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नागरिकता पर बड़ा दांव

अपनी दूसरी पारी में पीएम नरेन्द्र मोदी अपनी पहली पारी की अपेक्षा ज्यादा आक्रामक अंदाज में बैटिंग करते नजर आ रहे हैं। इस बार गृहमंत्री के रूप में उन्हें अमित शाह जैसा मजबूत साथी मिला है जो संसद में विपक्ष के हर वार का तीखे अंदाज में जवाब देकर उसकी बोलती बंद करने में सक्षम है।

Roshni Khan
Published on: 12 Dec 2019 4:56 PM IST
नागरिकता पर बड़ा दांव
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अंशुमान तिवारी

नई दिल्ली: अपनी दूसरी पारी में पीएम नरेन्द्र मोदी अपनी पहली पारी की अपेक्षा ज्यादा आक्रामक अंदाज में बैटिंग करते नजर आ रहे हैं। इस बार गृहमंत्री के रूप में उन्हें अमित शाह जैसा मजबूत साथी मिला है जो संसद में विपक्ष के हर वार का तीखे अंदाज में जवाब देकर उसकी बोलती बंद करने में सक्षम है। अब विपक्ष को भी एहसास हो रहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह देश बदलने के साथ ही नया इतिहास भी रच रहे हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि भाजपा और संघ परिवार के एजेंडे को आज जैसी स्वीकृति पहले कभी नहीं मिली।

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कश्मीर से धारा 370 एवं 35-ए हटाने और तीन तलाक के बाद अब नागरिकता संशोधन विधेयक पर संसद की मुहर लगने से साफ है कि मोदी सरकार अपने एजेंडे को अमली जामा पहनाने में काफी हद तक सफल साबित होती दिख रही है। बिल पर वोटिंग से पहले अमित शाह ने साफ किया कि इस बिल को लेकर देश के मुस्लिमों को तनिक भी डरने की जरूरत नहीं है। इस बिल से उनकी नागरिकता नहीं छीनी जा रही। यह नागरिकता देने का बिल है, नागरिकता लेने का नहीं। भाजपा के घोषणा पत्र में भी इस बिल को लागू करने की बात कही गई थी। बिल में भारतीय मुसलमानों को छुआ तक नहीं गया है।

फिर भी हंगामा बरपा है। सोनिया गांधी इसे संवैधानिक इतिहास का काला दिन बता रही हैं। मुस्लिम लीग के चार सांसदों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया। कांग्रेस अदालत जाने की तैयारी में है। आईपीएस अधिकारी अब्दुल रहमान ने बिल के विरोध में इस्तीफा दे दिया है। इस बिल के आने के बाद से ही कुछ भारतीय नेताओं और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के सुर में सुर मिल रहे हैं। विरोध करने वाले दो तरह के लोग हैं। एक, वे जो इसे मुस्लिमों के साथ भेदभाव बता रहे हैं क्योंकि बिल में उन्हें नागरिकता देने का प्रावधान नहीं किया गया है। दूसरे, वे हैं जो कह रहे हैं कि घुसपैठिये कोई भी हों, उन्हें नागरिकता नहीं दी जानी चाहिए।

असम में इस कारण हो रहा बवाल

असम के लोगों को विरोध इस बात से है कि बांग्लादेश से बड़ी संख्या में पहले से राज्य में घुसे लोग अब नागरिकता पा जाएंगे। इससे असम को लोगों को अपनी पहचान, भाषा और संस्कृति खो जाने का खतरा सता रहा है। बिल आने के बाद ही लगातार विरोध प्रदर्शन में जुटे लोगों का कहना है कि पहले ही उनके पास कम संसाधन और बेरोजगारी की समस्या है। जब बाहरी लोग यहां भारी संख्या में बस जाएंगे तो यहां के संसाधनों पर बाहरी लोगों का कब्जा हो जाएगा। प्रदर्शनकारियों का नारा है- हमें न्याय चाहिए और शरणार्थी वापस जाओ। पीएम मोदी व गृहमंत्री के इस आश्वासन के बावजूद कि असम के लोगों के साथ किसी प्रकार का अन्याय नहीं होगा, असम के लोग कुछ भी सुनने को तैयार नहीं हैं। असम में विशेषकर आदिवासी बहुल क्षेत्रों में नागरिकता बिल का ज्यादा विरोध है।

