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आर्टिकल 370 नहीं रास आया कांग्रेस को, अब हुई सोशल मीडिया पर बेइज्जती

संसद के दोनो सदनों में अनुच्छेद 370 को समाप्त करने संबंधी प्रस्ताव को पारित करवा कर मोदी सरकार ने ऐतिहासिक कार्य किया है। इस प्रस्ताव को पारित करवाने के लिए राजग सरकार को कई ऐसे दलों का भी समर्थन मिला जो राजग के सदस्य नहीं है।

Vidushi Mishra
Published on: 7 Aug 2019 10:00 AM GMT
आर्टिकल 370 नहीं रास आया कांग्रेस को, अब हुई सोशल मीडिया पर बेइज्जती
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Rahul Gandhi

मनीष श्रीवास्तव

लखनऊ : संसद के दोनो सदनों में अनुच्छेद 370 को समाप्त करने संबंधी प्रस्ताव को पारित करवा कर मोदी सरकार ने ऐतिहासिक कार्य किया है। इस प्रस्ताव को पारित करवाने के लिए राजग सरकार को कई ऐसे दलों का भी समर्थन मिला जो राजग के सदस्य नहीं है। यह एक ऐसा मौका था जिस पर आगे आ कर कांग्रेस एक बार फिर देश की जनता के दिलों से उतर रही अपनी छवि को सुधार सकती थी, लेकिन कांग्रेस इस बार भी चूक गयी।

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इस पूरे घटनाक्रम में कांग्रेस का स्टैंड देश के मिजाज से मेल खाता नहीं दिख रहा है। एक समय में कांग्रेस को देश की जनता की नब्ज समझने वाली पार्टी समझा जाता था और इसी खूबी के सहारे कांग्रेस ने देश में सबसे ज्यादा समय तक शासन किया।

ऐसा पहली बार नहीं है कि कांग्रेस देश के मिजाज के खिलाफ स्टैंड ले रही है। अभी हाल ही में हुये लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में ऐसी घोषणायें की थी जो देश की जनता के मिजाज के अनुकूल नहीं थी।

इससे पहले बालाकोट हमले के समय भी सेना द्वारा अंजाम दी गयी सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल उठा कर भी कांगेे्रस ने अपने मानसिक दिवालियेंपन का नमूना दिया था। कांग्रेस के इस तरह के स्टैंड का ही नतीजा था कि लोकसभा चुनाव के दौरान मुख्य मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक हुई बहसों में लगातार निशाने पर रही।

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दरअसल, कांग्रेस के पास अब सही मायने में राजनीतिज्ञ समझा जाने वाला नेतृत्व नहीं रह गया है। अब जो पार्टी करीब दो महीने से अपना अघ्यक्ष न तय कर पा रही हो तो उससे देश के किसी अहम मुददे पर देश के मिजाज को समझ कर स्टैंड लेने की अपेक्षा करना बेमानी है।

दरअसल, डूबता जहाज बन चुकी देश के सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस देश के कुछ ही राज्यों में सत्ता में बची है और डूबते जहाज के चुहों की तरह कांग्रेस के लोग पार्टी छोड़ने के लिए आतुर है। जाहिर है कि सभी अपने भविष्य की तलाश में है और यह भविष्य उन्हे भाजपा में दिखायी दे रहा है।

यहीं गति रही तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कांग्रेस मुक्त भारत के सपने को सच होने में समय नहीं लगेगा और दिलचस्प बात यह है कि इस सपने को सच करने में कांग्रेसी ही सबसे ज्यादा योगदान कर रहे है। कुल मिलाकर सियासी बिसात पर भाजपा और कांग्रेस के बीच शह और मात का खेल शुरू हो चुका है।

कांग्रेस में संकट दिन पर दिन गहराता जा रहा है, राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद पार्टी के सामने संकट है कि ऐसा नेता कहा से लाये जो मोदी-शाह की जोड़ी का मुकाबला उनकी ही आक्रामक शैली में कर सकें।

