कुवैत में बदतर हालत में रह रहे भारतीय कामगार, 10 लाख से ज्यादा है संख्या, ज्यादा कमाने की चाह में होते हैं शोषण के शिकार

Kuwait Fire: कुवैत की ओर से पिछले साल दिसंबर में जारी किए गए आंकड़े के मुताबिक जनसंख्या 48 लाख 59 हजार थी जिसमें से 15 लाख से ज्यादा यहां के नागरिक और 30 लाख से ज्यादा प्रवासी।

Written By :  Anshuman Tiwari
Update: 2024-06-13 09:22 GMT

Kuwait Indian workers  (photo: social media )

Kuwait Fire: कुवैत के दक्षिणी मंगाफ जिले में एक बिल्डिंग में आग लगने के कारण 49 श्रमिकों की मौत हो गई। मृतकों में 40 भारतीय शामिल हैं। इनके शव इतनी बुरी तरह जल गए हैं कि पहचान करना भी मुश्किल हो गया है। कुवैत में भारतीय कामगारों की काफी डिमांड है और पैसे के आकर्षण में काफी संख्या में कामगार हर साल कुवैत जाते हैं। कुवैत में भारतीयों की आबादी 10 लाख से ज्यादा है जो कि देश की जनसंख्या का करीब 21 फ़ीसदी है। बहुमंजिला इमारत में लगी भीषण आग में मृत 40 भारतीयों में से तीन यूपी के निवासी बताए गए हैं। इस जानकारी के सामने आने के बाद योगी सरकार हरकत में आ गई है। मुख्यमंत्री के निर्देश पर प्रदेश के आलाधिकारी विदेश मंत्रालय और कुवैत स्थित भारतीय दूतावास के अधिकारियों से लगातार संपर्क में हैं। अब तक मिली जानकारी के अनुसार मृतकों में यूपी के प्रवीण माधव सिंह (वाराणसी), जयराम गुप्ता (गोरखपुर) और अंगद गुप्ता (गोरखपुर) शामिल हैं।

कुवैत की ओर से पिछले साल दिसंबर में जारी किए गए आंकड़े के मुताबिक कुवैत की जनसंख्या 48 लाख 59 हजार थी जिसमें से 15 लाख से ज्यादा यहां के नागरिक और 30 लाख से ज्यादा प्रवासी हैं। यहां रहने वाले अधिकांश भारतीय कारपेंटर, राजमिस्त्री, घरेलू कामगार, ड्राइवर और डिलीवरी बॉय के रूप में काम कर रहे हैं। भारत से ज्यादा पैसा कमाने की चाह में अधिकांश भारतीय कामगार कुवैत पहुंचते हैं मगर उन्हें काफी बदतर हालत में यहां जिंदगी बितानी पड़ती है।

बदतर हालत में रहने की मजबूरी

कुवैत सरकार और वहां के संपन्न लोगों पर हमेशा यह आरोप लगाता रहा है कि उनकी ओर से भारतीय मजदूरों का जमकर शोषण किया जाता है। भारतीय मजदूर से तय समय से ज्यादा घंटे काम कराया जाता है। पैसा कम देने के साथ ही अक्सर उनका वेतन भी रोक दिया जाता है। शोषण की इतनी ज्यादा शिकायतें हैं कि इन शिकायतों का निस्तारण करने के लिए भारतीय दूतावास को एक अलग सेल खोलना पड़ा है।

कुवैत के कई शहरों में ऐसी तमाम इमारतें हैं जो रिहायशी बस्तियों से काफी दूर बनाई गई है। इन इमारतों में बाहर से आने वाले मजदूरों को रखा जाता है। इन इमारत में रहने वाले मजदूरों की हालत यह होती है कि एक-एक कमरे में जरूरत से ज्यादा मजदूरों को ठूस दिया जाता है। यह मजदूर ज्यादा पैसा खर्च कर पाने या बेहतर जगह रह पाने की स्थिति में नहीं होते और इसी का फायदा उठाते हुए उन्हें नारकीय जिंदगी जीने के लिए मजबूर किया जाता है।