हिंसक प्रदर्शनों के चलते असम के कई जिलों में कफ्र्यू लगा दिया गया है। हिंसा के कारण असम और सर्विसेज के चल रहे मैच के आखिरी दिन का खेल रद्द कर दिया गया। असम में छात्र संगठन सडक़ों पर उतर गए हैं। प्रदर्शनकारियों ने एक रेलवे स्टेशन पर हमला किया है, जिसके बाद गुवाहाटी से गुजरने वाली सभी ट्रेनें कैंसिल कर दी गई हैं, वहीं कई फ्लाइटें भी रद्द हो गई हैं मगर यह नहीं भूलना चाहिए कि जिस एनआरसी का असम में कांग्रेस विरोध कर रही है। यह व्यवस्था उस असम समझौते में है जो 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने किया था। 26 मई, 2009 को गृहमंत्री रहे पी. चिदंबरम ने एनआरसी जैसी व्यवस्था पूरे देश में लागू करने की मंशा जताई थी। उन्होंने एनआरसी की तर्ज पर राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर की बात भी कही थी।

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मोदी-शाह ने कांग्रेस को घेरा

मोदी सरकार की दूसरी पारी में एक उल्लेखनीय बात यह भी है कि विभिन्न मुद्दों पर सरकार को व्यापक जनसमर्थन मिल रहा है। हालत यह हो गई है कि आज मोदी सरकार के इन कदमों का विरोध करने वालों को यह सफाई देनी पड़ रही है कि वे राष्ट्रहित के खिलाफ नहीं हैं। सही बात तो यह है कि सरकार लोगों का मन बदलने में कामयाब रही है। नागरिकता संशोधन विधेयक पर विपक्ष के आरोपों का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री और गृहमंत्री दोनों ने कहा कि कांग्रेस इस मुद्दे पर पाकिस्तान की भाषा बोल रही है।

पीएम के रूप में मोदी की पारी 2014 में शुरू हुई थी और इस बिल को सबसे पहले 2016 में लोकसभा में पेश किया गया था, जिसके बाद इसे संसदीय कमेटी के हवाले कर दिया गया। इस साल की शुरुआत में यह बिल लोकसभा में तो पास हो गया, लेकिन राज्यसभा में जाकर अटक गया था। हालांकि, लोकसभा का कार्यकाल खत्म होने के साथ ही बिल भी खत्म हो गया। लेकिन इस बार मोदी सरकार ने मुकम्मल तैयारी के बाद इसे पेश किया। इसे लोकसभा में तो पास कराने में ज्यादा दिक्कत नहीं थी मगर चिंता राज्यसभा को लेकर थी। इस बार सरकार ने इसके लिए भी पूरी तैयारी कर रखी थी और वह इसे आसानी से राज्यसभा में भी पास कराने में कामयाब रही।

विपक्ष को मुंह की खानी पड़ी

लोकसभा में बिल के पास होने के बाद विपक्ष इस बार भी राज्यसभा में लटकाना चाहता था मगर उसे मुंह की खानी पड़ी। विधेयक को प्रवर समिति को भेजने के पक्ष में 99 और विरोध में 124 मत पड़े और इसी के साथ विपक्ष का यह दांव भी फेल हो गया। हालत यह हो गई कि विपक्ष इस विधेयक में एक संशोधन भी नहीं करा सका। विपक्ष की ओर से पेश किए गए सभी 43 संशोधन विधेयक भारी अंतर से गिर गए। बाद में इस विधेयक को लेकर मतदान हुआ तो यह 105 के मुकाबले 125 मतों से पारित हो गया। अब राष्ट्रपति की मुहर लगने के साथ ही यह बिल कानून बन जाएगा। इससे पाकिस्तान, अफगानिस्तान व बांग्लादेश के प्रताडि़त गैर मुस्लिम अल्पसंख्यक हिन्दू, बौद्ध, जैन, सिख, ईसाई और पारसी शरणार्थियों को भारत की नागरिकता मिल सकेगी।