पूरे देश में फैले कांग्रेसियों में राहुल गांधी से इस्तीफा वापस लेने की मांग को लेकर लगातार इस्तीफे दिये जाने से साफ जाहिर है कि कांग्रेस अब भी गांधी-नेहरू परिवार की ओर कातर निगाहों से देख रही है और किसी चमत्कारी नेतृत्व के मिलने की उम्मीद कर रही है। फिलहाल देश की सबसे पुरानी पार्टी के पास नेतृत्व का अभाव है।

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इसके विपरीत कांग्रेस की मुख्य प्रतिद्वंदी भारतीय जनता पार्टी ने मोदी और शाह के नेतृत्व में गांधी के जनता के बीच में रहने और राष्ट्रवाद सर्वोपरि के मंत्र को अपना लिया। भाजपा ने कांग्रेस के सुनहरी तस्वीर के फ्रेम से महात्मा गांधी, सरदार पटेल, बाबा साहब आंबेडकर, जयप्रकाश नारायण और नरसिम्हा राव तक को निकाल कर अपनी तस्वीर का फ्रेम ज्यादा चमकदार और आकर्षक बना लिया है।

मोदी-शाह की जोड़ी ने गुजरात में सरदार पटेल की भव्य प्रतिमा लगा कर तो महात्मा गांधी के नाम पर स्वच्छता अभियान और उनके उनके 150वें जयंती वर्ष को एक उत्सव का रूप देकर आजादी के इन महानायकों की विरासत लेने का प्रयास किया और देश के दलितों के सबसे बड़े नायक बाबा साहेब डा. भीमराव आंबेडकर के नाम पर तीर्थ बना कर तो नरसिम्हा राव के देहावसान पर उनके पार्थिव शरीर के साथ किये गये कांग्रेस के बर्ताव को उजागर कर राव को भी अपने पाले में लाने का प्रयास किया लेकिन कांग्रेस इस विरासत को अपने पास बचाने के लिए कुछ भी करती नहीं दिख रही है।

कुल मिला कर मोदी और शाह की यह रणनीति इतनी आक्रामक है कि कांग्रेस विधानसभाओं और संसद में सीटे ही नहीं बल्कि जनता में अपनी पहचान भी खोती जा रही है।

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दरअसल, कांग्रेस के रणनीतिकार यह नहीं समझ पा रहे है कि उनकी परेशानी का हल किसी परिवार से जुड़ा नहीं है। कांग्रेस की असल परेशानी यह है कि आजादी के आंदोलनों के फ्रेम में जड़ी कांग्रेस के तस्वीर पर इतनी धूल जम गयी है कि अब वह तस्वीर धुंधली हो चुकी है। लेकिन कांगे्रस चेहरा साफ करने के बजाय आइना पोछने में लगी हुई है।

दशकों देश पर शासन करने वाली कांग्रेस के लोग अब सड़क पर उतर कर आंदोलन की राजनीति करना भूल कर वातानकूलित कमरों की राजनीति करने के आदि हो गये है। कांग्रेसी भूल गये कि देश की जनता ने उन्हे दशकों तक शासन करने दिया तो केवल इसलिए क्योंकि आजादी की लड़ाई के दौरान कांग्रेसी नेताओं ने जनता के मुददो को लेकर आंदोलन किया था, जेल गये थे और यातनायें सही थी।

गांधीजी की दो यात्राओं ने देश की तकदीर को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटने के बाद बापू अप्रैल, 1917 में चंपारण गए थे। वहां नील उगाने वाले किसानों पर हो रहे अत्याचारों को देखकर उन्हें गहरा आघात लगा था।

