IAS-IPS की खान: भारत के ये तीन गांव, नेपाल ने किया अपने नक्शे में शामिल

नेपाल द्वारा जारी किये गए नए राजनैतिक नक्शे पर घमासान मचा है। जहां से आईएएस, आईपीएस और पीसीएस अफसर निकलते ये तीन गांव हैं- कुटी, गुंजी और नबी। उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में बसे इन तीनों ही गांवों की एक खासियत इन्हें सबसे अलग बनाती है, वो है यहां से लगातार ब्यूरोक्रेट्स का निकलना।

Update:2020-06-12 13:17 IST

नई दिल्ली: किसी भी देश के लिए उसकी सीमाएं बहुत महत्त्वपूर्ण होती हैं। जिसकी रक्षा करना उस देश के लिए बहुत जरूरी होता है। हमारे पड़ोसी देश नेपाल ने एक नया राजनैतिक नक्शा जारी किया है। जिसके लिए नेपाल में विधेयक लाया जा चुका है। इस सीमा के अंतर्गत आने वाले लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा को नेपाल अपना हिस्सा मान रहा है। इस सीमा में वे तीन गांव भी शामिल हैं, जहां से लगातार आईएएस, आईपीएस और पीसीएस अफसर निकलते रहे हैं। इन तीनों ही गांवों पर नेपाल ने अपनी दावेदारी बताते हुए उन्हें अपने देश का अहम हिस्सा माना है।

ये तीन गांव हैं- कुटी, गुंजी और नबी

नेपाल द्वारा जारी किये गए नए राजनैतिक नक्शे पर घमासान मचा है। जहां से आईएएस, आईपीएस और पीसीएस अफसर निकलते ये तीन गांव हैं- कुटी, गुंजी और नबी। उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में बसे इन तीनों ही गांवों की एक खासियत इन्हें सबसे अलग बनाती है, वो है यहां से लगातार ब्यूरोक्रेट्स का निकलना। तीनों ही गांवों की टोटल जनसंख्या लगभग 3000 है। इनमें से आधा दर्जन से ज्यादा IAS और IPS हैं, साथ ही PPS और PCS अफसर काफी सारे हैं। इन्हीं तीन गांवों को नेपाल ने अपना अभिन्न हिस्सा कहा है।

आईपीएस संजय गुंज्याल वर्तमान में आईजी हैं और एवरेस्ट फतह कर चुके हैं

इसी गांव से आईपीएस संजय गुंज्याल निकले हैं, जो साल 1997 बैच के हैं। वे वर्तमान में आईजी हैं और एवरेस्ट फतह कर चुके हैं। एक और आईएएस हैं विनोद गुंज्याल, जो फिलहाल बिहार में तैनात हैं। साल 2011 बैच के आईपीएस अफसर हेमंत कुतियाल जो फिलहाल यूपी में हैं, वे भी उत्तराखंड के इसी हिस्से से आते हैं। साल 2004 बैच की पुलिस अफसर विमला गुंज्याल भी यहीं से हैं, जो इन दिनों उत्तराखंड पुलिस में डीआईजी हैं। इसी इलाके से धीरेंद्र सिंह गुंज्याल और अजय सिंह नाबियाल भी हैं। इनके अलावा पीसीएस श्रेणी के कई अधिकारी यहां से आते हैं।

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व्यापार के लिए भी काफी विख्यात है

उत्तराखंड में बेहद कम आबादी वाले इन गांवों की खासियत है कि यहां पढ़ाई-लिखाई को काफी अहमियत मिलती है। एक बात चीत में आईपीएस संजय गुंज्याल ने बताया कि ये पिथौरागढ़ जिले में आने वाला गांव गुंजी अपने व्यापार के लिए काफी ख्यात है। यहां तिब्बत के लोग भी मंडियों में सामान की खरीद-फरोख्त के लिए आते हैं। साल 2011 की जनगणना के अनुसार यहां कुल 335 लोग रहते हैं। नेपाल और तिब्बत से सटी सीमा के कारण ऐतिहासिक रूप से काफी महत्वपूर्ण होने की वजह से यहां कोई भी नहीं आ सकता, बल्कि इस गांव में जाने के लिए स्थानीय प्रशासन से अनुमति लेनी होती है।

कैलाश मानसरोवर यात्रा के दौरान पड़ने वाला आखिरी गांव

इसके अलावा भी इस गांव की कई खासियतें हैं। जैसे ये कैलाश मानसरोवर यात्रा के दौरान पड़ने वाला आखिरी गांव है, इसके बाद आबादी खत्म हो जाती है। इस लिहाज से भी इसका महत्व बढ़ जाता है। यही वजह है कि यहां एक मिलिट्री बेस भी बना हुआ है, जहां सैनिकों की तैनाती रहती है। इसी तरह से कुटी गांव में 115 घर हैं, जिनकी आबादी मुश्किल से 600 है। कैलाश मानसरोवर यात्रा के दौरान यहां बड़ी संख्या में ट्रैकर्स ठहरते हैं और आराम के बाद दोबारा चल पड़ते हैं।

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गुंजी से काला पानी की दूरी सिर्फ 10 किलोमीटर

गुंजी से काला पानी की दूरी सिर्फ 10 किलोमीटर है। लिपुलेख की सबसे आसान यात्रा का आगाज़ गुंजी से ही होता है। काली नदी के किनारे कटी सड़क की मदद से सिर्फ आधे घंटे में कालापानी पहुंचा जा सकता है। नेपाल इस हिस्से को अपना बताता आ रहा है। उसका आरोप है कि साल 1962 में भारत-चीन विवाद में भारत ने अपनी जीत के लिए इस ऊंचे हिस्से का इस्तेमाल किया और तब से ही वहां से अपना मिलिट्री बेस नहीं हटाया है। विवाद की शुरुआत तब हुई, जब भारत ने लद्दाख को कश्मीर से अलग कर नया राज्य बनाया और नया नक्शा जारी किया गया। इसके बाद ही नेपाल में इसको लेकर विरोध शुरू हो गया। उसने नक्शे का विरोध करते हुए कहा कि भारत ने उसके कालापानी इलाके को इसमें शामिल किया है।

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गरभ्यांग और नपलचू से ब्यूरोक्रेट्स की खेप निकलती है

पिथौरागढ़ जिले में इन तीन गांवों के अलावा पड़ोस के भी कई गांव हैं, जैसे गरभ्यांग और नपलचू, जहां से ब्यूरोक्रेट्स की खेप की खेप निकलती रही है। कुल मिलाकर ऊंची पहाड़ियों के बीच बसा ये दुर्गभ स्थल एजुकेशन में अपने ऊंचे स्तर के लिए ख्यात रहा है। यहां के लोग जीवन जीने और पढ़ने-लिखने में जितने मशगूल रहते हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लग सकता है कि इन गांवों में कभी कोई विवाद या छिटपुट हिंसा की भी खबरें नहीं आती हैं। यहां तक कि देशों की सीमा पर बसा होने के कारण सहज आने वाली चीजें, जैसे नशे या दूसरी चीजों की तस्करी से भी ये पूरा बेल्ट बचा हुआ है।

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