अमेरिका-ईरान के बीच क्या है विवाद की वजह, इराक के बाद क्या अब ईरान की बारी
वाशिंगटन: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान की ओर से किसी भी तरह की उकसावे की कार्रवाई से ‘‘पूरी ताकत’’ से निपटने की धमकी दी है। हालांकि उन्होंने ईरान के साथ बातचीत करने की इच्छा भी जाहिर की है। ट्रंप ने सोमवार शाम पत्रकारों से कहा, ‘‘ अगर वे कुछ करते हैं तो उससे पूरी ताकत से निपटा जाएगा, लेकिन हमें इस तरह का कोई संकेत नहीं मिला है कि वे ऐसा कुछ करेंगे।’’
उन्होंने ईरान को ‘दुश्मन’ और ‘आतंकवाद को भड़काने वाला नंबर एक’ देश कहा। ट्रंप प्रशासन ने हाल में फारस की खाड़ी में एक विमान वाहक पोत और अन्य सैन्य संसाधनों को भेजा है। उसने इराक से अपने गैर जरूरी कर्मियों को भी वापस बुला लिया है। इससे पहले अमरेकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने कहा है कि अगर अमरेका और ईरान के बीच विवाद बढ़ा तो ईरान पूरी तरह बर्बाद हो जाएगा। ट्रंप ने एक ट्वीट कर कहा, ''अगर ईरान युद्ध चाहता है तो ये उसका औपचारिक अंत होगा। अमरेका को आइंदा धमकी मत देना!''
ईरान के विदेश मंत्री मोहम्मद जवाद ज़रीफ़ ने उन्हें जवाब में कहा है - "ऐसे तानों से ईरान ख़त्म नहीं होगा।" हालिया दिनों में अमेरिका ने खाड़ी में कई लड़ाकू जहाज़ और विमान तैनात किए हैं। हालांकि इस क्षेत्र में सैन्य संघर्ष की संभावनाओं को टालने के प्रयास हो रहे थे, मगर ट्रंप के इस ट्वीट से अमेरिका का सुर बदलता दिख रहा है।
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ईरान पर न्यूक्लियर हथियार बनाने का आरोप
जॉर्ज बुश अमेरिका के राष्ट्रपति बने तो उन्होंने ईरान, इराक और उत्तर कोरिया को ऐक्सिस ऑफ ईविल घोषित कर दिया जिसका ईरान में काफी विरोध हुआ। साल 2002 में ही पता चला कि ईरान न्यूक्लियर फसलिटी डेवलप कर रहा है जिसमें एक यूरेनियम प्लांट और एक हेवी वॉटर रियेक्टर शामिल थे। अमेरिका ने ईरान में चोरी-छिपे न्यूक्लियर हथियार बनाने का आरोप लगाया। हालांकि, ईरान ने इसका खंडन किया।
संयुक्त राष्ट्र (UN) के सामने ईरान अपना पक्ष रखता रहा। साल 2006 से 2010 के बीच UN ने न्यूक्लियर मुद्दे पर ईरान पर चार बार बैन लगाया। अमेरिका और यूरोपियन यूनियन ने भी ईरान पर कई बैन लगाए। यहां तक कि साल 2012 में फाइनेंशियल सेक्टर को भी शामिल कर लिया गया। इसमें कई और देश भी शामिल हुए।
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साल 2007 में UN सिक्यॉरिटी काउंसिल ने ईरान से हथियारों के निर्यात पर बैन लगा दिया। वहीं, ईरान के इस्लामिक रिवल्यूशन गार्ड कॉर्प्स से जुड़े 20 संगठनों को अमेरिका के फाइनेंशियल सिस्टम और तीन बैकों से बैन कर दिया गया। अमेरिका ने इसके पीछे आतंकियों को सहारा दिए जाने की बात कही। ईरान के बैंकों और ईरान के कार्गो प्लेन्स को मॉनिटर किया जाने लगा।
2015 में हुआ समझौता
साल 2015 में चीन, फ्रांस, जर्मनी, रूस, अमेरिका, यूरोपियन यूनियन और यूके ने ईरान के साथ जॉइंट कंप्रिहेन्सिव प्लान ऑफ ऐक्शन (JCPOA) पर साइन किया। इसके तहत ईरान ने अपने न्यूक्लियर प्रोग्राम में बदलाव करने को सहमति दी और आश्वासन दिया कि वह शांति बनाए रखेगा। इसके बदले संयुक्त राष्ट्र, EU और अमेरिका उसके खिलाफ बैन हटाएंगे।
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ट्रंप ने तोड़ा समझौता
हालांकि, साल 2016 में अमेरिका के राष्ट्रपति बने डोनाल्ड ट्रंप शुरुआत से ही ईरान पर प्रतिबंध लगे रहने के पक्षधर थे। उन्होंने JCPOA से बाहर निकलने का ऐलान कर दिया है। इसी के साथ एक बार फिर वह ईरान पर बैन लगाने के लिए तैयार हैं। बाकी देशों ने अमेरिका के इस कदम का साथ नहीं दिया है।
ईरान और अमेरिका के बीच सऊदी अरब बड़ा खिलाड़ी
माना जाता है कि मध्य एशिया में अमेरिका का सबसे बड़ा साथी सऊदी अरब है। वहीं, सऊदी सुन्नी बहुल देश है जबकि ईरान शिया बहुल। दोनों के बीच धार्मिक लड़ाई लंबे समय से चली आ रही है। इसके अलावा तेल की उपलब्धता भी दोनों के बीच एक बड़ी भूमिका निभाती है। माना जाता है कि प्रभुत्व की इस प्रतिस्पर्धा में सऊदी का साथ देने के कारण अमेरिका ईरान पर सख्त रवैया अपनाता है।