Russia-Ukraine War: क्या होता है नो फ्लाई जोन, जिससे नाटो ने किया है साफ़ इनकार
Russia-Ukraine War: नो फ्लाई जोन (NFZ) उस इलाके को कहा जाता है, जिसके ऊपर विमानों के उड़ान भरने पर प्रतिबंध हो।
Russia-Ukraine War: यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की (Ukraine President Volodymyr Zelenskyy) बार बार नाटो सदस्य राष्ट्रों से अपील कर रहे हैं कि यूक्रेन को नो फ्लाई जोन (No-fly Zone) घोषित कर दिया जाए। लेकिन नाटो (NATO) ने इससे साफ़ मना कर दिया है। नाटो देशों का कहना है कि नो फ्लाई जोन घोषित करने का मतलब रूस से सीधी लड़ाई शुरू करना होगा।
क्या होता है नो फ्लाई जोन (No-fly Zone Kya Hota Hai)
नो फ्लाई जोन (NFZ) उस इलाके को कहा जाता है, जिसके ऊपर विमानों के उड़ान भरने पर प्रतिबंध हो। आम तौर पर ऐसा सुरक्षा कारणों से किया जाता है। शांतिपूर्ण माहौल में, अहम आयोजनों के दौरान कई देश किसी खास इलाके या शहर को एनएफजेड घोषित करते हैं। दूसरी तरफ सैन्य संघर्ष में नो फ्लाई जोन बहुत संवेदनशील मुद्दा बन जाता है। नो फ्लाई जोन घोषित करने वाले देश या संगठन के लड़ाकू विमान, एनएफजेड इलाके की निगरानी करते हैं और अगर कोई दूसरा विमान नो फ्लाई जोन में घुसता है तो उसे जबरदस्ती नीचे उतारा या फिर मार गिराया जा सकता है। 1990 के दशक में इराक और बोस्निया में संघर्ष के दौरान इन देशों को नो फ्लाई जोन घोषित किया गया था।
हाल के बरसों में कुछ समय तक पूर्वी यूक्रेन, सीरिया और लीबिया को नो फ्लाई जोन घोषित किया जा चुका है। लेकिन पूरे यूक्रेन को नो फ्लाई जोन घोषित करने का सीधा मतलब है, रूस से सीधा टकराव। अगर नाटो यूक्रेन को नो फ्लाई जोन घोषित करता है तो उसे निगरानी के लिए अपने फाइटर जेट यूक्रेन के ऊपर उड़ाने होंगे। और इस दौरान नाटो का सीधा सामना रूसी विमानों और हेलिकॉप्टरों से होगा। यही वजह है कि ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन समेत नाटो के तमाम नेता यूक्रेन को नो फ्लाई जोन घोषित करने से साफ इनकार कर रहे हैं। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पहले ही चेतावनी दे चुके है कि अगर कोई तीसरा देश इस संघर्ष में कूदा तो वह अपने इतिहास का सबसे बुरा दौर देखेगा।
पिछले नो-फ्लाई जोन
इराक, 1991-2003
1991 के खाड़ी युद्ध के बाद अमेरिका ने अन्य गठबंधन देशों के साथ इराक में दो नो-फ्लाई जोन स्थापित किए। अमेरिका और गठबंधन के अधिकारियों ने कहा कि उत्तरी नो-फ्लाई ज़ोन का उद्देश्य सद्दाम हुसैन के इराकी शासन द्वारा कुर्द लोगों के खिलाफ हमलों को रोकना और दक्षिणी नो-फ्लाई-ज़ोन का उद्देश्य इराक की शिया आबादी की रक्षा करना था।
बोस्निया और हर्जेगोविना, 1993-1995
1992 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने बोस्नियाई हवाई क्षेत्र में अनधिकृत सैन्य उड़ानों को प्रतिबंधित करते हुए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद संकल्प 781 पारित किया। इसने ऑपरेशन स्काई मॉनिटर का नेतृत्व किया, जहां नाटो ने नो-फ्लाई ज़ोन के उल्लंघन की निगरानी की, लेकिन संकल्प के उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई नहीं की।
1993 तक 500 उल्लंघनों के जवाब में सुरक्षा परिषद ने प्रस्ताव 816 पारित किया, जिसने सभी अनधिकृत उड़ानों को प्रतिबंधित कर दिया और संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य राज्यों को "सभी आवश्यक उपाय करने और अनुपालन सुनिश्चित करने की अनुमति दी। इसके कारण ऑपरेशन डेन फ़्लाइट शुरू हुआ। नाटो ने बाद में ऑपरेशन डेनी फ्लाइट के दौरान और ऑपरेशन डेलिब्रेट फोर्स के दौरान हवाई हमले किए।
लीबिया - 2011
लीबिया में 2011 के सैन्य हस्तक्षेप के हिस्से के रूप में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने 17 मार्च 2011 को नो-फ्लाई ज़ोन को मंजूरी दी। इस प्रस्ताव में नागरिक लक्ष्यों पर हमलों को रोकने के लिए आगे की कार्रवाई के प्रावधान शामिल हैं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा सर्वसम्मति से मतदान के बाद 27 अक्टूबर को नाटो नो फ्लाई ज़ोन को समाप्त कर दिया गया था।
लीबिया, 2018 और 2019
2018 में इस क्षेत्र में लीबिया की राष्ट्रीय सेना द्वारा नो-फ्लाई ज़ोन घोषित किया गया था। बाद में इसे 2019 में 10 दिनों के लिए फिर से लागू किया गया क्योंकि सेना ने इस क्षेत्र में तेल क्षेत्रों पर नियंत्रण स्थापित कर लिया था। एलएनए ने 2019 के पश्चिमी लीबिया के आक्रमण के दौरान देश के पश्चिम में एक और नो-फ्लाई ज़ोन घोषित किया था।
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