Sri Lanka में हटा आपातकाल, चीन के खिलाफ लोगों का फूटा गुस्सा

भयानक आर्थिक संकट का सामना कर रही श्रीलंकाई जनता का गुस्सा अब चीन पर फूट पड़ा है। श्रीलंकाई आवाम में देश में गहराए आर्थिक संकट को लेकर चीन के खिलाफ जबरदस्त आक्रोश देखने को मिल रहा है।

Newstrack :  Network
Update: 2022-04-06 19:04 GMT

Sri Lanka Economic Crisis (फोटो संभार-सोशल मीडिया)

कोलंबो. श्रीलंका का आर्थिक तंत्र पूरी तरह से चरमरा चुका है। महंगाई का स्तर इतना बढ़ चुका है कि लोग अब रोजमर्रा की चीजें भी नहीं खरीद पा रहे हैं। देश में दवाईयां तक नहीं मिल पा रही है। देश में बढ़ते विरोध प्रदर्शन को देखते हुए राजपक्षे सरकार ने 1 अप्रैल को आपातकाल लगा दिया था। जिसे मंगलवार आधी रात को हटा दिया गया है। श्रीलंका में भारी विरोध प्रदर्शन जारी है। मंगलावर शाम को बड़ी संख्या में छात्र भारी बारिश के बीच राजधानी कोलंबो स्थित प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के आवास के बाहर विरोध प्रदर्शन कर रहे थे।

चीन के खिलाफ फूटा गुस्सा

भयानक आर्थिक संकट का सामना कर रही श्रीलंकाई जनता का गुस्सा अब चीन पर फूट पड़ा है। श्रीलंकाई आवाम में देश में गहराए आर्थिक संकट को लेकर चीन के खिलाफ जबरदस्त आक्रोश देखने को मिल रहा है। श्रीलंकाई मीडिया रिपोर्टेस के अनुसार, प्रदर्शनकारी देश की इस आर्थिक बदहाली के लिए चीन को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। उनका कहना है कि सरकार के पास पैसा नहीं है, क्योंकि उन्होंने सबकुछ चीन को बेच दिया है। चीन दूसरे देशों को कर्ज देकर उनका सबकुछ खरीद ले रहा है।

चीनी कर्ज के जाल में श्रीलंका

श्रीलंका की जनता का चीन के प्रति गुस्सा व्यर्थ नहीं है। श्रीलंका को इस गहरे आर्थिक संकट के दलदल में धकेलने में चीन की बड़ी भूमिका है। यही वजह है कि आज श्रीलंका में वहीं की जनता चीनी कर्जों को दिल खोलकर बटोरने वाला राजपक्षे परिवार और चीन के खिलाफ सबसे अधिक आक्रोशित है। दरअसल चीन की एक रणनीति रही है कि वो छोटे अविकसित देशों को बड़े पैमाने पर कर्ज मुहैया कराता है। उन देशों में वो ऐसी इंफास्ट्रकचर के प्रोजेक्टों में पैसा लगाता है, जिसका उधार चुकता करना उस देश की बस की बात नहीं होती है। कर्ज न चुका पाने की सूरत में चीन फिर उस देश का अपने प्रतिदवंदी देशों के खिलाफ रणनीतिक उपयोग करने में जुट जाता है।

श्रीलंका पर लगभग सात बिलियन अमेरिकी डॉलर का विदेश कर्ज है। जिसमें अधिकतर हिस्सा चीन का है। साल 2015 तक श्रीलंका के एफडीआई में चीनी निवेश का हिस्सा 35 प्रतिशत तक पहुंच गया है। चीन ने श्रीलंका में 338 मिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया है। दरअसल गृह युद्ध की ताप से बाहर निकले श्रीलंका को भारी आर्थिक मदद की जरूरत थी, चीन ने भारत के इस अहम पड़ोसी को अपने पाले में लाने के लिए इसे सबसे बेहतर मौका माना। और उसने दिल खोलकर श्रीलंका को कर्ज दिया। विशेषज्ञों की चेतावनी के बावजूद श्रीलंका इन कर्जों को लेता रहा और आज उसकी हालत सबके सामने हैं।

राजपक्षे परिवार का गृह शहर हम्बनटोटा चीनी कर्ज जाल का सटीक उदाहरण है। चीन ने हम्बनटोटा शहर स्थित बंदरगाह को बनाने में भारी भरकम निवेश किया। श्रीलंका द्वारा कर्ज के पैसे वापस करने में विफल रहने के बाद उसे ये बंदरगाह और आस – पास की सैकड़ों एकड़ जमीन चीन को 99 साल के लीज पर देनी पड़ी। 

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