दुनिया की सबसे प्रसिद्ध तस्वीरों में उसकी तस्वीर भी है। वह दुनिया में नापाम गर्ल के नाम से मशहूर हुई और वियतनाम युद्ध की बर्बरता का प्रतीक बन गई। उसे अब ड्रेसडेन में शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उन दिनों की याद करते हुए किम फुक फान थी कहती है, ‘मैं मरना चाहती थी।’ 8 जून 1972 को उनके गांव त्रांग बांग पर आसामन से आग बरसी थी। युद्ध रिपोर्टर निक उट तस्वीर खींच रहे थे। उन्होंने अमेरिका समर्थित दक्षिण वियतनामी सेना के नापाम बम हमले के बाद दर्द से चिल्लाती सडक़ पर भागती 9 साल की लडक़ी की तस्वीर खींची थी। पृष्ठभूमि में तबाही का गुबार था। बाद में पुलित्जर पुरस्कार से सम्मानित यह तस्वीर वियतनाम युद्ध का प्रतीक बन गई और अमेरिकी नागरिकों की सोच में बदलाव की वजह बनी।
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अब 55 साल की फुक कहती हैं, ‘जब मैं अकेली होती हूं तो तस्वीर से बचती हूं। लेकिन मैं उसके साथ शांति के लिए काम कर सकती हूं। यह मेरा सपना है।’ शुरू में तो वह बाहर निकलना पसंद नहीं करती थीं लेकिन अब सालों से वह मेलमिलाप के लिए सक्रिय हैं और युद्धक्षेत्र के प्रभावित बच्चों के लिए एक संस्था में काम करती हैं। उनके इन कार्यों के लिए उन्हें जर्मनी के ड्रेसडेन शहर का 10,000 यूरो का शांति पुरस्कार मिला है। वह कहती हैं, ‘मेरा सपना है कि ये दुनिया जीने की बेहतर जगह बने।’
दस साल तक उनके दिल में सिर्फ नफरत थी, नाराजगी थी और नकारात्मक सोच थी। वह बताती हैं, ‘मैं आभारी हूं कि मैं जी रही हूं, अपने अनुभव से मैंने सीख ली है और अपमान, दर्द और तकलीफ से निकलने का रास्ता पाया है।’ उन्होंने फैसला किया कि वे अब पीडि़त नहीं बनी रहेंगी उनका जीवन अब उम्मीद, प्यार और क्षमा से भरा है। वह कहती हैं कि हर कोई शांति के लिए काम कर सकता है और बेहतर समाज बनाने में योगदान दे सकता है। उन्हें पूरा भरोसा है कि उनकी कहानी दूसरों को सोचने पर मजबूर करेगी। वह कहती हैं, ‘जब एक छोटी लडक़ी ऐसे अनुभव के बाद प्यार, उम्मीद और माफ करने की क्षमता सीख सकती है तो ये हर कोई कर सकता है।’