इस शख्स से तालिबान भी खाता है खौफ, डर से नहीं जाता इसके इलाके में

अफगानिस्तान की पंजशीर घाटी एकमात्र ऐसा प्रांत है, जो अभी भी तालिबान के कब्जे से बाहर है। प्रवेश करने की हिम्मत तालिबान भी नहीं जुटा पाता। इस इलाके में पिछले 40 साल में तालिबान कभी प्रवेश नहीं कर पाया।

Written By :  Akhilesh Tiwari
Published By :  Deepak Kumar
Update: 2021-08-18 16:38 GMT

अहमद शाह मसूद व उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह (Social media)

नई दिल्ली। अफगानिस्तान में अमेरिकी फौजों के हटने के महज बीस दिन में तालिबान ने राजधानी काबुल समेत पूरे देश पर कब्जा जमा लिया है लेकिन अफगानिस्तान का एक इलाका अब भी ऐसा है जहां प्रवेश करने की हिम्मत तालिबान भी नहीं जुटा पाता। इस इलाके में पिछले 40 साल में तालिबान कभी प्रवेश नहीं कर पाया। अब पंजशीर के इस इलाके से ही तालिबान को नई चुनौती मिल रही है।

अफगानिस्तान की पंजशीर घाटी के नेता व देश के उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह ने तालिबानियों को अफगानिस्तान के अंदर से ललकारा है। उन्होंने 17 अगस्त को ट्वीट कर एलान कर दिया है कि वह तालिबानियों की सत्ता को स्वीकार नहीं करेंगे। उन्होंने दावा किया कि देश के निर्वाचित राष्ट्रपति के विदेश भाग जाने के बाद अब वह ही इस देश के निर्वाचित राष्ट्र प्रमुख हैं। ऐसे में तालिबानियों की सत्ता का सवाल नहीं उत्पन्न होता है। उनहोंने कहा कि मेरे हीरो अहमद शाह मसूद की ताकत हमारे साथ है। उनके आदर्शों के अनुरूप अफगानिस्तान को तालिबान मुक्त बनाने के लिए हम सभी संघर्ष के लिए तैयार हैं।

कौन हैं शेर—ए—पंजशीर अहमदशाह मसूद

पंजशीर की घाटी में कभी अहमद शाह मसूद की तूती बोला करती थी। वह इस इलाके के लिए शेर की मानिंद थे जिनके लिए पंजशीर घाटी का बच्चा—बच्चा कुर्बान होने के लिए तैयार रहता था। इसकी वजह थी पंजशीर घाटी के इस शेर का वह अहद जो उसने अपने इलाके में रहने वाले अफगानियों की सुरक्षा के लिए ले रखा था। अहमद शाह मसूद ने अफगानिस्तान से रूस की वापसी के बाद नार्दन एलायंस के बूते पर इस इलाके की रखवाली की थी। इस एलायंस का निर्माण 1996 में तालिबान सत्ता के विरोध में अफगानिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति बुरहानुद्दीन रब्बानी और उनके रक्षामंत्री अहमद शाह मसूद ने मिलकर किया था।


1979 से 1989 तक अहमदशाह मसूद अपने देश की आजादी के लिए रूसी सैनिकों के साथ जंग लड़ते रहे हैं। 1992 में रूसी सेना की पूरी तरह वापसी के बाद जब अफगानिस्तान में सर्वमान्य सरकार बनी तो पेशावर समझौते के तहत उन्हें राष्ट्रीय रक्षा मंत्री बनाया गया। नौ सितंबर 2001 को अलकायदा के आत्मघाती बम हमले में वे मारे गए। इसके दो दिन बाद अमेरिका में ट्विन टॉवर पर आतंकी हमला हुआ। अमेरिका ने नार्दन एलायंस के साथ मिलकर तालिबानियों के खिलाफ अभियान शुरू किया और तालिबानियों को सत्ता से बेदखल कर दिया। बाद में अफगान राष्ट्रपति हामिद करजई ने अहमद शाह मसूद को राष्ट्रीय नायक का खिताब दिया और उनकी पुण्य तिथि को मसूद दिवस के नाम पर राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया।

ताजिक व उजबेक समूह का नेतृत्व

अफगानिस्तान पर तालिबानियों के कब्जे का विरोध करने के लिए बने नार्दन एलायंस में सबसे पहले ताजिक समुदाय के अफगानी शामिल थे लेकिन बाद में इसके साथ उजबेक भी जुड़ गए। उजबेक समुदाय के अब्दुल रशीद दोस्तुम, हजारा समुदाय के मुहम्मद मोहकिक, सैयद हुसैन अनवरी और पश्तून समुदाय के अब्दुल कादिर इस एलायंस के नेताओं में शुमार थे। तालिबान के खिलाफ लड़ाई में इस समुदाय को ईरान, रूस, ताजिकिस्तान व भारत से मदद मिलती रही है। अलकायदा और पाकिस्तान का खुला समर्थन तालिबान को मिलता रहा और नार्दन एलांयस उनके साथ खुलकर जंग लड़ता रहा है। तालिबान व नार्दन एलायंस में सालों तक जंग होती रही।


अफगानिस्तान का चंबल बीहड़ है पंजशीर घाटी

काबुल से पूर्व में स्थित पंजशीर घाटी का इलाका लगभग 3610 वर्ग किमी में फैला हुआ है। इसकी आबादी लगभग ढाई लाख बताई जाती है। इस प्रांत की राजधानी बाजारक शहर है और यहां रहने वाले लोग फारसी बोलते हैं। काबुल विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग करने वाले अहमद शाह मसूद ने जब रूसी सेना के खिलाफ अपने लोगों को इकठ्ठा कर जंग का एलान किया तो पंजशीर घाटी में रूसी सेना का दखल भी नहीं हो सका। रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि पंजशीर घाटी की भौगोलिक स्थिति ऐसी है जिससे वहां कोई प्रवेश नहीं पा सकता। इसे अफगानिस्तान का भूल —भुलैया कहते हैं तो कुछ लोग इसकी तुलना चंबल के बीहड़ों से भी करते हैं।


अब मसूद का बेटा दे रहा है सालेह का साथ

अफगानिस्तान के उप राष्ट्रपति रहे अमरुल्लाह सालेह ने तालिबानियों को जो चुनौती दी है। इसके पीछे अहमद शाह मसूद की ताकत ही है। उन्होंने अपने बयान में कहा भी है कि वह अपने हीरो अहमद शाह मसूद को कभी धोखा नहीं दे सकते। उन्होंने जिन सपनों को पूरा करने के लिए तालिबानियों से जंग लड़ी है उन्हें सभी मिलकर पूरा करेंगे। बताया जा रहा है कि अहमद शाह मसूद का बेटा अब सालेह के साथ है। उसके साथ पूरा ताजिक समुदाय है। ऐसे में माना जा रहा है कि तालिबानियों को अफगानिस्तान से ही टक्कर मिलनी शुरू हो गई है और उनकी राह इस बार भी आसान नहीं होगी। 

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