Syria Civil War: सीरिया में तुर्की का खेल, विद्रोहियों को मिला था सपोर्ट
Syria Civil War: सीरिया के साथ 566 मील लंबी सीमा साझा करने वाले तुर्की ने 2011 में गृह युद्ध के फैलने के बाद से असद को उखाड़ फेंकने के उद्देश्य से विपक्षी समूहों का सपोर्ट किया है।;
Syria Civil War: सीरिया पर असद परिवार के 50 साल लंबे राज का दो हफ्तों में ही अंत हो गया। हालांकि इस पूरे हमले की योजना कई महीनों पहले बनी थी। इसमें तुर्की की महत्वपूर्ण भूमिका बताई जा रही है। माना जाता है कि सीरिया का ऑपरेशन 6 महीनों की प्लानिंग का नतीजा था, जब हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस) ने तुर्की को इस हमले की योजना बताई थी। फिर विद्रोहियों के हमले की शुरुआत सीरिया के दूसरे सबसे बड़े शहर अलेप्पो पर कब्जे से हुई। इसके बाद विद्रोहियों ने हुमा और होम्स जैसे प्रमुख शहरों पर कब्जा किया और आखिरकार 8 दिसंबर को दमिश्क में प्रवेश किया।
असद के खिलाफ रहा है तुर्की
सीरिया के साथ 566 मील लंबी सीमा साझा करने वाले तुर्की ने 2011 में गृह युद्ध के फैलने के बाद से असद को उखाड़ फेंकने के उद्देश्य से विपक्षी समूहों का सपोर्ट किया है। वैसे तो तुर्की के अधिकारियों ने मौजूदा ऑपरेशन में तुर्की का हाथ होने के दावों को खारिज कर दिया है लेकिन जानकारों का मानना है कि विद्रोहियों की कार्रवाई तुर्की की सहमति के बिना मुमकिन नहीं थी। असद के खिलाफ विद्रोहियों के ऑपरेशन के बहाने तुर्की को अपने सीरियाई प्रॉक्सी सीरियाई राष्ट्रीय सेना के माध्यम से सीरिया में कुर्द बलों के खिलाफ़ कार्रवाई करने का मौक़ा मिला है। सीरिया में बैठी कुर्द फ़ोर्स तुर्की के कट्टर दुश्मन, कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी (पीकेके) से संबद्ध है।
कहने को तो दमिश्क कब्जा करने वाले जिहादी समूह, हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस) को तुर्की द्वारा एक आतंकवादी संगठन के रूप में नामित किया गया है। लेकिन ये भी सच है कि तुर्की ने उत्तरी सीरिया में वर्षों तक इस संगठन के साथ काम किया है और माना जाता है कि इस ग्रुप पर तुर्की का महत्वपूर्ण प्रभाव है।
सीरिया के साथ संबंध
तुर्की ने सीरिया की क्षेत्रीय अखंडता के लिए अपना समर्थन व्यक्त किया है। तुर्की कतई नहीं चाहता कि उसकी सीमा पर कुर्द नियंत्रण वाला स्वायत्त क्षेत्र बने या सीरिया से शरणार्थियों का नया पलायन शुरू हो। तुर्की ने इस्लामिक स्टेट (आईएस) या कुर्द आतंकवादियों को पीछे धकेलने और अपनी सीमा पर एक बफर ज़ोन बनाने के उद्देश्य से 2016 से सीरिया में कई घुसपैठ की है, और अब उत्तरी सीरिया में तुर्की एक क्षेत्र को नियंत्रित भी करता है।
तुर्की पहले शासन और विद्रोहियों के बीच संघर्ष को हल करने के लिए कूटनीतिक प्रयासों में शामिल था, जिसमें असद के मुख्य समर्थकों, रूस और ईरान के साथ बातचीत करना शामिल था। हाल ही में तुर्की ने कुर्द मिलिशिया से तुर्की को होने वाले खतरे को कम करने और शरणार्थियों की सुरक्षित वापसी सुनिश्चित करने के लिए असद के साथ सुलह की मांग की थी लेकिन असद ने तुर्की के प्रस्तावों को ठुकरा दिया था। 2022 से तुर्की ने सीरिया के साथ संबंधों को सामान्य बनाने की कोशिश की है। हालाँकि, असद ने उत्तरी सीरिया से तुर्की सैनिकों की वापसी पर जोर दिया, जबकि तुर्की का कहना है कि जब तक कुर्द मिलिशिया से खतरे बने रहेंगे, तब तक वह वापस नहीं जा सकता।
तुर्की का रुख
तुर्की के अधिकारियों ने सरकार विरोधी हमले में शामिल होने के दावों को दृढ़ता से खारिज कर दिया है, उन्होंने क्षेत्र में अस्थिरता बढ़ाने वाले घटनाक्रमों का विरोध किया है। तुर्की चाहे जो कहे लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि तुर्की की हरी झंडी के बिना विद्रोही आक्रमण असंभव था। तुर्की के अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने महीनों तक आक्रमण को रोके रखा। उनका ये भी कहना है कि रूस, ईरान और तुर्की के बीच संघर्ष को कम करने के लिए हुए समझौतों का उल्लंघन करते हुए सीरियाई सरकार द्वारा विपक्ष के कब्जे वाले क्षेत्रों पर हमला करने के बाद विपक्षी बलों ने आखिरकार हमला किया। शुरू में आक्रमण सीमित होना था, लेकिन सीरियाई सरकारी बलों द्वारा पीछे हटने के बाद इसका विस्तार हुआ। तुर्की के विदेश मंत्री हकन फिदान ने कहा है कि तुर्की, सीरिया की राष्ट्रीय एकता, स्थिरता, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता और सीरियाई लोगों की भलाई को बहुत महत्व देता है। इस तरह लाखों सीरियाई लोग जो अपने घरों को छोड़ने के लिए मजबूर हो गए थे, वे अपनी भूमि पर वापस आ सकते हैं।
अब आगे क्या होगा?