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शाह बोले-मुस्लिमों को डरने की जरूरत नहीं

बिल पर वोटिंग से पहले गृहमंत्री अमित शाह ने विपक्ष की ओर से उठाए गए सारे सवालों का जवाब दिया। उन्होंने कहा कि विपक्ष मुस्लिमों को लेकर बेबुनियाद बातें कर रहा है। इस बिल से मुसलमानों का कोई अधिकार नहीं जाता। वे पहले की तरह ही भारत के नागरिक बने रहेंगे। यह नागरिकता देने का बिल है, नागरिकता लेने का नहीं। मैं साफ कर देना चाहता हूं कि कोई भी भ्रामक प्रचार में न फंसे। इस बिल का भारत के मुसलमानों की नागरिकता से कोई संबंध नहीं है। उन्हें तनिक भी भयभीत होने की जरुरत नहीं है। उन्होंने कहा कि हम चाहते तो आपकी तरह से चुपचाप सत्ता का सुख भोग सकते थे। लेकिन मोदी सरकार सत्ता का सुख भोगने के लिए नहीं, देश की समस्याओं का समाधान करने के लिए आई है।

गृहमंत्री ने कहा कि विपक्ष के नेता बार-बार महात्मा गांधी की दुहाई दे रहे हैं। लेकिन 1947 में बंटवारे के बाद एक प्रार्थना सभा में खुद गांधीजी ने कहा कि पाकिस्तान में रह गए हिंदू और सिख चाहें तो आ सकते हैं और भारत को उनकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए। कांग्रेस को गांधीजी की बात पर गौर करना चाहिए। उन्होंने कहा कि आपके दिए जख्मों के कारण लोग खुलकर खुद को शरणार्थी नहीं बताते थे। संशोधन पास होने के एक साल बाद देखिएगा, निर्भीक होकर करोड़ लोग सामने आएंगे। शिवसेना पर हमला बोलते हुए उन्होंने कहा कि इस बिल से साफ हो गया कि शिवसेना किस तरह से रंग बदलती है। रातों रात क्या हुआ कि सुर बदल गए। लोकसभा में विधेयक का समर्थन किया और राज्यसभा में रुख बदल गया। उन्होंने कहा कि हम यहूदी और पारसी की तरह पड़ोसी देशों में प्रताडि़त अल्पसंख्यकों को शरण दे रहे हैं। फिर विरोध क्यों किया जा रहा है।

गृहमंत्री ने साफ किया कि यह बिल पश्चिम बंगाल समेत पूरे देश में लागू होगा। केवल पूर्वोत्तर के वही प्रदेश बाहर हैं, जिन्हें विशेष कारणों से छूट दी गई है। मोदी सरकार देश के संविधान पर भरोसा रखती है। मैं भरोसा दिलाता हूं कि यह देश कभी मुस्लिम मुक्त नहीं होगा। उन्होंने कहा कि विभिन्न मुद्दों पर कांग्रेस के नेताओं के बयान और पाकिस्तान के नेताओं विशेषकर इमरान खान के बयान एक जैसे होते हैं। कांग्रेस नेताओं के बयान का इमरान ने संयुक्त राष्ट्र में भी जिक्र किया था। शाह ने कहा कि कांग्रेस के लोग मामले को अदालत में ले जाने की धमकी दे रहे हैं। आप इसे चाहे जहां ले जाइए मगर हमें पूरा विश्वास है कि हम वहां भी जीतेंगे और यह बिल पूरे देश में लागू होगा।

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बिल की प्रमुख बातें

-यह बिल पाकिस्तान, बांग्लादेश व अफगानिस्तान में धर्म के आधार पर प्रताडि़त होने वाले छह गैर मुस्लिम अल्पसंख्यकों-हिंदू, जैन, सिख, बौद्ध, पारसी व ईसाइयों को भारत की नागरिकता देने से जुड़ा है।

