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फर्ज पर कर दी जान कुर्बान, दो रुपया डॉक्टर कोरोना पीड़ितों के रेड जोन में थे एक्टिव
कोरोना वायरस की जद में जो भी आ रहा है, उसे वह अपना शिकार बनाने से चूक नहीं रहा। हाल ही एक सबसे विरला मामला आंध्र प्रदेश से आया है। 70 पार कर चुके वृद्ध डॉक्टर इस्माईल, जो मात्र 2 रुपये की फीस पर लोगों की दवाई करते थे। रेड जोन होने के बावजूद उन्होंने अपनी सेवा नहीं छोड़ी और कोरोना ने उनको निगल लिया। अब उनके परिवारी जनों को भी कोरोना हो गया है। पढ़िए उनकी दर्द भरी कहानी उनके दोस्त के हवाले से। उनके दोस्त अब्दुल ने कहा कि अगर सामान्य दिनों में गया होता तो उसकी विदाई में बहुत लोग शामिल होते...
आंध्र प्रदेश: कोरोना वायरस ने हमारे देश में अब तक 600 ज्यादा लोगों की जान ले ली है। संक्रमितों का इलाज करने वाले डॉक्टर भी इसकी जद में आ रहे हैं। हालांकि कुछ डॉक्टरों की भी जानें गई हैं। आंध्र प्रदेश के कुरनूल के एक डॉक्टर इस्माईल को भी कोरोना ने अपना शिकार बना लिया और उनकी मौत हो गई। बता दें कि डॉक्टर इस्माईल 2 रुपया वाले डॉक्टर के नाम से मशहूर थे और लोगों का बहुत ही कम पैसों में इलाज करते थे।
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कभी किसी मरीज को 'ना' नहीं किया
कोरोना के चलते डॉ. इस्माईल हुसैन ने बीते दिनों आंध्र प्रदेश स्थित कुरनूल के अपने अस्पताल में दवाई करना बंद कर दिया था। उनके एक मित्र शफथ अहमद ने बताया कि वो हमेशा इतना लोकप्रिय थे कि उनके घर के बाहर मरीजों की लंबी लाइन लगी रहती थी। उन्होंने कभी किसी मरीज को देखने से इनकार नहीं किया।
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मौत के बाद आई कोरोना पॉजिटिव की रिपोर्ट
शफथ ने बताया कि डॉक्टर इस्माईल ने 14 अप्रैल को अंतिम सांस ली। लेकिन अगले दिन उनके टेस्ट से पता चला कि वो कोरोना के शिकार हो चुके थे। अधिकारियों ने बताया कि वो किसी न किसी कोरोना रोगी के संपर्क में आए होंगे, क्योंकि उन्होंने कोरोना के रेड-ज़ोन में भी काम करना जारी रखा था।
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गरीबों के बीच काफी लोकप्रिय थे डॉक्टर साहब
डॉ. इस्माईल को अच्छे से न जानने वाले भी उनकी बड़ी उम्र को देखकर ताज्जुब करते थे कि वह इस उम्र में भी लोगों का इलाज कर रहे थे। केवल कुरनूल से ही नहीं, बल्कि आसपास के कई जिलों से भी उनके पास मरीज आते थे। डॉक्टर इस्माईल बड़ी संख्या में लोगों के बीच प्रिय थे। जो मरीज महंगा इलाज नहीं करा सकते थे, उनके बीच तो वह और ज्यादा प्रिय थे।
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कभी फीस के लिए बाध्य नहीं किया
एक रिपोर्ट के मुताबिक 45 साल से उनके परिवार से जुड़े अब्दुल राउफ ने कहा- 'उन्होंने कभी पैसे की परवाह नहीं की। कभी यह तक नहीं देखा कि मरीजों ने कितना पैसा दिया। उनसे सलाह ले के बाद, लोग उतना ही देते थे, जितना उनके वश में होता था। इसके लिए कोई बाध्यता नहीं थी।
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लोग कहने लगे 2 रुपये वाला डॉक्टर
अब्दुल ने कहा, 'पहले लोग उसे अक्सर सिर्फ दो रुपये ही देते थे। अपने अंतिम दिनों के दौरान लोग 10 या 20 रुपये या जो कुछ भी खर्च कर सकते थे, उसे देते थे। और उन पैसों को वह खुशी-खुशी ले भी लेते थे। यहां तक कि अगर कोई पैसे न भी दे तो उससे उन्हें कोई दिक्कत नहीं थी। 90 के दशक से ही उनकी चिकित्सीय सलाह फीस 2 रुपये थी इसलिए लोग उन्हें 2 रुपये वाला डॉक्टर कहते थे।
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लोग अपनी मर्जी से पैसे देते और फुटकर लेते
कुरनूल के ही एक इतिहासकार कल्कुरा चंद्रशेखर ने बताया कि एक लकड़ी का बक्सा था, जिसमें मरीज पैसे देते थे। फिर उसी में से वे लोग अपना फुटकर भी निकाल लेते थे। कोई 10 डालकर 5 निकाल लेता तो कोई 50 रुपये डालकर 30 रुपये वापस ले लेता था। इस पर किसी को कोई पाबंदी नहीं थी। यह मरीज पर ही निर्भर था।
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इलाज के दौरान हो गया निधन
काम के आखिरी दिन वह हमेशा की तरह देर रात घर लौटे थे। अगले दिन उनकी सांस फूलने लगी तो उन्हें अस्पताल में तुरंत भर्ती कराया गया। कुरनूल के गवर्नमेंट जनरल अस्पताल में कुछ दिनों में ही उनका निधन हो गया।
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अब उनके घर के लोगों को हुआ कोरोना
15 अप्रैल को उनकी कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद डेड बॉडी को सील कर दिया गया। साथ ही उनके अस्पताल के कर्मचारियों और हाल ही में उनके संपर्क में आए रोगियों को आइसोलेशन में भेज दिया गया है। डॉक्टर की पत्नी और बेटे सहित उनके परिवार के छह सदस्य कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं।
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...नहीं तो आधा कुरनूल होता शामिल
उनके दोस्त अब्दुल ने कहा, 'यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमने उसे इस तरह से खो दिया। अगर सामान्य दिनों वह गया होता तो उसकी विदाई में आधा कुरनूल शामिल होता।'
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