सीरियाई सरकार के पतन से तुर्की के लिए कई जोखिम पैदा हो सकते हैं, जिसमें अराजकता की स्थिति में तुर्की की सीमा की ओर शरणार्थियों की एक नई लहर जाना भी शामिल है। इसके अलावा, विद्रोही आक्रमण सीरिया के समर्थकों, ईरान और रूस के साथ तनाव बढ़ा सकता है। रूस का पूरा सपोर्ट बशर अल असद को है लेकिन रूस ने अभी तुर्की पर कोई आरोप नहीं लगाया है। रूस नहीं चाहता कि तुर्की यूक्रेन में युद्ध पर अपने रुख में रूस की और भी खिलाफत करने लगे। सो रूस-तुर्की में अभी कोई मसला खड़ा होने की संभावना नहीं है।
क्यों पतन हुआ असद का?
असद के खिलाफ विद्रोहियों के सफल अभियान की कई वजहें बताई जातीं हैं। टूटे मनोबल वाली थकी हुई सीरियाई सेना विद्रोहियों के हमले का सामना नहीं कर पाई और उसने जल्दी ही हथियार डाल दिए। सीरियाई सेना के साजो सामान खराब रखरखाव और लूटपाट के कारण बेकार हो चले थे। सैनिकों में बढ़ती बगावत और सहयोगी देशों के समर्थन में कमी ने असद के सामने हालात और मुश्किल बना दिए थे। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर असद के मुख्य समर्थक रूस, ईरान, और हिजबुल्लाह रहे हैं लेकिन ये सभी अपनी ही दूसरी समस्याओं में उलझे थे। रूस का ध्यान यूक्रेन युद्ध पर था। हिजबुल्लाह को इजरायल ने तबाह कर रखा था। हिजबुल्ला नेता नसरल्लाह की मौत एक बड़ा झटका थी, ईरान भी इजरायल के मामले में उलझा हुआ था। इन सबकी वजह से असद काफी कुछ अकेले पड़े हुए थे।
तुर्की ने फायदा उठाया
वैसे तो तुर्की ने सीधे तौर पर विद्रोहियों को समर्थन नहीं दिया लेकिन उसकी भूमिका काफी विवादित रही। तुर्की लंबे समय से सीरियाई नेशनल आर्मी (एसएनए) जैसे सीरियाई विपक्षी गुटों का समर्थन करता रहा है। बताया जाता है कि असद के खिलाफ निर्णायक मुहिम छेड़ने वाले विद्रोहियों ने तुर्की से साफ़ आश्वासन माँगा था कि उनका अभियान रोका नहीं जाएगा। तुर्की ने विद्रोहियों को कोई स्पष्ट मंजूरी नहीं दी, लेकिन उनके अभियान में हस्तक्षेप भी नहीं किया। दरअसल, तुर्की के अपने स्वार्थ हैं, वह सीरियाई कुर्द गुटों पर लगाम कसना चाहता है और ये भी चाहता है कि तुर्की में शरण लिए लाखों सीरियाई शरणार्थी अब वापस चले जाएँ।
क्या होगा असर?
असद शासन का पतन पश्चिम एशिया में ईरान के प्रभाव के लिए बहुत बड़ा झटका है। ईरान पहले ही लेबनान में कमजोर पड़ चुका है। अब सवाल ये है कि अमेरिका और पश्चिमी शक्तियां सीरिया के लिए क्या सोच रहते हैं और क्या कदम उठाते हैं। असद शासन के अंत के बाद सीरिया का भविष्य अनिश्चित है। संयुक्त राष्ट्र ने शांतिपूर्ण बदलाव के लिए समर्थन की बात की है। लेकिन सीरियाई विपक्षी गुटों में फूट और चरमपंथी तत्वों की मौजूदगी से एकता और लोकतंत्र की संभावना बहुत कम है। जहने को एचटीएस अपने को कट्टरपंथी इस्लामी नहीं कहता है लेकिन इसकी पिछली हरकतें और इसके सहयोगी इस विचार को झुठलाते हैं। चौदह साल के गृह युद्ध से सीरिया काफी तबाह हो चुका है और इसे फिर से खड़ा करना काफी मुश्किल है, फिर भी काफी कुछ पश्चिमी देशों की रणनीतियों पर निर्भर करता है।