-नागरिकता कानून 1955 में बदलाव किया जा रहा है। प्रस्ताव के मुताबिक अगर अल्पसंख्यक एक साल से लेकर 6 साल तक शरणार्थी बनकर भारत में रहे हैं तो उन्हें भारत की नागरिकता दे दी जाएगी।

-पहले 11 साल रहने पर नागरिकता मिलती थी। अवैध तरीके से प्रवेश करने के बावजूद लोग नागरिकता पाने के हकदार रहेंगे।

-इस बिल में नागरिकता मिलने की बेस लाइन 31 दिसंबर, 2014 रखी गई है। यानी इस अवधि के बाद इन तीन देशों से आने वाले अल्पसंख्यकों को 6 साल तक भारत में रहने के बाद नागरिकता मिल जाएगी।

-नॉर्थ ईस्ट के राज्यों के लिए छूट का अलग से प्रावधान किया गया है।

- जिन शरणार्थियों को नागरिकता दी जाएगी उनके पास कागज हो या नहीं हो, उससे फर्क नहीं पड़ेगा।

- गृह मंत्री अमित शाह के अनुसार क्योंकि मुस्लिम पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में अल्पसंख्यक नहीं हैं, इसलिए इस बिल में उन्हें शामिल नहीं किया गया है। तीनों देशों में संविधान के धर्म को इस्लाम माना गया है।

- इस बिल में अभी अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम इनर लाइन परमिट से सुरक्षित हैं, यानी वहां बिल का कोई असर नहीं होगा। इनके अलावा नगालैंड, दिमापुर का कुछ हिस्सा छोडकऱ जो इनर लाइन परमिट से सुरक्षा प्राप्त है, वहां भी इसका असर नहीं होगा। केंद्र सरकार ने सोमवार को ही मणिपुर को भी इनर लाइन परमिट में लाने का ऐलान किया।

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जानिए क्या है इनर लाइन परमिट

इनर लाइन परमिट ईस्टर्न फ्रंटियर विनियम 1873 के अंतर्गत जारी किया जाने वाला एक ट्रैवल डॉक्युमेंट है। भारत में भारतीय नागरिकों के लिए बने इनर लाइन परमिट के इस नियम को ब्रिटिश सरकार ने बनाया था। इसके बाद देश आजाद होने के बाद समय-समय पर फेरबदल कर इसे जारी रखा गया है। यह मुख्यत: दो तरह का होता है। पहला, पर्यटन की दृष्टि से बनाया जाने वाला एक अल्पकालिक इनर लाइन परमिट और दूसरा नौकरी, रोजगार के लिए दूसरे राज्यों के नागरिकों के लिए बनाया जाने वाला इनर लाइन परमिट।

विपक्ष ने इसे बनाया हथियार

नागरिकता बिल पर बहस के दौरान विपक्ष ने आर्टिकल-14, आर्टिकल-21 और आर्टिकल-25 का जिक्र करते हुए नागरिकता विधेयक को संविधान के खिलाफ बताया। दूसरी ओर गृह मंत्री अमित शाह ने जवाब देते हुए कहा कि नागरिकता संशोधन विधेयक किसी भी तरह से आर्टिकल-14, 21 और 25 का उल्लंघन नहीं करता है। आइए जानते हैं कि आर्टिकल-14, 21 और 25 में क्या कहा गया है।

आर्टिकल-14

भारतीय संविधान में आर्टिकल-14 में समानता का अधिकार का वर्णन हैं। इसके तहत समानता के अधिकार की जो परिभाषा दी गयी है उसमें लिखा है कि राज्य, भारत के किसी व्यक्ति को कानून के समक्ष समता से या कानून के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा। इसका तात्पर्य है कि सरकार देश में किसी भी व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं करेगी। भारतीय संविधान के भाग-3 समता का अधिकार में अनुच्छेद-14 के साथ ही अनुच्छेद-15 जुड़ा है। इसमें कहा गया है कि राज्य किसी नागरिक के खिलाफ सिर्फ धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई भेद नहीं करेगा। इसी को आधार बनाकर विपक्ष मोदी सरकार पर निशाना साध रहा है। उसका आरोप है कि नागरिकता संशोधन बिल में एक खास धर्म के लोगों के साथ भेदभाव किया जा रहा है, जो अनुच्छेद-14 का उल्लंघन है।