यहीं से गांधीजी की उस संघर्ष यात्रा की शुरुआत हुई थी, जिसने देश को ऐसा नेता दे दिया, जिसमें अंतरराष्ट्रीय समुदाय को जोड़ने का सामर्थ्य था। अगले 13 साल तक देश के कोने-कोने में घूमने के बाद बापू ने अप्रैल 1930 में दांडी यात्रा के जरिए देश के अवाम को सार्थक संदेश दिया था कि अंग्रेज कानून का उपयोग अपने स्वार्थ के लिए करते हैं और सत्ता के अधिकारों का तो उपभोग करते हैं, पर अपना कर्तव्य नहीं निभाते।

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गांधी जी के इस संदेश ने स्वतंत्रता की लड़ाई की धार को और तेज कर दिया था। लेकिन आज, कांग्रेसी, गांधी के नाम को तो भुनाना चाहते है लेकिन गांधी के मार्ग का अनुसरण करना नहीं चाहते। ऐसा नहीं है कि देश में जनता के साथ खडे़ होने और उसका विश्वास हासिल करने के मौके नहीं आये लेकिन कांग्रेस ने उन मौकों को कभी भी हाथ में नहीं लिया, फिसल जाने दिया।

राहुल गांधी को समझ और परख चुकने के बाद कांग्रेस के नेताओं और देश की जनता को भी प्रियंका गांधी से बहुत अधिक उम्मीदें थी। ऐसा मानना था कि नाक-नक्श में अपनी दादी इंदिरा गांधी की तरह दिखने वाली प्रियंका अगर सक्रिय राजनीति में आयी तो अपनी दादी की तरह ही करिश्माई साबित होंगी लेकिन बीते लोकसभा चुनाव में प्रियंका की सक्रियता के बावजूद मिली करारी हार ने यह भ्रम भी दूर कर दिया।

प्रियंका गांधी भी वातानूकलित कमरों और ट्विटर पर बयानबाजी को राजनीति समझ बैठी है। कांग्रेस के दिग्गज नेता आज भी अपने स्वर्णिम अतीत के दायरे से बाहर नहीं आ पा रहे है, जब पूरे देश में कांग्रेस की आंधी चलती थी। वह यह नहीं समझ पा रहे है कि एक समय ऐसा भी आता है कि जब हवाओं का रूख बदलता है और वह उल्टी चल पड़ती है।

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बरहाल अपने पुरखे नेताओं से कांग्रेस भले कोई सबक न ले रही हो लेकिन नरेंद्र मोदी इसके लिए सजग है। वह जानते है कि अभी तो सब ठीक है लेकिन जिस दिन हवाओं का रूख पलटा तो उनकी सत्ता जाने में समय नहीं लगेगा। यही कारण है कि मोदी ने जनता के बीच पैठ बढ़ाने के तरीकों पर अमल करना शुरू कर दिया हैं।

मोदी ने आगामी गांधी जयंती से सरदार पटेल की जयंती तक अपने सभी अपने सांसदों से अपने संसदीय क्षेत्र में 150 किलोमीटर की पदयात्रा करने को कहा है। इस दौरान यह सांसद, गांधी के विचार लोगों तक पहुंचाएंगे और साथ ही वृक्षारोपण भी करेंगे। दरअसल, गांधी के विचार और वृक्षारोपण अपनी जगह हैं, परंतु इस पदयात्रा के राजनीतिक निहितार्थ गहरे हैं।

जब सांसद मतदाताओं से सीधे मिलेंगे, तो उन्हें उनके सुख-दुख की जानकारी होगी और वह इसके समाधान का वादा भी करेंगे। मोदी यह भी जानते है कि सोशल मीडिया के इस जमाने में वायदों का किया जाने से लेकर उससे मुकरने तक की हर घटना सार्वजनिक होने में समय नहीं लगता है। ऐसे में सांसदों का जनता से संवाद और जनता के काम दोनों ही होंगे और यह पार्टी की जनता के बीच पैठ को और मजबूत करेगा।

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Vidushi Mishra

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