Sri Lanka Crisis: श्रीलंका जैसे संकट में फंसे हुए हैं कई देश, मंडरा रहा गंभीर खतरा, भारत का एक और पडोसी शामिल

Sri Lanka Crisis: संयुक्त राष्ट्र महासचिव के ग्लोबल क्राइसिस रिस्पांस ग्रुप की पिछले महीने की एक रिपोर्ट के अनुसार, 94 देशों में लगभग 1 अरब 60 करोड़ लोग भोजन, ऊर्जा और वित्तीय प्रणालियों के संकट का सामना कर रहे हैं।

Report :  Neel Mani Lal
Update:2022-07-09 20:34 IST

Sri Lanka Crisis (Image: Social Media)

Sri Lanka Crisis: श्रीलंका में आर्थिक हालात बहुत ही ज्यादा खराब हो गए हैं और जनता का गुस्सा इस लेवल पर पहुंच गया है कि राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को राष्ट्रपति भवन छोड़ कर भागना पड़ा है। लेकिन यह स्थिति एकमात्र श्रीलंका की नहीं है। तमाम देश गंभीर आर्थिक संकट में हैं। लाओस और पाकिस्तान से लेकर वेनेजुएला और गिनी तक, दुनिया भर की कई अर्थव्यवस्थाओं के लिए खतरे की घंटी बज रही है।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव के ग्लोबल क्राइसिस रिस्पांस ग्रुप की पिछले महीने की एक रिपोर्ट के अनुसार, 94 देशों में लगभग 1 अरब 60 करोड़ लोग भोजन, ऊर्जा और वित्तीय प्रणालियों के संकट का सामना कर रहे हैं। और उनमें से लगभग 1 अरब 20 करोड़ लोग ऐसे देशों में रहते हैं जहां कभी भी श्रीलंका जैसा तूफान आ सकता है।

इन देशों के संकट के सटीक कारण अलग - अलग हैं, लेकिन सभी खाद्य और ईंधन की बढ़ती लागत से जूझ रहे हैं। ये यूक्रेन पर रूस के युद्ध से अधिक प्रेरित हैं। कोरोना महामारी में आर्थिक संकट झेल रहे देशों में जब महामारी थमने के बाद पर्यटन और अन्य व्यावसायिक गतिविधियों में सामान्य स्थिति बहाल होना शुरू हुई थी तो रूस यूक्रेन लड़ाई सामने आ गई और हालात पहले से

ज्यादा बिगड़ गए। इसके नतीजे के बारे में विश्व बैंक का अनुमान है कि इस साल विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में प्रति व्यक्ति आय महामारी के पूर्व के स्तर से 5 फीसदी कम होगी।

इस बीच, महामारी राहत पैकेजों के लिए ऊंची ब्याज दरों पर अल्पकालिक उधारी लेने से ऐसे कई देशों पर मोटा कर्ज हो गया है जो पहले से ही आर्थिक दायित्वों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे थे। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, दुनिया के आधे से अधिक सबसे गरीब देश कर्ज के संकट में हैं या इसके उच्च जोखिम में हैं। कुछ देश पहले से ही भ्रष्टाचार, गृहयुद्ध, तख्तापलट या अन्य आपदाओं से तबाह देशों में शामिल हैं।

आर्थिक तनाव कई देशों में विरोध प्रदर्शनों को हवा दे रहे हैं।

अफगानिस्तान: तालिबान के नियंत्रण में आने के बाद से अफगानिस्तान एक गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा है। देश के 3 करोड़ 90 लाख लोगों में से लगभग आधे लोगों को खाद्य असुरक्षा के खतरनाक स्तर का सामना करना पड़ रहा है। डॉक्टर, नर्स, शिक्षक और सरकारी कर्मचारियों को महीनों से वेतन भुगतान नहीं किया गया है।

अर्जेंटीना: इस देश में 40 फीसदी लोग गरीब हैं। अर्जेंटीना का विदेशी भंडार खतरनाक रूप से कम स्तर पर है। देश की मुद्रा कमजोर है और इस साल महंगाई 70 फीसदी से ज्यादा रहने का अनुमान है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की 44 अरब डॉलर के कर्ज की वापसी का बड़ा संकट बना हुआ है।

मिस्र: मिस्र की मुद्रास्फीति की दर अप्रैल में लगभग 15 फीसदी तक बढ़ गई थी। जिससे विशेष रूप से गरीबी में रहने वाले 10 करोड़ 30 लोगों में से लगभग एक तिहाई के लिए जिंदगी दूभर हो गई है।मिस्र का शुद्ध विदेशी भंडार गिर गया है। पड़ोसी सऊदी अरब, कतर और संयुक्त अरब अमीरात ने मिस्र को सहायता देने का वादा किया है।

लाओस: महामारी की चपेट में आने से पहले लाओस सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक था। अब स्थिति ये है कि इसके कर्ज का स्तर बढ़ गया है और श्रीलंका की तरह, यह लेनदारों के साथ बातचीत कर रहा है कि अरबों डॉलर के ऋणों को कैसे चुकाया जाए। विश्व बैंक का कहना है कि इसका विदेशी भंडार दो महीने से भी कम समय के आयात के बराबर है। लाओस की मुद्रा, किप 30 फीसदी तक गिर चुकी है।

लेबनान: लेबनान की स्थिति भी श्रीलंका जैसी है। इसकी मुद्रा बहुत कमजोर हो चुकी है, मुद्रास्फीति चरम पर है और जनता बेहाल है। विश्व बैंक ने कहा है कि लेबनान आज दुनिया में 150 से अधिक वर्षों में सबसे खराब स्थिति में से एक के रूप में है।

पाकिस्तान: श्रीलंका की तरह, पाकिस्तान भी कर्जे में फंसा हुआ है। उसे आईएमएफ से 6 अरब डॉलर के बेलआउट पैकेज की उम्मीद है, जिसे अप्रैल में इमरान खान की सरकार को हटा दिए जाने के बाद रोक दिया गया था। पाकिस्तान में महंगाई का आलम ये है कि मुद्रास्फीति 21 फीसदी से अधिक हो गई है। पिछले एक साल में डॉलर के मुकाबले पाकिस्तान की मुद्रा लगभग 30 फीसदी गिर गई है। मार्च के अंत तक, पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार गिरकर 13.5 अरब डॉलर हो गया था, जो सिर्फ दो महीने के आयात के बराबर था। 

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