Taliban: आसान नहीं अफगानी मेवे खाना, भीतर और बाहर खड़ी हैं बहुत सी चुनौतियां

Taliban: हालात साफ तौर पर इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि दो दशक पहले और आज के हालात में जमीन आसमान का अंतर आ चुका है।

Written By :  Ramkrishna Vajpei
Published By :  Monika
Update:2021-08-23 15:15 IST

तालिबान (फोटो : सोशल मीडिया ) 

Taliban: अफगानिस्तान (Afghanistan) के सुरक्षाबलों से किसी अहम लड़ाई के बगैर तालिबान सत्ता पर तो काबिज हो गया लेकिन उसका सबसे बड़ा संकट सत्ता के ढांचे का निर्माण करना और खुद को स्थापित करने को लेकर है। हालात साफ तौर पर इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि दो दशक पहले और आज के हालात में जमीन आसमान का अंतर आ चुका है। खुद तालिबान के समक्ष सबसे बड़ा संकट अपने लड़ाकों को नियंत्रित करने को लेकर है जो आपस में ही भिड़ने को तैयार बैठे हैं। इसके अलावा जिन नेताओं को केंद्र में रखकर अब तक उसने संघर्ष किया था उनको सार्वजनिक रूप से बाहर लाने में भी अभी तक वह फैसला नहीं कर सका है इसके अलावा देश के कोष पर लगे प्रतिबंध भी उसके हाथ पैर बांध रहे हैं। कुल मिलाकर तालिबान अराजकता फैला सकता है। देश को गृहयुद्ध में ढकेल सकता है लेकिन जनता पर शासन करने का स्वप्न अभी उसकी कथित विजय से काफी दूर नजर आ रहा है जिसके पूरा होने या टूटने के बारे में स्थितियां स्पष्ट नहीं हैं।

हालात की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि तालिबान वैश्विक समुदाय से अफगानिस्तान की उसकी सरकार को वैध सरकार के रूप में मान्यता देने का अनुरोध कर रहा है, इसी से देश को धन जारी करने की अनुमति मिलेगी। यूरोपीय संघ के शीर्ष अधिकारियों ने आतंकवादी समूह को चेतावनी दी कि मौजूदा बातचीत को सुरक्षा उद्देश्य से आयोजित किया जा रहा है। जितने संभव हो उतने अफगानों की निकासी का मतलब यह नहीं है कि समूह नए शासन को मान्यता देने के लिए तैयार है।

संयुक्त राज्य अमेरिका पहले ही एलान कर चुका है कि तालिबान को मान्यता देना आतंकवादी समूह के मानवाधिकार रिकॉर्ड पर निर्भर होगा। बिडेन प्रशासन अब इस चिंता को रूस और चीन के शीर्ष प्रतिद्वंद्वियों तक पहुंच रहा है कि तालिबान को अलग-थलग करने पर मॉस्को और बीजिंग दोनों में से कोई एक या दोनों अंतरराष्ट्रीय सहमति को बाधित कर सकते हैं, स्थिति खराब हो सकती है। जैसा कि माना जा रहा है पाकिस्तान के अलावा रूस, चीन और ईरान तालिबान को काबुल में वैध सरकार के रूप में मान्यता देने वाले पहले राष्ट्र हो सकते हैं।

काबुल में तालिबानी (फोटो : सोशल मीडिया )

महिलाओं और लड़कियों के मानवाधिकार

यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयन ने कहा है कि अफगानिस्तान को यूरोपीय मानवीय सहायता जारी रखना तालिबान पर विशेष रूप से महिलाओं और लड़कियों के मानवाधिकारों का सम्मान करने पर निर्भर करेगा। "हम तालिबान के बयान सुनते हैं जो इस बात पर जोर देता है कि महिलाओं को समाज में उनका सही स्थान मिलेगा और इस्लाम के ढांचे के भीतर अध्ययन और काम करने का अधिकार होगा, जो भी इसका मतलब है। लेकिन हम लोगों के शिकार होने की अधिक से अधिक रिपोर्टें भी सुनते हैं उनके पिछले काम या राय, और हम सुनते हैं कि जब महिलाएं अपने सामान्य कार्यस्थल पर दिखाई देती हैं, तो उन्हें दूर कर दिया जाता है।

अफगान पत्रकार बिलाल सरवरी का कहना है कि अब जबकि अफगानों की ऊर्जावान नई पीढ़ी आंतरिक रूप से विभाजित तालिबान के साथ संघर्ष कर रही है, ऐसे में यह स्पष्ट नहीं है कि यह सब कब तक चलेगा। अफ़गानों ने गुरुवार को दूसरे दिन सड़कों पर उतरकर देश के नए तालिबान शासकों की अवहेलना में अपने राष्ट्रीय ध्वज फहराए थे। आतंकवादी समूह लोगों के अधिकारों का सम्मान करने का वादा करने वाले बयान दे रहा है, लेकिन साथ ही, प्रदर्शनों पर उसकी प्रतिक्रिया हिंसक रही है, और कई लोग मारे गए हैं।

  हथियारों के साथ तालिबानी (फोटो : सोशल मीडिया )

तालिबान भी नई पीढ़ी के लड़ाकों से बना

काबुल में रहने वाले सरवरी का कहना है कि सड़कों पर लोग अफगानों की एक नई पीढ़ी के हैं, जिन्हें अपने देश पर गर्व है और वे उसी दमनकारी शासन के लिए खड़े नहीं होंगे, जिसका अनुभव अफगानिस्तान ने 90 के दशक में तालिबान के नियंत्रण में किया था। लेकिन तालिबान भी नई पीढ़ी के लड़ाकों से बना है, उन्होंने कहा, और वे इस बारे में गहराई से विभाजित हैं कि आधुनिक अफगानिस्तान पर नरम हाथों या फौलादी शिकंजे के साथ नेतृत्व करना है या नहीं।

कई अन्य विश्लेषकों ने भी नए खतरे की तरफ इशारा किया है। उनका कहना है कि तालिबान के सत्ता में आने के बाद उसके लड़ाकों का आपस में लड़-मरने का खतरा है। इस आशंका की कई वजहें भी हैं।

तालिबान का सहयोगी अल-कायदा 1996 से 2001 के बीच पाकिस्तान में पला था। इस दौरान तालिबान ने अलकायदा जैसे आतंकी संगठनों को फलने फूलने का अवसर दिया। ओसामा बिन लादेन ग्लोबल टेररिस्ट बनकर उभरा। विशेषज्ञों के मुताबिक ये दोनो अलग नहीं हो सकेंगे और आईएसआईएस को भी मदद मिलती रहेगी। इससे दुनिया में आतंकवाद के मजबूती से उभरने का माहौल बनेगा। वर्तमान में हालात ये हैं कि एक तरफ तालिबान शांति का राग अलाप रहा है और दूसरी तरफ अमेरिका का साथ देने वाले अफगानियों को चुन चुनकर मारने के लिए तलाश कर रहा है।

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