका दायर होने के बाद उस पर कार्रवाई हो रही है।

2015 की इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस की स्टडी में पाया गया कि पाकिस्तान में जिन लोगों को ट्रायल कोर्ट ने ईशनिंदा के आरोप में सजा सुनाई थी, उनमें से करीब 80 फीसदी मामलों में याचिका दायर कर के सजा को पलट दिया गया। अधिकतर मामलों में सबूत की कमी के साथ-साथ ये पाया गया कि शिकायतें निजी और राजनीतिक वजहों से की गई थीं।

ईशनिंदा कानून में भले ही किसी को फांसी नहीं हुई है लेकिन आरोपियों को भीड़ के हमलों का सामना करना पड़ा है और तमाम लोगों की हत्या हो चुकी है।

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