भारतीय कामगारों का जमकर होता है शोषण

कुवैत जाने वाले मजदूरों में अधिकांश केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों से जुड़े हुए हैं। यहां जाने वाले मजदूरों के अनुभव आमतौर पर काफी खराब रहे हैं मगर खराब आर्थिक हालात की वजह से कुवैत जाने वाले मजदूरों की संख्या में कोई कमी नहीं आई।

हाल में प्रकाशित एक रिपोर्ट में खुलासा किया गया था कि यहां रहने वाले मजदूरों की स्थिति तो खराब रहती ही है मगर इसके साथ ही उन्हें अपने मालिकों के खराब व्यवहार का भी सामना करना पड़ता है।

मलिक इन मजदूरों के साथ बुरा सलूक करने के साथ ही उनका जमकर शोषण भी करते हैं। कई-कई महीने तक उन्हें वेतन नहीं दिया जाता। वे खराब जगहों पर रहने के लिए मजबूर होते हैं और उन्हें मालिकों की तमाम तरह की धमकियों का भी सामना करना पड़ता है। इन मजदूरों से काम लेने वाली कंपनियां उनके पासपोर्ट अपने पास रख लेती हैं और फिर शुरू हो जाता है शोषण का गंदा खेल।


ज्यादा कमाई के आकर्षण में जाते हैं खाड़ी देश

ऐसे में सवाल उठता है कि जब शोषण और बुये सलूक का सामना करना पड़ता है तो इतनी ज्यादा तादाद में भारतीय कुवैत या खाड़ी के अन्य देशों में जाते ही क्यों हैं। इस सवाल का सीधा सा जवाब है कि भारतीय कामगारों के दिल-दिमाग में भारत के मुकाबले ज्यादा कमाई का आकर्षण होता है और यह आकर्षण ही उन्हें कुवैत और खाड़ी के अन्य देशों की ओर खींच ले जाता है।

इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन रेगुलेशन के नियमों के मुताबिक विदेश में काम करने वाले भारतीय मजदूरों के लिए मिनिमम सैलरी तय गई है। हालांकि यह सबकुछ कागजी ही होता है क्योंकि अधिकांश मामलों में मिनिमम सैलरी और अन्य नियमों का पालन नहीं किया जाता।


सरकार की ओर से 10 लाख का कवरेज

कुवैत में बढ़ई, राजमिस्त्री, ड्राइवर और पाइपफिटर तीन सौ डॉलर प्रति माह की न्यूनतम श्रेणी में आते हैं। भारी वाहन चलाने वाले और घरेलू कामगार थोड़ी बेहतर स्थिति में नजर आते हैं क्योंकि उनकी सैलरी थोड़ी ज्यादा है।

भारत सरकार की ओर से भी कुवैत में काम करने वाले भारतीय प्रवासी श्रमिकों के लिए कदम उठाया गया है। इन श्रमिकों की मौत या स्थायी विकलांगता की स्थिति में 10 लाख रुपए का कवरेज देने की व्यवस्था की गई है। इसके साथ ही विवाद किसी प्रकार का विवाद होने की स्थिति में कानूनी खर्च भी दिया जाता है।


एडवायजरी के बावजूद नहीं हो रहा फायदा

कुवैत में भारतीय दूतावास की वेबसाइट के मुताबिक 1990-91 के खाड़ी युद्ध में कुवैत में भारतीय समुदाय पर बड़ा प्रभाव पड़ा। इस युद्ध के बाद करीब 1.7 लाख से ज्यादा भारतीयों ने कुवैत छोड़ दिया था। हालांकि अब फिर कुवैत जाने वाले भारतीयों की संख्या में बढ़ोतरी दर्ज की गई है।

कुवैत में भारतीयों के साथ कई बार दुर्व्यवहार और धोखाधड़ी के मामले सामने आ चुके हैं और इसी कारण भारतीय दूतावास की ओर से समय-समय पर एडवायजरी भी जारी की जाती है। हालांकि इसका बहुत फायदा होता नहीं दिख रहा है।

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