अमेरिका से बड़ी खबर: जाने चुनाव के साइड इफ़ेक्ट, कुछ ऐसा हो रहा है असर
अमेरिका में कोरोना वायरस महामारी का प्रकोप पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा रहा है। यही वजह है कि इस बार के चुनाव में एक बहुत बड़ा मुद्दा कोरोना वायरस का रहा।
नई दिल्ली:अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में इस बार के वोटिंग पैटर्न में कई नई चीजें निकल कर आईं हैं। इस बार के चुनाव पर कई फैक्टरों ने प्रभाव भी डाला है। चुनाव के परिणामों ने ये भी साफ़ कर दिया है कि तमाम भविष्यवाणियाँ और अनुमान गलत साबित हुए हैं। जानते हैं चुनाव के वोटिंग पैटर्न के बारे में।
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कोरोना वायरस
अमेरिका में कोरोना वायरस महामारी का प्रकोप पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा रहा है। यही वजह है कि इस बार के चुनाव में एक बहुत बड़ा मुद्दा कोरोना वायरस का रहा। कोरोना वायरस के प्रति प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रम्प और जो बिडेन के विचार शुरू से ही एक दम अलग अलग रहे और इसी वजह से अमेरिकी नागरिक भी इस मसले पर दो भागों में बंट गए। बहुत से लोगों का मानना है कि कोरोना वायरस के प्रति डोनाल्ड ट्रम्प का रुख बहुत निराशाजनक रहा और वे संक्रमण रोकने में असफल रहे। वहीँ दूसरी ओर बहुत लोग ऐसे भी हैं जिनका मानना है कि ट्रम्प ने जनता के दिल की बात ही बोली है। वो यह कि लोग मास्क नहीं पहनना चाहते और लॉकडाउन से जीवन यापन प्रभावित होता है।
एक्सपर्ट्स का मानना है कि कोरोना वायरस बीमारी, लॉकडाउन और आर्थिक संकट ये ऐसे मुद्दे रहे जिसने ‘बैटल ग्राउंड’ राज्यों में लोगों के वोटिंग पैटर्न पर प्रभाव डाला।
पूर्व रिपब्लिकन सलाहकार लान्ही शेन का कहना है कि कुछ डेमोक्रेटिक शासन वाले राज्यों में लॉकडाउन और सख्त बंदिशें लगाई गयीं। खासतौर पर उत्तर के औद्योगिक राज्यों में लॉक डाउन का बहुत असर रहा। बहुत मुमकिन है कि लॉकडाउन और बंदिशों से परेशान नागरिकों ने डोनाल्ड ट्रम्प को वोट दिया हो क्योंकि लोगों को उनका रुख पसंद आया। मिशिगन राज्य में ट्रम्प ने ये मुद्दा बहुत अच्छी तरह भुनाया और उनको इसका फायदा भी मिला।
राजनीतिक विज्ञानी एश्ले कोएनिग का कहना है कि कोविड ने ध्रुवीकरण कर दिया। मामला इकॉनमी बनाम सेहत का हो गया। बहुत से लोगों के लिए सेहत सबसे प्रमुख मसला था लेकिन जिनकी आजीविका छीन गयी उनके लिए आर्थिक संकट सबसे बड़ी बात थी।
लैटिनो इफ़ेक्ट
अमेरिका में लातीनी लोग बड़ी संख्या में हैं और फ्लोरिडा जैसे राज्यों में इनके वोट निर्णायक साबित होते हैं। फ्लोरिडा में 48 फीसदी लातिनी लोगों ने ट्रम्प का समर्थन किया है जिसकी वजह से बिडेन यहाँ हार गए। डेमोक्रेट्स का कहना है कि फ्लोरिडा में डोनाल्ड ट्रम्प की जीत की वजह लातिनी वोट हैं। लातिनी वोट के पैटर्न की एक मिसाल फ्लोरिडा की मियामी डेड काउंटी है जहाँ डेमोक्रेट्स का गढ़ रहा है। इस काउंटी में हिस्पैनिक यानी लातिनी लोगों की बड़ी जनसँख्या है जिसमें मुख्यतः क्यूबा और वेनेज़ुएला मूल के लोग हैं। यहाँ लम्बे समय तक सोशलिस्ट शासन रहा है और लोग उससे ऊब चुके थे। इस बार जिस तरह से वोटिंग हुई है उससे जो बिडेन का हाल हिलरी क्लिंटन से भी बुरा हुआ है।
लातिनी आबादी एरिज़ोना में भी काफी है लेकिन यहाँ फ्लोरिडा का उलटा हुआ। इसके पीछे एक्सपर्ट्स अरिजोना में हाल के वर्षों में हुए जन भौगोलिक परिवर्तनों को मानते हैं। एरिज़ोना में लातिनी मतदाता हाल के बरसों में काफी बढ़ गए हैं और बहुत मुमकिन है कि इसका बिडेन ने फायदा उठाया है।
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उत्तर के औद्योगिक राज्य
अमेरिका के उत्तर में औद्योगिक राज्य हैं जहाँ बड़ी तादाद में कामगार वोटर हैं। ऐसे वोटर जिनकी शिक्षा कालेज लेवल से नीचे की है। यहाँ राजनीतिक स्थितियां बदलती रहती हैं। इन राज्यों के मन में क्या चल रहा है, पता कर पाना मुश्किल होता है। मिसाल के तौर पर ओहायो राज्य में 2016 में डोनाल्ड ट्रम्प जीते थे क्योंकि कामगार नागरिकों पर उनका खासा प्रभाव पड़ा था। ट्रम्प ने विनिर्माण क्षेत्र और आउटसोर्सिंग से पैदा हुई समस्याओं पर फोकस किया जिसकी वजह से पूर्वी ओहायो में डेमोक्रेट्स का किला ध्वस्त हो गया। पूर्वी ओहायो लम्बे समय से डेमोक्रेट्स को जिताता आया है लेकिन इस बार डोनाल्ड ट्रम्प २०१६ के मुकाबले कम से कम डेढ़ लाख ज्यादा वोट पाने में सफल रहे। एक्सपर्ट्स का कहना है कि ओहायो ने दिखा दिया है कि उसके जैसे राज्य दक्षिणपंथ की ओर जा रहे हैं और इसमें श्वेत लोगों का बहुत बड़ा रोल है।
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चुप्पा मतदाता
बहुत से एक्सपर्ट्स का कहना है कि ओपिनियन पोल और सर्वे इसलिए गलत साबित हुए क्योंकि ट्रम्प के समर्थकों ने कभी दिल की बात बताई ही नहीं कि वे ट्रम्प को वोट देने वाले हैं। ओपिनियन पोल अटकलों पर आधारित होते हैं कि किस प्रत्याशी का समर्थक वोट देने निकलेगा। ट्रम्प ने अपने समर्थन वाले मतदाताओं पर बखूबी फोकस किया और इसका उनको लाभ मिला।
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