आर्टिकल-21

भारतीय संविधान में अर्टिकल 21 के तहत सुरक्षा व आजादी का अधिकार का वर्णन हैं जिसमें लिखा है कि कानून द्वारा तय प्रक्रिया को छोडक़र किसी भी व्यक्ति को जीने के अधिकार या आजादी के अधिकार से वंचित नहीं रखा जाएगा। यह भारत के नागरिक के मूलभूत अधिकारों में से एक है।

आर्टिकल-25

भारतीय संविधान का आर्टिकल-25 देश के सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देता है। इसके तहत प्रत्येक नागरिक को धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का समान अधिकार होगा।

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गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को होंगे ये फायदे

1. नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 2 (1) (बी) में पासपोर्ट, वीजा और ट्रैवल डॉक्युमेंट्स के बगैर जो प्रवासी भारत में आते हैं या जिनका पासपोर्ट और वीजा एक्सपायर कर जाता है, उन्हें अवैध प्रवासी माना जाता है। इसमें संशोधन का प्रस्ताव किया गया है। यानी, नए कानून के तहत ऐसे प्रवासियों को अवैध नहीं माना जाएगा।

2. इसमें नई धारा धारा 6 (बी) लाने का प्रस्ताव है जिसके तहत धार्मिक उत्पीडऩ के शिकार उपरोक्त प्रवासी निर्धारित की गई शर्तों और प्रतिबंधों के तौर-तरीकों को अपनाकर रजिस्ट्रेशन कराकर भारत की नागरिकता प्राप्त कर सकते हैं।

3. नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 5 या तीसरे शेड्यूल की शर्तों को पूरा करते हुए भारत की नागरिकता प्राप्त कर लेते हैं तो वो जिस तिथि से भारत आए हैं उन्हें उसी तिथि से भारत की नागरिकता दे दी जाएगी।

4. ऐसे अल्पसंख्यक प्रवासी के खिलाफ अवैध प्रवास/घुसपैठ या नागरिकता के संबंध में अगर कोई मुकदमा चल रहा है तो इस बिल के प्रावधान से सारे केस खत्म हो जाएंगे। उन्हें स्थानीय कानूनी प्रक्रिया का सामना नहीं करना पड़ेगा।

5. आवेदक अगर किसी भी प्रकार का अधिकार या सुविधा ले रहा है तो बिल के प्रावधान के तहत उसे अधिकार या सुविधा से वंचित नहीं किया जाएगा। मसलन, अगर किसी प्रवासी ने कहीं रहते हुए छोटी-मोटी दुकानें कर ली हैं तो संभव है कि वो स्थानीय कानून की नजर में गलत हों, लेकिन इस बिल के प्रावधान के तहत इसे रेग्युलराइज कर दिया जाएगा।

समस्या बने घुसपैठिए

हिन्दुस्तान सरकार के बॉर्डर मैनेजमेंट टास्क फोर्स की वर्ष 2000 की रिपोर्ट के अनुसार 1.5 करोड़ बांग्लादेशी घुसपैठ कर चुके हैं। लगभग तीन लाख प्रतिवर्ष घुसपैठ कर रहे हैं। हाल के अनुमान के मुताबिक देश में 4 करोड़ घुसपैठिये मौजूद हैं। 40 हजार रोहिंग्या घुसपैठ कर भारत में समस्या बने हुए हैं। 2014 में पश्चिम बंगाल के सीरमपुर में नरेंद्र मोदी ने कहा था कि चुनाव के नतीजे आने के साथ ही बांग्लादेशी घुसपैठियों को बोरिया-बिस्तर समेट लेना चाहिए। 1991 में असम में मुस्लिम जनसंख्या 28.42 फीसदी थी जो 2001 के जनगणना के अनुसार बढक़र 30.92 फीसदी हो गई। 2011 की जनगणना में यह बढक़र 35 फीसदी को पार कर गयी। बांग्लादेशी मुस्लिमों की एक बड़ी आबादी ने देश के कई राज्यों में जनसंख्या असंतुलन को बढ़ाने का काम किया है जिसके कारण देश में कई अप्रिय घटनाएं घटित हुई हैं।

गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि भारत के अंदर 1951 में 84 फीसदी हिंदू थे और 2011 में वो घटकर 79 फीसदी हो गए जबकि बाकी के देशों में वहां के बहुसंख्यकों की संख्या बढ़ी है। जबकि 1947 में पाकिस्तान में 23 फीसदी अल्पसंख्यक थे। 2011 में यह आंकड़ा घटकर 3.7 फीसदी रह गया है। आज यह आंकड़ा एक फीसदी के आसपास बैठता है। यही नहीं, 1947 में बांग्लादेश में 22 फीसदी अल्पसंख्यक थे। 2011 में यह आंकड़ 7.8 फीसदी रह गया है। 1971 में जब बांग्लादेश बना था तो वह धर्मनिरपेक्ष देश था। 1977 में उसका धर्म इस्लाम हो गया। 1950 में दिल्ली नेहरू और लियाकत समझौता हुआ था, जिसमें कहा गया था कि भारत और पाकिस्तान अपने-अपने अल्पसंख्यकों का ख्याल रखेंगे पर पाकिस्तान ने ऐसा नहीं किया। भारत में 1951 में 9.8 फीसदी मुसलमान थे जो बढक़र 14.23 फीसदी हो गए हैं।

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मुस्लिम लीग ने दी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के चार सांसदों ने इस विवादास्पद विधेयक के खिलाफ शीर्ष अदालत में याचिका दायर कर इसकी संवैधानिकता पर सवाल खड़े किए हैं। लीग ने पहले ही कहा था कि अगर ये विधेयक संसद के दोनों सदनों से पारित हो जाता है, तो आईयूएमएल इसे कोर्ट में चुनौती देगी। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल मुस्लिम लीग की ओर से मामले की पैरवी करेंगे। आईयूएमएल का कहना है कि नागरिकता संशोधन विधेयक संविधान के अनुच्छेद-14 के तहत मिले समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है, क्योंकि इसे धर्म के आधार पर बनाया गया है और यह विधेयक मुस्लिमों के खिलाफ है।

अदालत जाने की तैयारी में कांग्रेस

कांग्रेस इस विधेयक के विरोध में अदालत जाने की तैयारी कर रही है। वरिष्ठ कांग्रेस नेता और राज्यसभा में विधेयक का भारी विरोध करने वाले कपिल सिब्बल से जब पूछा गया कि क्या वह इसे अदालत में चुनौती देंगे तो उन्होंने कहा कि देखेंगे। वहीं अभिषेक मनु सिंघवी का कहना है कि विधेयक को अदालत में चुनौती देने की पूरी संभावना है। पी चिंदबरम ने भी ट्वीट करके विधेयक को अदालत में चुनौती देने के संकेत दिए हैं।

शिवसेना के रुख से कांग्रेस नाराज

शिवसेना ने नागरिकता संशोधन विधेयक पर राज्यसभा में वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया और वॉकआउट कर दिया। लोकसभा में सेना के सांसदों ने बिल के समर्थन में वोट दिया था। कांग्रेस हाईकमान महाराष्ट्र में अपनी सहयोगी शिवसेना के इस स्टैंड से खुश नहीं है। सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने उद्धव ठाकरे से बात की है और दो टूक कहा है कि नागरिकता बिल जैसे मुद्दों पर पार्टी का स्टैंड भविष्य में गठबंधन को नुकसान पहुंचा सकता है। लोकसभा में शिवसेना के स्टैंड पर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने इशारों-इशारों में नाराजगी जताई थी। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने नागरिकता बिल जैसे मुद्दों पर शिवसेना के स्टैंड पर निराशा जताते हुए कहा कि ऐसे कदम को स्वीकार नहीं किया जा सकता। कांग्रेस नेता ने यह भी कहा कि शिवसेना अगर कैब जैसे मुद्दों पर ऐसे ही स्टैंड रखती है तो इसका असर महाराष्ट्र में गठबंधन पर भी पड़ेगा।

