पेट्रोल डीजल संकटः समाधान में आड़े ओपेक की गिरोहबंदी, शायद ही सुलझे तेल का संकट

OPEC : ईंधन के ऊंचे दामों से जनता के बीच नाराजगी, आक्रोश और निराशा बढ़ती जा रही है

Report :  Neel Mani Lal
Published By :  Ragini Sinha
Update:2021-11-25 15:47 IST

ओपेक की गिरोहबंदी, शायद ही सुलझे तेल का संकट (Social Media)

OPEC: ओपेक (OPEC) की गिरोहबंदी के चलते दुनियाभर के नेता परेशान हैं। वजह ये कि ईंधन के ऊंचे दामों से जनता के बीच नाराजगी, आक्रोश और निराशा बढ़ती जा रही है। और इसका असर नेताओं की लोकप्रियता पर पड़ने लगा है। ओपेक (OPEC full Form) को रास्ते पर लाने के लिए कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है। एकमात्र तात्कालिक उपाय है अपने आपात तेल भंडार का इस्तेमाल ताकि सप्लाई बढ़े और दाम घटें। लेकिन उम्मीद लगाना बेमानी है क्योंकि ऐसा शायद ही हो।

दुनिया में अधिकांश तेल प्रोडक्श ओपेक करते हैं 

ओपेक यानी तेल उत्पादक देशों का कुख्यात गिरोह जिसमें बड़ी संख्या मिडिल ईस्ट के देशों की है। ये गिरोह या कार्टेल महीनों से तेल सप्लाई नहीं बढ़ाने पर अड़ा हुआ है। कोरोना के कारण पिछले साल डिमांड की तुलना में बहुत ज्यादा सप्लाई थी लेकिन अब हालात उलट हैं। डिमांड आसमान छू रही है। ओपेक ये जानता है। होना तो ये चाहिए कि महामारी से बुरी तरह प्रभावित अर्थव्यवस्था की रिकवरी के लिए वो आगे बढ़ कर आये और रिकवरी में योगदान करे। दुनिया में अधिकांश तेल प्रोडक्शन (Oil production) यही ओपेक देश करते हैं लेकिन अब मदद करना तो दूर, ओपेक टस से मस नहीं हो रहा है। ऐसे में भारत, जापान और चीन जैसे तेल के बड़े उपभोक्ता देश व्यग्र और हताश हो रहे हैं। ओपेक कार्टेल से बारबार आग्रह किया जा रहा है कि वह प्रोडक्शन बढ़ाये ताकि कीमतें हाथ से बाहर न निकल जाएं। भारत सरकार ने मार्च में ही ये कवायद की थी जब पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान (Petroleum Minister Dharmendra Pradhan) ने सऊदी अरब और ओपेक से प्रोडक्शन बढ़ाने और दाम स्थिर करने का आग्रह किया था। इसके जवाब में सऊदी तेल मंत्री ने कहा था कि भारत को अपने आपात तेल भंडार का इस्तेमाल करना चाहिए। 

भंडार से तेल रिलीज करने का निर्णय

उधर अमेरिकी प्रेसिडेंट जो बिडेन (America president joe Biden) भी तेल के बढ़ते दामों से परेशान हैं। अमेरिका (America survey) के कई सर्वे बताते हैं कि महंगाई के चलते बिडेन की लोकप्रियता हाल के दिनों में नीचे चली गई है। अमेरिका तेल की समस्या से निपटने के लिए सऊदी अरब को समझाने में लगा हुआ है लेकिन बतौर कोई नतीजा नहीं निकल पा रहा है। अब अमेरिका ने हाथ जोड़ने की बजाए, आक्रामक रुख अख्तियार करने की ठान ली है। इसके लिए तेल के बड़े उपभोक्ता देशों को एकजुट करके अमेरिका ने ओपेक से टक्कर लेने की रणनीति बनाई है। इसी क्रम में अमेरिका, चीन, भारत, जापान, यूके और साउथ कोरिया ने अपने आपात भंडार से तेल रिलीज करने का निर्णय लिया है। 

क्या होगा असर

एक पहलू ये है कि यूरोप और अन्य जगहों पर कोरोना की नई लहर की गम्भीर आशंका है जिससे लॉकडाउन की स्थिति बन रही है। ऐसा हुआ तो तेल की जरूरत से ज्यादा सप्लाई बन जाएगी। इससे दाम धड़ाम से नीचे आ जाएंगे। दूसरी ओर आपात भंडार से तेल रिलीज़ (Oil Release) करने से सप्लाई तो जरूर बढ़ेगी लेकिन ओपेक पर कोई खास असर पड़ने वाला नहीं है। क्योंकि रिज़र्व भंडार से सप्लाई बहुत लंबे समय तक चलने वाली नहीं है सो इसका शार्टटाइम इफ़ेक्ट होगा। मिसाल के तौर पर भारत जितना तेल जारी कर रहा है वो तो देश में एक दिन की खपत है। इसलिए ओपेक को आपात भंडार से सप्लाई का कोई डर नहीं है। ओपेक ने तो इशारा किया है कि वह अपना उत्पादन बढ़ाने के प्लान को रद कर सकता है। यानी कार्टेल जवाब देने को तैयार बैठा है। ऐसा हुआ तो बात और भी बढ़ेगी और उसके नतीजे खराब ही होंगे। जहां तक आपात रिज़र्व की है तो सभी देशों को उसे रीफिल करना ही होगा और ओपेक से ही खरीद कर ये काम होगा। यानी दिक्कतों का अंत नहीं नजर आ रहा।

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