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कुछ लोग बोल रहे पाक की भाषा: मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा संसदीय दल की बैठक में नागरिकता संशोधन बिल को लेकर बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा कि नागरिकता संशोधन बिल का विरोध करके कुछ राजनीतिक दल पाकिस्तान की भाषा बोल रहे हैं। इस बिल के जरिये हमने लाखों लोगों की जिंदगी में बदलाव की शुरुआत की है जिसे कोई नहीं समझ सकता। पीएम ने कहा कि पिछले छह महीने में हमने वह किया, जिसके लिए हम जीते थे। यह हमारा सपना था कि हम देश के लिए जिएं और देश के लिए मरें। उन्होंने नागरिकता बिल को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि पिछले 6 महीने में वह सभी सपने पूरे होते हुए नजर आ रहे हैं, जो हमने देखे।

मानवाधिकार कानूनों का उल्लंघन: इमरान

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने नागरिकता संशोधन विधेयक को अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों का उल्लंघन बताया है। लोकसभा में बिल पास होने के बाद उन्होंने ट्वीट किया कि नागरिकता संशोधन विधेयक पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय संबंधों का उल्लंघन है और हम इसकी कड़ी निंदा करते हैं। यह फासीवादी मोदी सरकार की ओर से आरएसएस के हिंदू राष्ट्र के डिजाइन का ही विस्तार है। विधेयक को लेकर पाकिस्तान के सोशल प्लेटफॉर्म पर जमकर प्रतिक्रिया देखने को मिल रही हैं।

कोट

मैंने पढ़ा है कि पीएम ने कहा कि ये बिल स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा। मैं आपको बताता हूं कि ये कहां लिखा जाएगा। ये राष्ट्रपिता की कब्र पर लिखा जाएगा, लेकिन किस देश के राष्ट्रपिता की कब्र के ऊपर? ये कराची में जिन्ना की कब्र पर लिखा जाएगा।

डेरेक ओ ब्रायन

भारत का भरोसा टू नेशन थ्योरी में नहीं है। सरकार दो नेशन थ्योरी सही करने जा रही है। कांग्रेस एक नेशन में भरोसा करती है। आप संविधान की बुनियाद को बदलने जा रहे हैं। आप हमारा इतिहास बदलने जा रहे हैं। यह काली रात कभी खत्म नहीं होगी।

कपिल सिब्बल

ये बिल आर्टिकल 14 की बातों का उल्लंघन करता है। इसमें जो कानूनी कमियां हैं, उसका जवाब कौन देगा और जिम्मेदारी कौन लेगा। अगर कानून मंत्रालय ने इस बिल की सलाह दी है तो गृह मंत्री को कागज रखने चाहिए। जिसने भी इस बिल की सलाह दी है उसे संसद में लाना चाहिए।

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पी.चिदम्बरम

आजादी के बाद पाकिस्तान में लगातार अल्पसंख्यकों की संख्या घटी है जबकि भारत में बढ़ी है। कई बार कुछ लोग समझना नहीं चाहते हैं, विपक्ष ऐसा ही कर रहा है। आर्टिकल 14 को बार-बार उठाया जा रहा है, जो कि गलत तर्क है। कांग्रेस को राजनीति नहीं बल्कि देशहित के बारे में सोचना चाहिए।

जे.पी.नड्डा

इस बिल को बहुत जल्दबाजी में लाया गया है। देश में इसका पुरजोर विरोध हो रहा है। पूर्वोत्तर के जो हालात हैं, वो चिंता वाले हैं। इस बिल में कई कमियां हैं। संविधान में धर्म-जात के नाम पर भेदभाव नहीं किया गया है।

प्रफुल्ल पटेल

अगर सरदार पटेल पीएम मोदी से मिले तो बहुत दुखी होंगे। गांधी तो दुखी होंगे ही कि मेरे 150 साल मना रहे हो और ऐसा करते हो। गांधी का चश्मा और नाम केवल विज्ञापन के लिए नहीं है। उनके चश्मे से हिंदुस्तान को देखो। समाज को देखो। मानवता को देखो।

आनंद शर्मा

Roshni Khan

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